यूपी चुनाव: लखीमपुर कांड का आरोपी आशीष मिश्रा जेल से बाहर, आखिर कितनी सीटों पर पड़ेगा उसकी रिहाई का असर!

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा और लखीमपुर कांड का आरोपी आशीष मिश्र जेल से रिहा हो गया। उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दी थी। मिश्रा की रिहाई को लेकर क्या है राजनीतिक हलचल और कितनी सीटों पर पड़ेगा इसका असर!

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र उर्फ टेनी के बेटे आशीष मिश्र को जमानत मिलने के बाद उत्तर प्रदेश का लखीमपुर जिला और इससे जुड़ी किसानों की मौत की घटना एक बार फिर चर्चा में आ गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे बीजेपी को भारी चुनावी नुकसान होने का संभावना बढ़ गई है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि आशीष मिश्रा मामले से बीजेपी को फायदा ही होगा।

सिर्फ याद के लिए बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी के तिकुनिया गांव में किसानों को गाड़ी से कुचलने की घटना हुई थी। इसके बाद हिंसा भड़की थी जिसमें 4 किसानों समेत कुल 8 लोगों की जान गई थी।

लखीमपुर जिले में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं और 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी सीटें बीजेपी ने जीती थीं। इस बार जिले की निघासन (इसी सीट में तिकुनिया गांव है जहां किसानों को कुचले की घटना हुई थी), पलिया कलां, धौराहा, गोला गोकर्णनाथ, मोहम्मदी, लखीमपुर कैंट, कासता और श्रीनगर में 23 फरवरी को चुनाव होना है। तिकुनिया की घटना और फिर आशीष मिश्र को जमानत मिलने के बाद से आशंका बढ़ गई है कि बीजेपी अपना 2017 का प्रदर्शन दोहरा पाएगी।

लखीमपुर किसान बहुल इलाका है और क्षेत्र में गन्ना और सरसों की फसल बहुतायत में होती है। जिले में कई चीनी मिलें भी है। बीजेपी ने निघासन से इस बार फिर अपने विधायक शशांक वर्मा को टिकट दिया है और उन्हें समाजवादी पार्टी के आर एस कुशवाहा चुनौती दे रहे हैं। कुशवाहा यहां से 2002 में बीएसपी के टिकट पर विधायक रह चुके हैं। बीएसपी ने इस बार यहां से मुस्लिम उम्मीदवार आर ए उस्मानी को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने अटल शुक्ला पर दांव खेला है।

लेकिन सभी 8 सीटों पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही माना जा रहा है। अभी तक के रुझान से लखीमपुर सदर, निघासन, धौराहा, मोहम्मदी और श्रीनगर में समाजवादी पार्टी की हवा दिखती है। निघासन सीट के तिकुनिया गांव में तो लोगों के बीच सिर्फ कार से कुचलने वाली घटना की ही चर्चा है। जहां अधिकतर लोग इस घटना के लिए बीजेपी और आशीष मिश्र को जिम्मेदार ठहराते हैं वहीं, कुछ ऐसे भी हैं जो यह कहने से नहीं चूकते कि मोनू भैया (आशीष मिश्रा) हमेशा लोगों की मदद करते रहे हैं और वे ऐसा नहीं कर सकते। बीजेपी विधायक और उम्मीदवार शशांक वर्मा भी कहते हैं कि उन्हें इलाके के लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। उनका कहना है कि लोग मोदी जी के नाम पर बीजेपी को वोट देते हैं।

लेकिन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आर एस कुशवाहा का दावा है कि लोगों में बीजेपी के लेकर काफी नाराजगी है। वे अपनी सभाओं में बीजेपी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हैं।


बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों के अपने तर्क हैं और जीत के दावे हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि आशीष मिश्र को ऐन चुनाव के बीच में जमानत मिलने का असर सिर्फ लखीमपुर खीरी में ही नहीं बल्कि पूर्वांचल की कम से कम 40 सीटों पर पड़ेगा। विश्लेषकों के मुताबिक गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर जैसे जिलों में भारी संख्या में खेती-किसानी करने वाले वोटर हैं जो इस पूरी घटना से नाराज हैं। उनका कहना है कि भले ही वहां चुनाव आखीर दौर में है लेकिन लखीमपुर की धमक से इन जिलों की कम से कम 40 सीटों पर असर पड़ेगा।

पिछेल दिनों वरिष्ठ पत्रकार भुवेश चंद्र ने एक डिबेट में साफ कहा कि बीजेपी की छवि को लखीमपुर घटना से काफी धक्का लगा है। उन्होंने कहा कि भले ही आशीष मिश्रा को हाईकोर्ट से जमानत मिली हो लेकिन इससे न सिर्फ वोटर बल्कि बीजेपी के अंदर भी कई लोगों में नाराजगी देखी जा रहा है।

ध्यान रहे कि आशीष मिश्रा को जमानत मिलने की खबर मिलते ही आरएलडी नेता जयंत चौधरी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी नेताओं ने अपनी सभाओं और सोशल मीडिया के माध्यम से इसे मुद्दा बनाया था। भुवेश चंद्र ने इसी का जिक्र करते हु ए कहा कि इससे बीजेपी घिरती नजर आ रही है।

दरअसल आशीष मिश्र को जमानत मिलने से किसानों के जख्म फिर से हरे हो गए हैं। लखीमपुर से लेकर पूर्वांचल की तराई पट्टी तक किसानों में गुस्सा है और इसका असर आखिरी चरण के चुनाव तक पर पड़ने की संभावना है।

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने भी लिखा है कि आशीष मिश्र को जमानत उनके पिता केंद्रीय मंत्री के प्रभाव के चलते मिली है। उनका कहना है कि पूरे मामले की जांच ही इस तरह से की गई और फिर जांच रिपोर्ट इस तरह बनाई गई कि जमानत मिलने में दिक्कत न हो।


इलाके के किसानों का कहना है कि आशीष मिश्रा को जमानत मिलने से एक बार फिर बीजेपी का दबंग चेहरा और अहंकार सामने आ गया है। किसानों के संगठन किसान एकता मोर्चा ने भी जमानत के बाद बयान दिया था कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है।

लेकिन राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर सुनील मिश्रा का मानना है कि इससे बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होगा। उनका कहना है कि पूरे मामले में बीजेपी ने कहीं भी कोई रोक नहीं लगाई और मामले की जांच बिना किसी दबाव या भेदभाव के हुई है, इसलिए लोगों के बीच उसकी छवि अच्छी बनी है।

लखीमपुर सदर में यूं तो मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही है, लेकिन बीएसपी उम्मीदवार मोहन बाजपई का इस इलाके में काफी असर है। ऐसे में उनकी लोकप्रियता का फायदा नुकसान एसपी औप बीजेपी दोनों के ही नतीजों पर असर डाल सकता है।

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