पुण्यतिथि विशेष: जब बीआर चोपड़ा ने रफी साहब को दी धमकी...एक और रफी बनाऊंगा, जानिए वो किस्सा
बीआर चोपड़ा उखड़ गए और बोले आज से आप मेरी किसी भी फिल्म में गाने नही गाएंगे, मैं इंडस्ट्री में नया मोहम्मद रफी बनाऊंगा, मैने आप जैसे बहुत से गायकों को देखा हैं। इतना कहकर वह वहां से चले आए, लेकिन मोहम्मद रफी ने उन्हें पलट कर कोई जवाब नहीं दिया।
हिंदी सिनेमा के महान गायक मोहम्मद रफी की आज 43वीं पुण्यतिथि है। उन्हें तानों का सम्राट भी कहा जाता है। यूं तो हिंदी सिनेमा में कई गायक आए, लेकिन मोहम्मद रफी जैसी प्रतिभाएं बहुत कम ही देखने को मिली। मोहम्मद रफी के चाहने वाले दुनिया भर में हैं। आज भले ही मोहम्मद रफी हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज रहती दुनिया तक कायम रहेगी। आइए आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर आपको बताते हैं उनसे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा।
यह बात है उस दौर की है जब फिल्म इंडस्ट्री में बीआर चोपड़ा जैसे फिल्म निर्माता-निर्देशक का बोल बाला था। उनकी फिल्में एक के बाद एक हिट हो रहीं थीं। वह फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता और अभिनेत्रियों के साथ-साथ इंडस्ट्री के गायक और गायिकाओं का भी करियर बना रहे थे। उस दौर में लता मंगेश्कर और मोहम्मद रफी जैसे गायक हिंदी सिनेमा पर छाए हुए थे।
मोहम्मद रफी तब बीआर चोपड़ा की पहली पसंद हुआ करते थे। 1957 में आई उनकी फिल्म नया दौर के सभी गाने उन्होंने रफी साहब से ही गवाए थे। उसके बाद 1959 में आई उनकी फिल्म धूल का फूल में भी रफी ने ही गाने गाए थे। जिसका वह गाना हिंदी सिनेमा में जैसे हमेशा के लिए अमर हो गया, तू हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा। इस कालजयी गीत को मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी ने लिखा था।
मोहम्मद रफी से पक्की दोस्ती होने से बीआर चोपड़ा ने सोचा क्यों ना मोहम्मद रफी को हमेशा के लिए सिर्फ अपने प्रोडक्शन की फिल्मों के लिए बाउंड कर लिया जाए। उनसे कहा जाए कि वह अब से सिर्फ बीआर फिल्म्स के लिए ही गाने गाएंगे और किसी के लिए नही, इसके बदले उन्हें हर महीने एक मुश्त तनख़्वाह दे दी जाएगी। बीआर चोपड़ा को उस वक़्त इंडस्ट्री में अपनी हैसियत खूब अच्छी तरह से मालूम थी। उन्हें लगता था की इंडस्ट्री में कोई उनकी बात को काट नही सकता। लिहाजा यह प्रोपोजल लेकर बीआर चोपड़ा रफी साहब के पास पहुंचे और उनके सामने अपनी पेशकश रखी। रफी साहब बहुत ही सरल और सीधे स्वभाव के इंसान थे। उन्होंने हंसते हुए बड़ी शालीनता के साथ बी.आर.चोपड़ा की पेशकश को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा चोपड़ा साहब कोई भी कलाकार कभी किसी बंधन में बंधकर काम नही कर सकता। उनके इनकार करने से बीआर चोपड़ा उखड़ गए और बोले आज से आप मेरी किसी भी फिल्म में गाने नही गाएंगे, मैं इंडस्ट्री में नया मोहम्मद रफी बनाऊंगा, मैने आप जैसे बहुत से गायकों को देखा हैं। इतना कहकर वह वहां से चले आए, लेकिन मोहम्मद रफी ने उन्हें पलट कर कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद दोनों के रिश्तों में खटास आ गई।
बीआर चोपड़ा ने उस वक़्त के सभी बड़े फिल्म निर्माताओं से यह कह दिया था कि वह अपनी फिल्मों में रफी को काम ना दें। नतीजतन मोहम्मद रफी को उस वक्त गाने मिलने कम हो गए थे। उसके बाद बीआर चोपड़ा ने अपने प्रोडक्शन के संगीतकार रवि को बुलाकर कहा की आज से रफी से आप मेरी फिल्मों के लिए कोई गाना नही गवाएंगे। रवि बॉलीवुड के उस दौर में जाने माने संगीतकार थे। वह बीआर बैनर की फिल्मों के लिए ही संगीत तैयार किया करते थे। लिहाजा रवि से कहा गया की अब आप रफी की जगह किसी और गायक को उनकी तरह तैयार करें।
