पीएम का देश के नाम तीसरा संदेश: ताली-थाली, लॉकडाउन के बाद दीया-मोमबत्ती, असली तैयारियों के बारे में कब बताएंगे !

प्रधानमंत्री के इस आह्वान से भक्तों के दिमाग की बत्ती भले ही जल गई हो, लेकिन गरीबों की उम्मीदों का दीया बुझ गया, मध्यवर्घ की तकलीफों की आंच तेज हो गई, जन सामान्य को होने वाली तकलीफों के अंत की राह धूमिल दिखने लगी।

फोटो: सोशल मीडिया
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तसलीम खान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना को लेकर आज तीसरी बार देश को संदेश दिया। उम्मीद थी कि वे इस बीमारी से बचाव के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों और तैयारियों के बारे में बताएंगे, लेकिन वे तो फिर से एक नया टोटका बताकर चले गए। गुरुवार शाम जब प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर जब देश को बताया कि वे फिर से टीवी पर आने वाले हैं, कुछ कहने वाले हैं, तो इसमें चौंकाने वाली दो बातें थीं। एक तो यह कि वे एक वीडियो संदेश देने वाले हैं, यानी देशवासियों से सीधे बात नहीं करेंगे और पहले से तय किसी संदेश को बोलकर सुनाने वाले हैं। और दूसरी जो चौंकाने वाली थी, वह थी कि इस बार पर वे टीवी पर रात 8 बजे नहीं, सुबह 9 बजे आने वाले हैं।

राष्ट्र के नाम संदेश का समय बदले जाने पर लोगों के मन में उत्सुकता थी कि संभवत: कोई बड़ा ऐलान होगा, या कोरोना से लड़ाई में हमारे यानी भारतवासियों की किसी कोशिश की कामयाबी को बताया जाएगा, इस बीमारी से लड़ने में दिन रात जुटे हजारों लाखों, डॉक्टरों, नर्सों, मेडिकल स्टाफ, पुलिस कर्मी, सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मी और लोगों को रोजमर्रा की चीज़े मुहैया करा रहे लोगों केलिए कोई घोषणा होगी, कोई योजना होगी। लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और वंचित तबके के लिए किसी नए रोडमैप का ऐलान होगा।


यह वह बातें या कदम थे जिन्हें जान-सुनकर देशवासियों का न सिर्फ भरोसा बढ़ता बल्कि उन्हें संतोष भी होता कि सरकार हर तबके के लिए फिक्रमंद है, उसे सबकी चिंता है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत लॉकडाउन के 9 दिन के दौरान लोगों के अनुशासन और संयम की तारीफ की। उन्होंने ताली-थाली का जिक्र किया, लेकिन उसकी शब्दावली बदलकर उसे घंटी बजाना बताया। उन्होंने शासन-प्रशासन के प्रयासों की भी प्रशंसा की। पीएम ने बताया कि जनता कर्फ्यू और घंटी बजाने को आज दुनिया के कई देश दोहरा रहे हैं। उन्होंने इसे एक शक्ति का नाम दिया।

प्रधानमंत्री ने जब यह कहा कि, “आज जब देश के करोड़ों लोग घरों में है तब किसी को भी लग सकता है कि वह अकेला क्या करेगा, कुछ लोग यह भी सोच रहे होंगे कि इतनी बड़ी लड़ाई को वह कैसे लड़ पाएंगे। यह प्रश्न भी मन में आते होंगे कि कितने दिन ऐसे काटने होंगे।“ उनके ऐसा बोलने से एकबारगी लगा कि प्रधानमंत्री लॉकडाउन की अवधि को कम या ज्यादा करने वाले हैं, लॉकडाउन के दौरान कुछ नए किस्म का प्रयोजन बताने वाले हैं। लेकिन उन्होंने तो इन सारी उम्मीदों को नजरंदाज़ कर दिया।


प्रधानमंत्री ने जब कहा कि, “कोरोना महमामारी के अंधकार से हमें प्रकाश की तरफ जाना है। जो भी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं हमारे गरीब भाई बहन, उन्हें कोरोना संकट से आशा की तरफ ले जाना है। कोरोना से जो अंधकार और अनिश्चतता पैदा हुई है उसे प्रकाश के तेज से चारों दिशाओं में फैलाना है।“ पीएम के इस कथन से उम्मीद जगी कि शायद गरीबों के लिए कुछ घोषणा होने वाली है, गरीबों के लिए वे सामर्थ्यवान लोगों से कुछ मांगने वाले हैं, या किसी सरकारी योजना की घोषणा करने वाले हैं। लेकिन...

लेकिन उन्होंने इसके बाद जो कहा, वहा अद्भुत था। उन्होंने कहा, “इस रविवार 5 अप्रैल को हम सबको मिलकर कोरोना के संकट के अंधकारर को चुनौती देनी है, उसे प्रकाश की ताकत का परिचय कराना है, 5 अप्रैल को हमें 130 करोड़ देशवासियों की महाशक्ति का जागरण करना है...5 अप्रैल रविवार को रात 9 बजे मैं आप सबके 9 मिनट चाहता हूं, घर की सभी लाइटें बंद करके, घर के दरवाजे पर या बालकनी में खड़े रहकर 9 मिनट तक मोमबत्ती, दीया या मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाए टॉर्च जलाएं...”


प्रधानमंत्री के इस आह्वान से भक्तों के दिमाग की बत्ती भले ही जल गई हो, लेकिन गरीबों की उम्मीदों का दीया बुझ गया, मध्यवर्घ की तकलीफों की आंच तेज हो गई, जन सामान्य को होने वाली तकलीफों के अंत की राह धूमिल दिखने लगी। अच्छा होता अगर प्रधानमंत्री कोरोना से लड़ाई के इस ‘रामबाण’ के बजाए देश को यह बताते कि चिकित्सा क्षेत्र में इस दौरान हमने क्या प्रगति की? हमने कितनी नई सुविधाएं तैयार कीं? हमने इस वायरस के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन को रोकने के लिए कौन सी नई योजना पर काम किया? माना कि गुरुवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान प्रधानमंत्री ने इस वायरस के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन को रोकने के लिए मोहल्ला और थाना स्तर पर बैठकें करने का आग्रह किया। लेकिन क्या ही अच्छा होता अगर प्रधानमंत्री इस विषय में राष्ट्रीय स्तर की किसी बड़ी परियोजना का खाका देश के सामने रखते।

चीन में जब इस वायरस की भयावहता सामने आई तो उसने 10 दिन के अंदर एक विशाल अस्पताल का निर्माण कर दिया, क्या हम ऐसी किसी योजना पर काम कर रहे हैं? अच्छा होता अगर प्रधानमंत्री बताते कि कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है, छोटे-बड़े सभी धंधे ठप हो गए हैं, उन्हें उबारने के लिए किस स्तर पर सरकार तैयारी कर रही है। निसंदेह कोरोना से लड़ाई के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की सबसे पहला उपाय है, ताकि इस वायरस का फैलाव एक दूसरे से न हो, और लोग इसका पालन भी कर रहे हैं, करना भी चाहिए, और जो भी इसका उल्लंघन कर रहे हैं उन्हें सिर्फ आइसोलेशन या क्वारंटाइन में भेजने की जरूरत नहीं, बल्कि उनके खिलाफ तय कानून के तहत सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।


लेकिन इसके अतिरिक्त क्या किया जा रहा है, वह भी तो पीएम बताते। हां, ठीक है कि रोज केंद्र सरकार के नुमाइंदे प्रेस कांफ्रेंस कर आंकड़े आदि देते हैं, लेकिन एक बार भी इन प्रेस कांफ्रेंस से हमारी तैयारियों का अनुमान लगाया जा सका। अभी फरवरी में जिन ट्रम्प का प्रधानमंत्री ने कोरोना का प्रसार शुरु होने के बाद भी लाखों लोगों की मौजूदगी में स्वागत-सत्कार किया था, वे लगभग रोज प्रेस के सामने आते हैं, साथ में हर क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, वे अपने यहां इस बीमारी से लड़ने के लिए की जारी कोशिशों और तैयारियों के बारे में बताते हैं।

लेकिन हमारे प्रधानमंत्री...जब-जब टीवी पर आते हैं, पीएम कम, मोरारी बापू ज्यादा लगते हैं....

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