यूपी चुनावः कानपुर में बीजेपी के खिलाफ चल रहा अंडर करंट, जुमलेबाजी से ऊबे लोग, बेरोजगारी, महंगाई का निदान चाहिए

कानपुर में मतदान में अब मात्र चार दिन बचे हैं। सभी दलों का प्रचार चरम पर पहुंचा हुआ है। इस बीच बीजेपी के लिए पीएम मोदी का कानपुर देहात का दौरा हो चुका है। अनेक केंद्रीय मंत्रियों के जमघट के बावजूद उनकी सभा में भीड़ जुटाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी।

फोटोः सोशल मीडिया
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अजय रत्न

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में कानपुर में मतदान 20 फरवरी को होना है। नगर की सभी दस सीटों पर पिछली बार के विधायक ही मैदान में हैं। सभी दस विधानसभा में औसतन 10 या 10 से अधिक उम्मीदवार हैं। महाराजपुर क्षेत्र से निवर्तमान मंत्री सतीश महा विगत तीस सालों से विधायक हैं। यहां से इस बार कांग्रेस ने कनिष्क पांडे और सपा ने फतेह बहादुर सिंह नाम के नौजवान उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।

किदवई नगर से बीजेपी के महेश त्रिवेदी पिछली बार भी जीते थे। बिठूर में भी बीजेपी ने सिटिंग विधायक अभिजीत सांगा को मौका दिया है। इसी प्रकार कल्याणपुर में भी पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रेमलता कटियार ने 2017 में अपनी विरासत बेटी नीलिमा कटियार को सौंपी। वे भी सिटिंग विधायक हैं। उनके खिलाफ सपा के सतीश निगम हैं, जो 2012 में विधायक प्रेमलता कटियार को हराकर निर्वाचित हुए थे। 2017 की लहर में भी सपा ने आर्य नगर से अमिताभ बाजपेई और सीसामऊ से इरफान सोलंकी ने भाजपा प्रत्याशी को मात दी थी। इस बार भी मैदान में हैं। वहीं छावनी से कांग्रेस के सोहेल अख्तर अंसारी ने भी पिछली बार लहर के विपरीत बाजी मारी थी। इस बार भी पूरे जोश से मैदान में हैं। गोविंद नगर से भी भाजपा के सिटिंग एमएलए मैदान में हैं।

मतदान में अब मात्र चार दिन बचे हैं। सभी दलों का प्रचार अपने चरम पर पहुंचा हुआ है। इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री ने भी यहां डेरा डाल दिया है। स्थानीय नेताओं की लगातार मांग के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी का कार्यक्रम मिला है। उनका रोड शो भी हुआ है। आप ने भी सभी दस सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। आप के राज्य प्रभारी ने भी दो दिन कानपुर नगर और दो दिन देहात में गुजारे हैं। बीजेपी में पीएम मोदी का कानपुर देहात का दौरा हो चुका है। अनेक केंद्रीय मंत्रियों के जमघट के बावजूद उनकी सभा में भीड़ जुटाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी।

इस दौरान बीजेपी के नेताओं से मुद्दों के बजाय सिर्फ जुमलेबाजी सुनने को मिली। यह थोड़ा सुखद अहसास है कि नेताओं के बजाय जनता मुद्दों को लेकर अधिक सजग है। शहर के मतदाताओं की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों में ज्यादा जागरूकता देखने को मिली। हकीकत यही है कि आम मतदाता जुमलेबाजी से तंग आ चुका है। यह कहना बिठूर, महाराजपुर बिल्हौर और घाटमपुर विधानसभा के किसानों का है।


ग्रामीण अन्ना गाय की समस्या से त्रस्त हैं। अन्ना गाय खेत की फसल को पूरा चर कर लेती हैं। ऐसे में किसान असहाय हो जाते हैं। जवाब में नेताओं से कोरे भाषण सुनने को मिलते हैं। किसानों ने अपने दर्द का इजहार करते हुए कहा कि पिछली बार भी यह मुद्दा उठाया था। तब विधायकों ने समस्या के समाधान का भरोसा दिलाया था। लेकिन पांच साल में किसी ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाकर समाधान कि कोशिश नहीं की। जबकि इस वजह से परिवारों में भूखमरी की समस्या हो जाती है।

यह समस्या कानपुर नगर, देहात और सिकंदरा के विधानसभा क्षेत्रों के दर्जनों गांवों की है। अन्ना गायों की समस्या बेहद गंभीर है। प्रत्येक गांव में किसान पालतू गाय जब दूध देना बंद कर देती हैं, तब उसे छोड़ देते हैं। इन गायों की गांव वार संख्या हजारों में है। किसान मतदाताओं की मांग है कि हर गांव में आश्रय स्थल बने और उनके गोबर मूत्र का उपयोग सरकार करे। ताकि चिकित्सा के माध्यम से लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हो।

