हरियाणा ने भी चंडीगढ़ पर ठोंका दावा, पंजाब के साथ सभी विवादों का मांगा हल, विपक्ष के हमलों से घिरे सीएम खट्टर
आखिर हरियाणा ने भी पंजाब के जवाब में कह दिया कि चंडीगढ़ पर हरियाणा का हक था, है और रहेगा। विधानसभा के बुलाए गए एक दिनी विशेष सत्र में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास कर दिया गया।
आखिर हरियाणा ने भी पंजाब के जवाब में कह दिया कि चंडीगढ़ पर हरियाणा का हक था, है और रहेगा। विधानसभा के बुलाए गए एक दिनी विशेष सत्र में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास कर दिया गया। साथ ही जैसे कि पहले से ही संभावना थी विधानसभा में पंजाब के साथ सभी विवादित मसलों की पोटली खोल दी गई। एसवाईएल, हिंदी भाषी क्षेत्र, अलग हाईकोर्ट, पंजाब यूनिवर्सिटी में हक, विधान सभा की इमारत और भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) में पूरा अधिकार, हाईकोर्ट और चंडीगढ़ में कर्मचारियों के अनुपात में हरियाणा का हिस्सा। यहां तक कि पंजाब-हरियाणा सचिवालय की संयुक्त बिल्डिंग में हरियाणा के साथ भेदभाव का मसला भी विधानसभा में उठा। विपक्ष ने सरकार पर हमला भी बोला। कांग्रेस ने सवाल किया कि सीएम इतने सालों में क्या कर रहे थे। पंजाब के प्रस्ताव पास करने के बाद ही सरकार क्यों जागी। लेकिन सरकार के सामने तब अजीब स्थिति पैदा हो गई जब गृह मंत्री अनिल विज ने सरकार की लाइन से अलग जाते हुए अलग राजधानी के लिए पैसा देने की मांग कर दी।
हरियाणा विधानसभा के इतिहास में पांच अप्रैल का दिन एक नई इबारत लिखने के लिए याद किया जाएगा। 11 बजे विधानसभा की कार्यवाही आरंभ होते ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सरकार का संकल्प पढ़ना शुरू किया। उन्होंने कहा कि हरियाणा राज्य पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 की धारा-3 के प्रावधानों के तहत अस्तित्व में आया था। इस अधिनियम में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की ओर से पंजाब के पुनर्गठन को प्रभावी बनाने के लिए कई उपाय किए गए थे। सतलुज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) के निर्माण द्वारा रावी और ब्यास नदियों के पानी में हरियाणा का अधिकार ऐतिहासिक, कानूनी, न्यायिक और संवैधानिक तौर पर बहुत समय से स्थापित है। एसवाईएल नहर को शीघ्र पूरा करने का आग्रह करते हुए इस सदन ने सर्वसम्माति से कम से कम सात बार प्रस्ताव पारित किए हैं। कई अनुबंधों, समझौतों, ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों और देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों में पानी पर हरियाणा के दावे को बरकरार रखा है और एसवाईएल नहर को पूरा करने का निर्देश दिया है। इन निर्देशों और समझौतों की अवज्ञा करते हुए हरियाणा के दावों को अस्वीकार करने के लिए पंजाब ने कानून बनाए। इंदिरा गांधी समझौता, राजीव-लोंगोवाल समझौता और वेंकट रमैया आयोग ने पंजाब के क्षेत्र में पड़ने वाले हिंदी भाषी क्षेत्रों पर हरियाणा के दावे को स्वीकार किया है। हिंदी भाषी गांव भी हरियाणा को देने का काम पूरा नहीं हुआ है। सरकार के संकल्प में आगे कहा गया कि यह सदन 1 अप्रैल, 2022 को पंजाब की विधानसभा में पारित प्रस्ताव पर गहन चिंता प्रकट करता है, जिसमें सिफारिश की गई है कि चंडीगढ़ को पंजाब में स्थानांतरित करने के मामले को केंद्र सरकार के साथ उठाया जाए। यह हरियाणा के लोगों को स्वीकार्य नहीं है। हरियाणा ने राजधानी