बीजेपी के निलंबित विधायक टी राजा सिंह फिर गिरफ्तार, जानें अब क्यों हुई गिरफ्तारी

हैदराबाद पुलिस ने गुरुवार को बीजेपी के निलंबित विधायक राजा सिंह को दो पुराने मामलों में नोटिस जारी करने के कुछ घंटे बाद फिर से गिरफ्तार कर लिया है।

फोटो: सोशल मीडिया
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आईएएनएस

हैदराबाद पुलिस ने गुरुवार को बीजेपी के निलंबित विधायक राजा सिंह को दो पुराने मामलों में नोटिस जारी करने के कुछ घंटे बाद फिर से गिरफ्तार कर लिया है। पैगंबर मोहम्मद के बारे में कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए उनकी फिर से गिरफ्तारी के लिए जारी विरोध के बीच पुलिस ने विधायक को उनके आवास से गिरफ्तार किया।

अपनी गिरफ्तारी से कुछ मिनट पहले, विधायक ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को हैदराबाद में कार्यक्रम करने की अनुमति देकर हैदराबाद में तनावपूर्ण स्थिति पैदा करने के लिए तेलंगाना के मंत्री के. टी. रामा राव को दोषी ठहराया।

शनीनाथगंज और मंगलहट पुलिस थाने के पुलिस अधिकारियों ने सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस जारी करने के कुछ घंटे बाद विधायक को गिरफ्तार कर लिया। दोनों नोटिस पुराने मामलों को लेकर जारी किए गए थे।



मंगलहट पुलिस ने फरवरी में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को धमकाने के लिए एक वीडियो के माध्यम से दर्ज की गई शिकायत के संबंध में नोटिस जारी किया था, जो उस राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान वायरल हुआ था। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

शनीनाथगंज पुलिस ने अप्रैल में बेगम बाजार में भड़काऊ भाषण देने के एक मामले में नोटिस जारी किया था। इससे पहले पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी पर भारी विरोध के बाद, पुलिस ने मंगलवार को राजा सिंह को गिरफ्तार किया था। हालांकि, उन्हें उसी दिन अदालत ने जमानत दे दी थी।

नामपल्ली में 14वीं अतिरिक्त मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने पुलिस की रिमांड रिपोर्ट को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उन्होंने सीआरपीसी के 141ए के तहत विधायक को नोटिस जारी नहीं किया था। धर्म के आधार पर लोगों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में विधायक के खिलाफ हैदराबाद के विभिन्न हिस्सों और तेलंगाना के अन्य जिलों में मामले दर्ज किए गए थे।

उन्हें दो थानों में दर्ज मामलों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। हालांकि, उनकी जमानत याचिका पर बहस के दौरान, उनके वकील ने अदालत को बताया कि पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया, जिसमें अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है।

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