मालेरकोटला बना पंजाब का ‘शाहीन बाग’, सिर पर बसंती दुपट्टा बांधे महिलाओं की CAA के खिलाफ हुंकार

पंजाब के मालेरकोटला में इन दिनों ज्यादातर महिलाओं के सिरों पर बसंती दुपट्टा मिलेगा और पुरुषों के सिर पर बसंती रंग की पगड़ी। CAA के विरोध के साथ-साथ मालेरकोटला अमन और सद्भाव और हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई एकता की भी नई मिसाल प्रस्तुत कर रहा है।

फोटो: अमरीक
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अमरीक

देश की राजधानी दिल्ली से 312 किलोमीटर दूर पंजाब के जिला संगरूर का कस्बा मालेरकोटला, जहां बाकायदा एक और 'शाहीन बाग' बन गया है। यों सूबे के कई शहर शाहीन बाग का नजारा इन दिनों पेश कर रहे हैं लेकिन मुस्लिम बहुल मालेरकोटला का मंजर थोड़ा अलहदा है। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ मालेरकोटला में 28 दिन से महिलाओं का धरना लगा हुआ है और प्रतिदिन हजारों की तादाद में महिलाएं सड़कों पर जुलूस निकालकर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। पूरे राज्य से हर मजहब की महिलाएं आकर उनका साथ दे रही हैं। यह सिलसिला 28 दिन से निरंतर जारी है और चंद महिलाओं से शुरू हुआ था अब इस काफिले में हजारों की संख्या रहती है। पंजाब में ऐसा पहली बार हो रहा है कि महिलाएं इतनी बड़ी तादाद में लगातार धरना दें और जुलूस निकालकर रोष प्रदर्शन करें। साथ ही यह भी कि, मुस्लिम समुदाय की महिलाएं इस मानिंद पहली बार मलेरकोटला में घर की दहलीज से बाहर आकर 'शाहीन बाग अवधारणा' का हिस्सा बन रही हैं।

मालेरकोटला के 'शाहीन बाग' के संचालन के लिए बाकायदा जॉइंट एक्शन कमेटी बनी हुई है और उसी के बैनर तले, दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर सब कुछ हो रहा है। धीरे-धीरे पंजाब के शाहीन बाग के काफिले में इजाफा हो रहा है और राज्य के कोने-कोने से महिलाएं आकर इसमें शिरकत कर रही हैं।

फोटो: अमरीक
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रविवार को मालेरकोटला में अद्भुत दृश्य था। हजारों की तादाद में महिलाओं ने सिर पर बसंती दुपट्टा पहनकर 3 किलोमीटर लंबा विरोध जुलूस निकाला। बसंती रंग अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह को बहुत प्रिय था और उनका प्रतीक माना जाता है। मालेरकोटला में इन दिनों ज्यादातर महिलाओं के सिरों पर बसंती दुपट्टा मिलेगा और पुरुषों के सिर पर बसंती रंग की पगड़ी। CAA के विरोध के साथ-साथ मालेरकोटला अमन और सद्भाव तथा हिंदू-मुस्लिम -सिख-ईसाई एकता की भी नई मिसाल प्रस्तुत कर रहा है। पंजाब में CAA के एकजुट विरोध ने यह नई नजीर भी कायम कर दी है।


मालेरकोटला के 28 दिन से जारी विरोध-प्रदर्शन में निरंतर शिरकत कर रहीं पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की छात्रा नाजिया खान कहती हैं, "हुकूमत को जान लेना चाहिए कि शाहीन बाग महज दिल्ली में ही नहीं है बल्कि और भी कई जगह बन गए हैं। CAA के विरोध में सब समुदाय के लोग मालेरकोटला के शाहीन बाग में जुट रहे हैं।"

मालेरकोटला की रहने वालीं 60 वर्षीया नुसरत के मुताबिक, "पहली बार मुसलमान महिलाएं इस तरह घर से बाहर आकर धरना प्रदर्शन कर रही हैं। यह हमारे मान-सम्मान और वजूद का सवाल है। पंजाब के कोने-कोने से लोग आकर हमारा साथ दे रहे हैं तो हमें लगता है केंद्र की सरकार बेशक हमें पराया समझे लेकिन इस राज्य के लोग अपने महान गुरुओं के फलसफे को नहीं भूले हैं कि मजलूम होते लोगों का साथ देना सबसे बड़ा मजहब है।"

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इसी कस्बे की 29 साल की परवीन अंसारी कहती हैं, "मालेरकोटला से दशम गुरु के साहिबजादों की कुर्बानी के खिलाफ पुरजोर आवाज उठी थी। अब सरकारी शह वाली असहिष्णुता के खिलाफ उठ रही है। शहीद भगत सिंह हमारे महानायक हैं। इसलिए हमने उनकी कुर्बानी का प्रतीक बसंती दुपट्टा पहन लिया है।"