संगीतकार रवि ने उस वक्त इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना रहे गायक महेंद्र कपूर को बीआर फ़िल्म्स की फिल्मों के गानों के लिए चुन लिया। हालांकि महेंन्द्र कपूर खुद मोहम्मद रफी को ही अपना गुरु मानते थे, लेकिन रवि ने बीआर बैनर की फिल्मों के लिए उन्हें ही चुना। इसीलिए अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि बीआर चोपड़ा की ज़्यादातर फिल्मों में हीरो के लिए महेंद्र कपूर ने ही गाने गाए हैं। संगीतकार रवि ने बीआर चोपड़ा के कहने के मुताबिक़, उनकी फिल्मों में महेंद्र कपूर को गवाना शुरू कर दिया। संगीतकार रवि कहते हैं कि महेंद्र कपूर ने अपने आप को हू-ब-हू रफी के अंदाज में ढाल लिया था, लेकिन संगीतकार रवि को अभी भी उन गानों में कुछ खास मज़ा नही आ रहा था। उन्हें अभी भी मोहम्मद रफी की कमी बहुत अखर रही थी। संगीतकार रवि और मोहम्मद रफी के बीच बहुत गहरी दोस्ती थी, शायद इसलिए भी वह रफी को भूल नही पा रहे थे।
फिर साल आया 1965 का और इस बार बीआर चोपड़ा वक़्त जैसी मल्टीस्टारर फिल्म बना रहे थे। इस बार भी फिल्म के संगीत की जिम्मेदारी म्युज़िक डॉयरेक्टर रवि के कंधों पर थी। इस बार भी संगीतकार रवि नें फिल्म के सभी युगल गीत महेंद्र कपूर और आशा भोंसले से गवाए, लेकिन फिल्म के टाइटल ट्रैक को रिकॉर्ड करवाने के लिए वह बीआर चोपड़ा के पास गए और उनसे गुज़ारिश करी की फिल्म के टाइटल वाले गाने को तो सिर्फ मोहम्मद रफी ही गा सकते हैं, क्योंकि उस गाने के बोलों को गीतकार साहिर लुधियानवी ने जिन अल्फ़ाज़ों में लिखा है, उसे रफी के अलावा कोई और नही निभा सकता है। रविन ने कहा कि गाने की मैंने जो धुन तैयार की है, वह भी मैंने रफी को ही ध्यान में रखकर तैयार की है, लिहाज़ा इस गाने के लिए तो आप रफी साहब को ही बुलाइए।
जब बीआर चोपड़ा ने उस गीत के बोलों को पढ़ा और उसकी धुन को सुना, जिसे संगीतकार रवि ने बनाया था। उन्होंने रवि को एक ब्लैंक चेक दिया और कहा की आप जाइये रफी के पास और उनसे कहिए की अपने मन के मुताबिक़, रक़म इस चेक पर भर लें, लेकिन यह गाना वही गाएं। यह बात रवि ने एक इंटरव्यू में खुद बताई थी। जब संगीतकार रवि रफी साहब के पास पहुंचे और उन्हें पूरी कहानी सुनाई तो पहले तो रफी साहब ने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वह बीआर चोपड़ा के लिए नही गाएंगे, लेकिन रवि के बार-बार निवेदन करने और उनके यह कहने पर कि अगर आप यह गाना नही गाएंगे तो मैं इंडस्ट्री ही छोड़ दूंगा, तो रफी साहब गाने के लिए तैयार हो गए।
रफी साहब ने फिल्म वक़्त का वह टाइटल ट्रैक अपनी दर्द भरी आवाज में इस तरह रिकॉर्ड करवाया की सुनने वालों की आंखों में आंसू आ गए। मोहम्मद रफी ने बीआर चोपड़ा के भेजे उस ब्लेंक चेक पर उतनी ही रकम भरी, जितनी वह उस दौर में अपने एक गाने की फीस लिया करते थे। इस तरह तैयार हुआ फिल्म वक्त का वह टाइटल ट्रैक, जो कि फिल्म के रिलीज होने के बाद सुपर हिट साबित हुआ।
गीतकार साहिर लुधियानवी ने इस गीत को कितने मार्मिक और दिल को लगने वाले लफ़्जों में लिखा है। वह तो सुनने वाले आज तक महसूस करते हैं। गीत के अल्फ़ाजों को आप गौर से सुनेगें तो आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। वक्त की हकीकत को किस तरह परिभाषित किया है, साहिर लुधियानवी नें अपने इस गीत में आप सुनकर महसूस कर सकते हैं।
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