सोमवार को पीएम मोदी ने किसानों की इस ज्वलंत समस्या का निदान सरकार बनने पर होने का भरोसा दिलाया। उनके भाषण पर कानपुर देहात के अकबरपुर विधानसभा के नन्हकू कहते हैं कि चुनाव के पहले बड़े-बड़े वादे होते हैं लेकिन उसके बाद सब खत्म होता है। किसान आनंद पटेल का कहना है कि किसानों की फसलों की सरकारी खरीद ढाक के तीन पात रही। भले ही धान का सरकारी मूल्य 1900 रुपए रहा लेकिन हमें तो व्यापारियों के हाथ 1300-1400 रुपए में ही बेचना पड़ा। जबकि फसल की प्रति क्विंटल लागत 2500 तक थी।

किसानों का मुख्य मुद्दा एमएसपी का कानूनी अधिकार भी है। किसानों के मुद्दों के कारण ही सत्ता दल को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में उत्साह नहीं है। तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में महाराजपुर, बिल्हौर, घाटमपुर, चौबेपुर, रनियां विधानसभा क्षेत्रों में आज भी प्रथम प्राथमिक विद्यालयों की शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार नहीं है। कोरोना काल में रनियां चौबेपुर के उद्योगों में कार्यरत मजदूर अब बंदी के कारण ई रिक्शा चला रहे हैं। ज्यादातर बेरोजगार हैं।


ऐसे ही बेरोजगार रामपाल कहते हैं कि रनिया विधायक की उदासीनता से प्लास्टिक फैक्ट्री बंद रही। देखा जाए तो कानपुर नगर की दस सीटों पर सभी निवर्तमान विधायक वो चाहे बीजेपी, कांग्रेस या सपा के हों, वही लड़ रहे हैं। बीजेपी ने सिर्फ देहात के भोगनीपुर से भगवती सागर को टिकट नहीं दिया। तो सपा से वे मैदान में हैं। नगर में बीजेपी की मंशा दो निवर्तमान विधायकों की सीट काटने की थी। लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कई के सपा में शामिल होने के बाद पार्टी ने बदलाव का रिस्क नहीं लिया। सभी को हरी झंडी दे दी।

ग्रामीण क्षेत्रों में तीन प्रकार के मतदाता हैं। कैडर पार्टी के समर्थक, जातीय आधार पर वोट देने वाले और तीसरे आम मतदाता जो मुद्दों पर वोट देते हैं। दलित में सरकार से नाराजगी है। लेकिन लाख पूछने पर अपनी समस्या खुलकर नहीं बताते। वहीं नगरीय क्षेत्र में ऐसा नहीं है। कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र के वोटर अंबेडकर समर्थक दल को वोट देंगे। ऑटो चालक महेंद्र कुमार महंगाई और आय में कमी को लेकर नाराज हैं और बएसपी को वोट देने की बात कहते हैं। वहीं जब उनसे पूछा जाता है कि दलित महिलाओं के उत्पीड़न पर उनकी नेता मुखर नहीं हुई, तो वे कहते हैं कि बस बहन जी के अलावा कहीं वोट नहीं देंगे।

तो मतदाताओं की ये कट्टरता जातीय कारणों से सवर्ण से लेकर पिछड़े और दलित तक में है। बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सवर्ण बनाम पिछड़ा खुलकर है। तो नगरीय क्षेत्र में थोड़ा कम है। नगरीय क्षेत्र में भाजपा का कैडर ज्यादा उत्साहित है। लेकिन आम मतदाता महंगाई से बेहद परेशान है। बीजेपी में इसकी चिंता है। तभी अमित शाह ने डेरा डाल दिया है। बेरोजगारी से युवाओं में आक्रोश है। शहर में प्राइवेट नौकरी की स्थिति बदतर है।

सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र से सुशील कुमार कहते हैं कि हर साल कोरोना महामारी है,तो क्या हम पढ़ लिख कर लेबर के काम के लिए चौराहे पर खड़े हों। ये दर्द एक नहीं हजारों युवाओं का है। बिकरू कांड बिल्हौर विधानसभा के चौबेपुर में हुआ था। कांग्रेस वहां से इनकाउंटर में मारे गए कुख्यात विकास दुबे के करीबी की मां को टिकट देना चाहती थी। लेकिन उनका नाम मतदाता सूची में नहीं था। उन्होंने इसे साजिश बताया है। आखिर में रिश्ते में साली नेहा तिवारी को कल्याणपुर से टिकट दिया। चूंकि बिल्हौर आरक्षित सीट है इसलिए वे कल्याणपुर से मैदान में हैं। हालांकि क्षेत्रीय लोग डरे हुए हैं। खुलकर बोलते नहीं हैं। लेकिन लोगों में उस परिवार के प्रति सहानुभूति भी है।

नगर के मुस्लिम मतदाता तो बातचीत में कहते हैं कि नागरिक संशोधन कानून सीएए के विरोध के कारण काफी दुश्वरियां झेलनी पड़ी। अब यही मौका है जब संगठित होकर किसी एक मजबूत उम्मीदवार को वोट दें। इसमें बाधा छावनी क्षेत्र है, जहां कांग्रेस, सपा, बसपा तीनों प्रत्याशी मुस्लिम हैं। हालांकि कोशिश यही होगी कि संभावित विजेता मुस्लिम को वोट दिया जाए। कुल मिलाकर इस बार 2017 जैसी लहर नहीं है। मतदाता तय कर चुका है। कई मतदाताओं ने तो कहा जो मुद्दे हैं, वो आप भी जानते हैं। यानी लहर अंडर करंट चल रहा है।

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