केंद्र से लंबी कानूनी लड़ाई के बाद नागालैंड के दंपति ने वापस पाई नागरिकता

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 22 वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे इस दंपति के हक में फैसला सुनाया। कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा कि किसी भी नागरिक की नागरिकता बिना किसी वजह के नहीं छीनी जा सकती।

नागालैंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता लियुनगम लियुथ्यु/ फोटो: नवजीवन
नागालैंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता लियुनगम लियुथ्यु/ फोटो: नवजीवन
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भाषा सिंह

भारत में पैदा हुए और भारत में ही मानवाधिकारों के लिए संघर्षरत रहे 68 वर्षीय लियुनगम लियुथ्यु को इस बात की बेहद खुशी है कि वह और उनकी पत्नी पिनगामला फिर से अपने देश के नागरिक हो गए हैं। यह नागा दंपत्ति इस साल क्रिसमस मणिपुर के अपने कस्बे उखहरुल में मना पाएगा। अब वे कनाडा की नागरिकता का त्याग कर देंगे, जो उन्हें मजबूरी में लेनी पड़ी थी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 23 अगस्त 2017 को अपनी नागरिकता वापस पाने के लिए 22 वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे इस दंपति के हक में फैसला सुनाया। कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि किसी भी नागरिक की नागरिकता बिना किसी वजह के नहीं छीनी जा सकती। इस मामले में यह बात भी सामने आई कि इस दंपति की भारतीय नागरिकता कभी रद्द ही नहीं हुई थी। सरकार कोर्ट को यह नहीं बता पाई कि उनकी नागरिकता भारत सरकार ने किस फैसले और किस आधार पर खारिज की थी। सरकार लियुनगम लियुथ्यु के पासपोर्ट को जब्त करने संबंधी कोई फाइल भी नहीं पेश कर पाई। कोर्ट के फैसले के बाद भी यह एक रहस्य बना हुआ है कि इन भारतीय नागरिकों को 22 साल तक किस वजह से भारतीय नागरिकता और भारतीय पासपोर्ट से महरूम रखा गया।

मेरा भारतीय न्याय प्रणाली पर विश्वास दोबारा स्थापित हुआ है। मणिपुर जैसे राज्य से ताल्लुक रखने और नागा आंदोलन का समर्थक होने के बावजूद मैंने अपनी वकील शोमाना खन्ना और अपने युवा रिश्तेदारों की मदद से यह मुकदमा जीता। अब भारत में मैं आराम से रह सकूंगा

हालांकि उनकी इस मुश्किल कानूनी लड़ाई से यह बात भी साफ हुई है कि कोई भी सरकार किसी भी व्यक्ति को नागरिकता के उसके अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। किसी विचारधारा या संगठन का सदस्य होने मात्र से देश की नागरिकता पर उसका अधिकार खत्म नहीं होता। लियुनगम लियुथ्यु ने नवजीवन को बताया कि इतने वर्षों तक देश की मिट्टी और अपने लोगों से दूर रहना उनके लिए बहुत तकलीफदेह था, लेकिन उन्हें इस बात की खुशी भी है कि आखिरकार न्याय की जीत हुई। उन्होंने कहा, ‘मेरा भारतीय न्याय प्रणाली पर विश्वास दोबारा स्थापित हुआ है। मणिपुर जैसे राज्य से ताल्लुक रखने और नागा आंदोलन का समर्थक होने के बावजूद मैंने अपनी वकील शोमाना खन्ना और अपने युवा रिश्तेदारों की मदद से यह मुकदमा जीता। अब भारत में मैं आराम से रह सकूंगा क्योंकि इतने सालों तक विदेश में रहने में मुझे हमेशा असुविधा हुई। मैं सहज नहीं रह पाता था, तनाव रहता था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए। अपना देश, अपने लोग अपने ही होते हैं।’ इतना कहते-कहते लियुनगम का गला रुंध गया।

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) को 90 के दशक में कड़ी चुनौती देने वाले लियुनगम लियुथ्यु लंबे समय से केंद्र और राज्य सरकार के निशाने पर थे और उन्हें नागा उग्रवादी समूहों के साथ जोड़कर देखा जा रहा था। ये दंपत्ति जब एक सम्मेलन के लिए बैंकॉक गया हुआ था, तब वहां उनकी पत्नी पिनगामला का पासपोर्ट खो गया और उन्होंने डुप्लीकेट पासपोर्ट के लिए आवेदन किया जो उन्हें नहीं दिया गया। 1995 से ही लियुनगम लियुथ्यु को परेशान करना शुरू कर दिया गया था। जब वे कनाडा के ओटावा शहर में थे तो भारतीय उच्चायोग ने उन्हें बताया कि उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया गया है और वहां से उन्हें निकाल दिया गया।

सरकार कितना झूठ बोल सकती है, नागरिकों के अधिकारों का खुलेआम कितना हनन कर सकती है, ये मामला इसका उदाहरण है। लियुनगम लियुथ्यु के परिवार ने जबरदस्त हौसला दिखाया और उम्मीद नहीं छोड़ी।

इसके बाद उन्होंने इंसाफ की लड़ाई शुरू की। लेकिन उनके हाथ में कुछ भी नहीं था। भारत में उनके भतीजे चिंग्या लियुथ्यु ने उनकी मदद का जिम्मा उठाया। केंद्र सरकार से महज इतनी जानकारी मिली कि उग्रवादी संगठनों से जुड़े होने की वजह से लियुनगम लियुथ्यु की नागरिकता खारिज कर दी गई है। इससे ज्यादा कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था। 2008-09 के आसपास वे वरिष्ठ वकील शोमाना खन्ना के संपर्क में आए। शोमाना ने नवजीवन को बताया, ‘अपने 23 साल के वकालत के अनुभव में मैंने ऐसा मामला नहीं देखा था। कोई भी दस्तावेज नहीं था, बस ये दिखाई दे रहा था कि नाइंसाफी हुई है। तीन साल सिर्फ सूचना के अधिकार के जरिए जानकारी निकाली गई। एक साल याचिका तैयार करने में लग गया और फिर 2013 से 2017 तक यह मुकदमा चला। सरकार कितना झूठ बोल सकती है, नागरिकों के अधिकारों का खुलेआम कितना हनन कर सकती है, ये मामला इसका उदाहरण है। लियुनगम लियुथ्यु के परिवार ने जबरदस्त हौसला दिखाया और उम्मीद नहीं छोड़ी। लियुनगम लियुथ्यु के अपने बच्चे नहीं है, लेकिन भाइयों के बच्चों ने उन्हें वापस लाने के लिए जी-जान लगा दी।’

इस मामले में याचिकाकर्ता लियुनगम लियुथ्यु के भतीजे चिंग्या लियुथ्यु ने कहा, ‘इस फैसले से हमें बहुत राहत मिली है। हमारा वास्ता लियुथ्यु कुनबे से है, जहां अपने बुजुर्गों को बहुत आदर-सम्मान दिया जाता है। और वैसे भी कोई नागा इतनी बड़ी नाइंसाफी को बर्दाश्त नहीं कर सकता। हम इस मुकदमे को लड़ते-लड़ते ही बड़े हुए हैं। लेकिन अब केंद्र को जवाब मिल गया है कि पूर्वोतर भारत के लोगों के साथ वह हर मनमानी नहीं कर सकता।’

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Published: 07 Sep 2017, 2:04 PM