क्षेत्र चंडीगढ़ पर अपना अधिकार लगातार बरकरार रखा है। इसके अलावा इस सदन ने इससे पहले भी संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार चंडीगढ़ में हरियाणा के लिए अलग उच्च न्यायालय के लिए प्रस्ताव पारित किया है। संकल्प में आगे भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में स्थायी सदस्यों की नियुक्ति को लेकर हुए नियमों में बदलाव को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम-1966 की भावना के खिलाफ बताया गया। यह अधिनियम नदी योजनाओं को पंजाब-हरियाणा की साझा संपत्ति मानता है। संकल्प में आगे कहा गया कि सदन इस बात पर चिंता ब्यक्त करता है कि पिछले कुछ वर्ष से केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) चंडीगढ़ के प्रशासन में हरियाणा सरकार से प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले अधिकारियों की हिस्सेदारी में कमी हो रही है। इन परिस्थितियों में यह सदन केंद्र सरकार से यह आग्रह करता है कि वह ऐसा कोई कदम न उठाए, जिससे मौजूदा संतुलन बिगड़ जाए। जब तक पंजाब के पुनर्गठन से उत्पन्न सभी मुद्दों का समाधान न हो जाए तब तक सद्भाव बना रहे। यह सदन केंद्र सरकार से यह भी आग्रह करता है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के मुताबिक एसवाईएल के निर्माण के लिए उचित उपाय करे। वह पंजाब सरकार पर दबाव बनाए कि वह अपना मामला वापस ले और हरियाणा को पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी ले जाने और उसके समान वितरण के लिए हांसी-बुटाना नहर की अनुमति दे। सरकार के संकल्प में अंत में लिखा गया है कि सदन केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने का भी आग्रह करता है कि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन में हरियाणा सरकार के अधिकारियों के लिए निर्धारित अनुपात को उसी अनुपात में जारी रखा जाए, जब पंजाब के पुनर्गठन की परिकल्पना की गई थी।
सदन में प्रस्तुत प्रस्ताव के मसौदे को लेकर भी शायद सरकार में असमंजस था। पहले तैयार किए गए मसौदे में अलग उच्च न्यायालय और चंडीगढ़ में हरियाणा के अधिकारियों की आनुपातिक हिस्सेदारी की बात नहीं थी। यह बाद में शामिल किया गया। सदन में पहले वितरित प्रस्ताव के मसौदे में उपरोक्त दोनों बातें शामिल नहीं थीं। विपक्ष के यह सवाल उठाने पर 15 मिनट के लिए सदन स्थगित किया गया। फिर पूरा प्रस्ताव विधायकों में वितरित करने के बाद चर्चा की शुरुआत हुई। मुख्यमंत्री के पूरा संकल्प पढ़ने के बाद चर्चा का आरंभ जजपा के ईश्वर सिंह ने किया। ईश्वर सिंह ने कहा कि चंडीगढ़ में 60:40 के अनुपात में हरियाणा की हिस्सेदारी तो आरंभ से ही है। पंजाब यूनिवर्सिटी में भी हमारा हक है। पंजाब का प्रस्ताव असंवैधानिक और निंदनीय है।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा कि हरियाणा के साथ हमेशा खिलवाड़ होता रहा है। पंजाब में विधानसभा में आया प्रस्ताव एक राजनीतिक जुमला है। शाह कमिशन ने बहुमत से चंडीगढ़ हरियाणा को दिया है। पंजाब बिग ब्रदर बनना चाहता है, जो हमें कबूल नहीं है। वह भाईचारे को बिगाड़ने चाहते हैं। चंडीगढ़ में हरियाणा और पंजाब का 60:40 का अनुपात कम नहीं होना चाहिए। इसके लिए हम पीएम से लेकर राष्ट्रपति तक सभी से मिलने चलने के लिए तैयार हैं। हुड्डा ने चंडीगढ़ में हमेशा प्रशासक के तौर पर पंजाब का ही राज्यपाल होने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि या तो चंडीगढ़ का स्वतंत्र प्रशासक बनाया जाए नहीं तो एक साल पंजाब का राज्यपाल प्रशासक रहे तो एक साल हरियाणा का राज्यपाल। हुड्डा ने कहा कि पहले पंजाब की राजधानी गर्मियों में शिमला होती थी और सर्दियों में चंडीगढ़। ऐसे तो यह मांगने लगेंगे कि शिमला भी हमें दे दो। गृह मंत्री अनिल विज बोलने के लिए खड़े हुए तो सरकार की किरकरी हो गई। सरकार के प्रस्ताव से अलग बोलते हुए विज ने कहा कि अगर हम नई कैपिटल बनाएं तो हमें पैसा केंद्र से मिलना चाहिए। कांग्रेस विधायकों ने इसका विरोध किया, जबकि सत्ता पक्ष हक्का–बक्का था।
इनेलो के अभय चौटाला ने इसे लेकर सरकार पर हमला बोल दिया। अभय चौटाला ने कहा कि विज ने सरकार के प्रस्ताव को ही यह कर खत्म कर दिया है कि नई राजधानी के लिए केंद्र हमें पैसा दे। फिर तो सरकार को नया प्रस्ताव लाना चाहिए। अभय चौटाला ने सीधे सीएम से सवाल करते हुए कहा कि एसवाईएल को लेकर हरियाणा के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2016 में आ गया था। उसके बाद हुई सर्वदलीय बैठक में फैसला लिया गया था कि इसे लेकर राष्ट्रपति और पीएम से मिलेंगे। सीएम बताएं कि इसके बाद उन्होंने आज तक क्या किया। बीबीएमबी पर भी केंद्र के बदलाव करने के बाद सीएम की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। केंद्र से विरोध तक नहीं जताया। यह तो पंजाब ने प्रस्ताव पास कर दिया तो आपको भी लाना पड़ा।
वहीं दुष्यंत चौटाला का कहना था कि चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी है और रहेगी। की इमारत में भी 60:40 के अनुपात में बटवारा हुआ था, लेकिन हरियाणा को महज 27 प्रतिशत ही मिला है। हाईकोर्ट में भी हालत यह है कि पहले 14 जज अगर देखे जाएं तो 13 पंजाब के होंगे। हाईकोर्ट की मैन पावर में भी हरियाणा को 50 प्रतिशत हक मिले। पंजाब यूनिवर्सिटी में भी हरियाणा को 60:40 के अनुपात में हिस्सा मिले। कांग्रेस विधायक और पूर्व स्पीकर डा. रघुवीर कादियान ने कहा कि चंडीगढ़ में लागू हुए सर्विस रूल का धुआं उठा पंजाब में और चिंगारी आई हरियाणा में। यह सर्विस रूल की चिंगारी कहां तक जाएगी हमें पता नहीं। इसमें आंदोलन-प्रदर्शन कुछ भी हो सकता है। किसान आंदोलन के बाद भाईचारा खड़ा है। संघर्ष का बिगुल बजाया है तो आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। 56 साल में पानी की कमी से हरियाणा का भारी नुकसान हुआ है। सुप्रीम कोर्ट इस बात का संज्ञान ले कि उसका फैसला लागू क्यों नहीं हुआ। कांग्रेस की किरण चौधरी का कहना था कि सचिवालय में भी पंजाब के पास दो-ढाई फ्लोर अतिरिक्त हैं। एसवाईएल पर आज तक हमने कोई गंभीर प्रयास नहीं किए। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव में यह भी डाला जाए कि एक टाईम फ्रेम के अंदर एसवाईएल का मसला हल हो। कांग्रेस विधायक कुलदीप बिश्नोई ने कहा कि 1982 में एसवाईएल की नींव पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजन लाल ने ही रखी थी। गीता भुक्कल ने मोहाली में बने अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का मुद्दा उठाया। जवाब में सीएम उन पर सोते रहने के लगे आरोपों पर सफाई देते नजर आए। हुड्डा ने कहा कि एसवाईएल पर हरियाणा के हक में आया सर्वोच्च अदालत का फैसला न लागू किए जाने पर सरकार को कंटेम्ट ऑफ कोर्ट का केस डालना चाहिए। इस पर भी सीएम राय लेने की बात कहते रहे।
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Published: 05 Apr 2022, 10:00 PM