यूपी चुनाव का घमासान: लखनऊ शहर में शिया आबादी BJP से खफा, इन मुद्दों पर जताई नाराजगी, जानें क्या होगा असर?

एक वरिष्ठ शिया मौलवी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा "यह वह बीजेपी नहीं है जिसका हमने वर्षों से समर्थन किया है। जिस तरह से पुलिस ने सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान मुस्लिम महिलाओं पर कार्रवाई की, वह अनुचित थी। इसके बाद रमजान और मुहर्रम के दौरान समुदाय को निशाना बनाया गया था।

फोटो: IANS
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नवजीवन डेस्क

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अपनी खास तहजीब और नवाबी परंपरा के लिए जानी जाती है और यहां की मुस्लिम आबादी काफी लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की समर्थक भी रही है लेकिन मुहर्रम पर प्रतिबंध,अवैध बूचड़खानों के खिलाफ रोक, सीएए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ज्यादतियां और अब हिजाब के मुद्दे से यहां के शिया समुदाय में काफी रोष है।

लखनऊ शिया समुदाय का केन्द्र माना जाता है और यहां शियाओं की आबादी चार लाख के आसपास है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री लालजी टंडन ने अजादारी के जुलूसों के मुद्दों को बेहद संतुलित तरीक से सुलझाया था जिसके बाद शियाओं को दशकों से बीजेपी का समर्थन करने के लिए जाना जाता है। शिया समर्थन के कारण बीजेपी ने लखनऊ उत्तर, पश्चिम और मध्य सीटों पर आसानी से जीत हासिल की क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी काफी अधिक है।

एक वरिष्ठ शिया मौलवी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा "यह वह बीजेपी नहीं है जिसका हमने वर्षों से समर्थन किया है। अटल बिहारी वाजपेयी, लालजी टंडन और राजनाथ सिंह जैसे नेता हमेशा हमारे पास आए थे। जिस तरह से पुलिस ने सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान मुस्लिम महिलाओं पर कार्रवाई की, वह अनुचित थी। इसके बाद रमजान और मुहर्रम के दौरान समुदाय को निशाना बनाया गया था। कोविड प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए हम पर प्रतिबंध लगाए गए थे लेकिन हिंदू त्योहारों को कोविड प्रोटोकॉल के साथ अनुमति दी गई थी।"

शियाओं के लिए मुहर्रम अत्यधिक महत्व रखता है और वे उन प्रतिबंधों से नाराज हैं जो लगातार दो वर्षों से लगाए जा रहे हैं।

एक व्यापारी हाशिम जाफरी कहते हैं, ''लोगों को ताजि़या बेचने की भी अनुमति नहीं थी और पुलिस का भारी आतंक था। अगर दो लोग ताजि़या रस्म के लिए जा रहे थे तो उनके साथ भी मारपीट की गई। इस मुद्दे पर लखनऊ के सांसद और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी बात की गई थी लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस बार शिया और सुन्नी समाजवादी पार्टी को वोट देने के लिए एकजुट होंगे।"

एक युवा छात्रा सोनिया खान ने सवालिया लहजे में कहा "अगर यह कोविड था तो होली, जन्माष्टमी और दिवाली के दौरान बाजारों को खुले रहने की अनुमति क्यों दी गई?"

प्रमुख शिया धर्मगुरु और शिया मरकजी चांद समिति के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास उन लोगों में शामिल थे जिनके खिलाफ सीएए विरोध प्रदर्शनों को लेकर केस दर्ज किया गया था।

लखनऊ में सीएए विरोधी दंगों के हिंसक होने के बाद 'होडिर्ंग्स' पर भी उनकी तस्वीरें आई थीं और इसे भी मुस्लिम समुदाय ने सरकार का अच्छा कदम नहीं माना था।

मौलाना कहते हैं "अगर भाजपा को हमारा समर्थन चाहिए तो उन्हें इन मुद्दों पर हमसे बात करनी चाहिए थी। समुदाय का गुस्सा जायज है।"

पिछले साल मुहर्रम के समय जो पुलिस गाइडलाइन जारी की गई थी, उसने भी शियाओं समुदाय की भावनाओं को काफी हद तक आहत किया है। सबसे प्रभावशाली शिया मौलवियों में से एक मौलाना कल्बे जवाद नकवी ने दिशानिर्देशों पर आपत्ति जताई थी क्योंकि इसमें "आपत्तिजनक शब्द और वाक्यांश" थे और समुदाय की छवि को बुरे तरीके से दर्शाया गया था। हाल ही में हिजाब विवाद ने शिया महिलाओं को भी परेशान किया है।

राजधानी लखनऊ के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पढ़ने वाली अफशा का कहना है कि उसके 'हिजाब' को लेकर लड़के उसे ताना मारते हैं। वह कहती हैं, "पुलिसकर्मी मूकदर्शक बने रहते हैं और लड़कों को देखकर मुस्कुराते भी हैं। इससे जाहिर है कि वे ऐसे तत्वों को सहारा दे रहे हैं।"

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