जॉइंट एक्शन कमेटी के संयोजक नदीम अनवर के अनुसार, "मालेरकोटला के सरहिंद गेट पर हमारा स्थाई धरना जारी है। महिलाएं प्रतिदिन सुबह से लेकर रात साढ़े आठ बजे तक धरने पर बैठती हैं। रात को वहां कोई नहीं होता लेकिन हमारे टेंट ज्यों के त्यों खड़े रहते हैं।"


धरने में 'हिंदू मुस्लिम सिख इसाई आपस में हैं भाई भाई' के नारे अक्सर गूंजते रहते हैं। प्रदर्शनकारियों के हाथों में भगत सिंह की तस्वीरें होती हैं। भारतीय किसान यूनियन की महिला अध्यक्ष हरिंदर कौर बिंदु कहती हैं, "पंजाब के सभी समुदायों के बेशुमार लोग दिल्ली के शाहीन बाग की धरनाकारी महिलाओं के समर्थन में आगे आ रहे हैं। मालेरकोटला में भी शाहीन बाग बन गया है।"

फिलहाल मालेरकोटला के शाहीन बाग को भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहा), पेंडू खेत मजदूर यूनियन की महिला विंग, पंजाब छात्र संघ, जमात-ए-इस्लामी हिंद, जारका जाफरी और अन्य कुछ संगठन पुरजोर समर्थन दे रहे हैं। मानसा की एक महिला बलजीत कौर के अनुसार, "जब-जब जब राजनेता देश को धर्म या जाति के आधार पर बांटने की कोशिश करते हैं तब-तब महिलाएं आगे आकर उनके मंसूबे रोकती हैं। इसीलिए केंद्र सरकार की सीएए और एनआरसी के खिलाफ हम यहां शाहीन बाग में रोष प्रदर्शन में बैठी महिलाओं के समर्थन में उतरे हैं।"

पंजाब खेत मजदूर यूनियन के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह सीवेवाला कहते हैं, "मोदी सरकार धर्म के आधार पर देश में नफरत फैला रही है, जो हमें किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं और इसीलिए हमारी महिलाओं ने इसके खिलाफ सामने आकर रोष प्रदर्शन करने का फैसला किया है।" मालेरकोटला में CAA-NRC के खिलाफ 16 फरवरी को एक बड़ी रैली आयोजित की जा रही है।


गौरतलब है कि पंजाब के मानसा, लुधियाना, अमृतसर, संगरूर, बरनाला और चंडीगढ़ के विभिन्न शहरों कस्बों में भी शाहीन बाग के समर्थन में मुतवातर धरना प्रदर्शन और रोष रैलियां हो रही हैं। इन जगहों पर भी अपने अपने तरीके से 'शाहीन बाग' बनाए जा रहे हैं। प्रसंगवश, आज प्रमुख पंजाबी दैनिक 'पंजाबी ट्रिब्यून' ने 'पंजाब के शाहीन बाग' शीर्षक से एक महत्वपूर्ण संपादकीय भी प्रकाशित किया है जो इस बात की पुष्टि भी करता है कि पंजाब में CAA-NRC का कितना तीखा विरोध हो रहा है और कितनी शिद्दत से दिल्ली के शाहीन बाग को समर्थन दिया जा रहा है। इस सिलसिले में चंडीगढ़ में बड़ी तादाद में प्रगतिशील लेखकों और बुद्धिजीवियों का विरोध प्रदर्शन भी महत्वपूर्ण है। जन आंदोलनों के गढ़ माने जाने वाले मालवा इलाके में 'संविधान बचाओ मंच' ने शाहीन बाग के समर्थन में बड़ी मुहिम शुरू कर दी है। पंजाब के विभिन्न शैक्षणिक इदारों तक यह मुहिम फैल रही है।

प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष और पंजाब के नामवर चिंतक-बुद्धिजीवी प्रोफेसर सुखदेव सिंह सिरसा कहते हैं, "केंद्र के जनविरोधी कानूनों के खिलाफ मालेरकोटला जैसे 'शाहीन बाग' पंजाब के हर शहर-कस्बे में बनाए जाने की दरकार है ताकि सरकार को पता चल सके कि उसके फैसलों का अंधा समर्थन ही नहीं होता बल्कि विरोध भी होता है।" गौरतलब है कि पंजाब देश का पहला सूबा है जहां पहले दिन से ही कतिपय प्रगतिशील और वामपंथी संगठन सीएए, एनआरसी, जामिया हिंसा और अनुच्छेद 370 निरस्त करने का पुरजोर विरोध हो रहा है और बड़ी तादाद में आम लोग एकजुट होकर रोष प्रदर्शनों में शिरकत कर रहे हैं। कहीं-कहीं संतराम उदासी के गीत गाए जाते हैं तो कहीं पाश की जगप्रसिद्ध कविता 'हम लड़ेंगे साथी' गूंजती है। गुरशरण सिंह और सफदर हाशमी के नुक्कड़ नाटक भी दिखाए जाते हैं।

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