कैराना: योगी सरकार की उपेक्षा से दुखी 2013 के दंगा पीड़ितों का सवाल, ‘क्या हम इंसान नहीं हैं?’

2013 के दंगों के बाद यहां 50 हजार से ज्यादा दंगा पीड़ितों ने शरण ली थी। इसी कैम्प में ठंड से सिकुड़कर एक दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। इन दंगा पीड़ितों की झोपड़ियों को भी बुलडोजर से गिरा दिया था।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

आस मोहम्मद कैफ

कैराना उपचुनाव की घोषणा अगले महीने होने के संकेत हैं और इसके साथ ही यहां बंटवारे की सियासत जोर पकड़ रही है। बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई इस लोकसभा सीट पर बीजेपी अब उनकी पुत्री मृगांका सिंह को चुनाव लड़ाने की तैयारी में है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य यहां आए थे और उन्होंने मृगांका को लड़ाने की बात कही थी। यहां उनके पिता को पलायन का मुद्दा उठाने के लिए काफी चर्चा मिली थी। दिवंगत हुकुम सिंह का कहना था कि कैराना में मुसलमानों के बढ़ते वर्चस्व से हिन्दुओं का पलायन हुआ है।

इसके बाद योगी राज में यहां 14 बदमाशों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया जो सभी मुसलमान थे। अब हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह यहां चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं तो उन्होंने अपने पिता के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए कथित तौर पर पलायन कर चुके बहुसंख्यक समुदाय को कस्बे में वापस लाने की कोशिश कर रही है। मृगांका सिंह कहती हैं, "अब कानून के राज वाली सरकार है। कैराना अपराध और अपराधियों से मुक्त कर दिया गया है। इसलिए यहां से पलायन कर गए लोगों को अब वापस लौट आना चाहिए। हम इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। वे लोग लौट आएंगे।” सरकार भी इसके लिए गंभीर है। मृगांका सिंह के इन प्रयासों के बाद कैराना की राजनीति में काफी सरगर्मी आ गई है। 2013 के दंगों के बाद यहां 50 हजार से ज्यादा दंगा पीड़ितों ने शरण ली थी। उस समय सबसे बड़ा कैम्प मलकपुर में था जो कैराना से बिल्कुल सटा हुआ था। इसी कैम्प में ठंड से सिकुड़कर एक दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। इन दंगा पीड़ितों की झोपड़ियों को भी बुलडोजर से गिरा दिया था।

बागपत, बड़ौत और शामली के बहुत से गांवों के हजारों दंगा पीड़ित वापस लौटकर अपने गांवों में नही गये और कभी इसका गंभीर प्रयास भी नही हुआ। अब जब कैराना में बदमाशों के डर या अन्य कारणों से कैराना छोड़ कर चले गए बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की वापसी के लिए प्रयास हो रहे हैं तो दंगा पीड़ितों के जख्म भी हरे हो गए हैं।

इस सबके बीच दंगा पीड़ितों का कहना है कि क्या वे इंसान नहीं हैं और क्यों उनकी किसी को परवाह नही है। दंगा पीड़ित अपना दुख सामने रख रहे हैं। कैराना के जोला में रह रहे 61 साल के महताब कहते हैं, "काश, कोई हमसे भी आकर पूछ लेता घर याद आता है क्या!” महताब 2013 में हुए भीषण मुजफ्फरनगर दंगे में फुगाना से अपने परिवार के साथ आ गए थे। महताब जैसे हजारों लोगो की यही कहानी है। शाहपुर बसी के नदीम कहते हैं, “घर कौन नही जाना चाहता! मगर सरकार ईमान तो साबित करे।”

कैराना के मेहराब हसन सवाल पूछते है, "कैराना में बदमाशों से परेशान व्यपारियों को लाने की कोशिश हो रही है, उनका स्वागत है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 14 बदमाशों का पुलिस ने सफाया कर दिया। इससे लोगों में भरोसा पैदा हुआ। सरकार अक्सर दंगा पीड़ितों को वापस उनके गांव जाने की सलाह देती है मगर उनमे भरोसा कभी पैदा नही कर पाई है। यह सीधे सीधे पक्षपात का मामला है। दंगा पीड़ितों का दिल एक बार फिर टूट गया है।” कैराना में बागपत से आकर शरण लेने वाले महफूज कहते हैं, "मैं क्या कह सकता हूं, जब कोई सुनता ही नही है।"

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia