वीडियो: एक छोटा सा घर जो आपको बारीकी से समझाता है ‘संविधान क्या है’ 

गुजरात के मार्टिन मैकवान भारत के दलित अधि‍कार आंदोलन में अहम नाम हैं। कई सारे आंदोलनों, संगठनों, अभि‍यानों से जुड़े मार्टिन इस वक्‍त अहमदाबाद शहर से दूर एक ग्रामीण इलाके में वंचित समुदाय के युवक-युवतियों को दिमागी रूप से मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं। इस दौरान संवि‍धान बचाने की बहुत बातें की।

फोटो: नासिरूद्दीन
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नासिरुद्दीन

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर नानी देवती गांव में बने रहे इन खिलौनेनुमा घरों पर संक्षेप में भारत का संविधान उपलब्ध हैं। इस कलाकृति के पीछे 61 साल के दलित कार्यकर्ता मार्टिन मैकवान की सोच है। जी, यह घर यही बताता है। इसकी नींव, दीवारें, दरवाजे, खिड़कियां, चबूतरा, छत बताते हैं कि संविधान में क्‍या है, जो बचाना जरूरी है। क्‍यों इस घर की हिफाजत जरूरी है? इस घर की परिकल्‍पना, वास्‍तुशास्‍त्र, डिजायन, सोच, जो चाहें सो कहें, मार्टिन मैकवान की है। इस घर के जरिए हम चंद मिनटों में संविधान के मूल्‍यों, उसूलों, ख्‍वाबों, नागरिकों के अधिकारों के बारे में बहुत कुछ जान जाते हैं।

गुजरात के मार्टिन मैकवान भारत के दलित अधि‍कार आंदोलन में अहम नाम हैं। कई सारे आंदोलनों, संगठनों, अभि‍यानों से जुड़े मार्टिन इस वक्‍त अहमदाबाद शहर से दूर एक ग्रामीण इलाके में वंचित समुदाय के युवक-युवतियों को दिमागी रूप से मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं। खुद पर भरोसा करना सिखा रहे हैं। वे उन्‍हें हुनरमंद और अपने पांव पर खड़े होने के लिए तरह-तरह के काम भी सिखाते हैं। मार्टिन का बड़ा काम समुदायों के साथ है। इसलिए वे समुदायों के साथ संवाद के नये-नये तरीकों की तलाश में लगे रहते हैं। ताजा तलाश एक अनोखा घर है। यह महज कोई एक और घर नहीं है। यह संविधान का घर है। हम भारत के लोगों का घर है।


मार्टिन मैकवान बताते हैं कि आजकल संवि‍धान बचाने की बहुत बातें होती हैं। सवाल है, क्‍या बचाना है? संवि‍धान तो बहुत बड़ा है। अगर हम संवि‍धान समझेंगे तब ही तो पता चलेगा कि‍ कहां क्‍या बचाने की जरूरत है? कहां उसके सामने चुनौतियां आ रही हैं? अब सवाल था कि ये बातें कैसे समझाई जाएं। बहुत सोचने के बाद उनके दिमाग में यह घर आया। वे कहते हैं, घर तो देश जैसा ही है। तो मैंने सोचा कि पूरे संवि‍धान को घर में क्‍यों न तब्‍दील कर दिया जाए। मेरा बेटा बीमार था। उसे लेकर रोजाना अस्‍पताल जाना पड़ता था। उसे वहां छोड़कर मैं पास के बाग में बैठ जाता था। वहीं बैठा-बैठा सोचता। फिर वहीं घर का ढांचा बना। संविधान की मूल बातें क्‍या है, यह घर समझाता है। जैसे फेमि‍ली को बेहतर जीवन बसर करने के लिए घर की जरूरत होती है, वैसे ही देश को भी घर की जरूरत होती है।

लकड़ी का छोटा सा घर। दूर से देखने पर खिलौने की तरह। मगर जब मार्टिन के हाथ में यह खिलौना आता है, तो उसके दरो-दीवार में जिंदगी आ जाती है। वे बोलने लगते हैं। मार्टिन घर का दर्शन बताते हैं। उनके मुताबिक, 1947 से पहले भी हमें घर की जरूरत थी। मगर हम गुलाम थे। इसलिए चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे। अंग्रेजों ने हमें, हमारे ही घर में किरायेदार बना दिया था। जब आजादी का आंदोलन तेज हुआ तो अंग्रेजों ने कहा कि आपको थोड़े और अधि‍कार देते हैं। आपका घर भी हम डिजायन कर देंगे। यानी संवि‍धान डिजायन कर देंगे। गांधी जी और बहुत सारे स्‍वतंत्रता सेनानि‍यों ने कहा, एक काम कीजिए आप यहां से चले जाइए। हमारा देश छोडि़ए। हम आजाद होंगे तो हम अपना घर खुद बनायेंगे।


मार्टिन पूछते हैं कि वैसे, हम अपना घर कब बना पाते हैं? जब हम स्‍वतंत्र होते हैं। अंग्रेज चले गये। अब जमीन हमारी हो गयी। हम उसके मालिक हैं। अब घर बनेगा। सवाल उठा, घर कहां बनायेंगे? कैसे बनायेंगे? घर मजबूत बने, इसके लिए कच्‍चा माल क्‍या-क्‍या इकट्ठा करना होगा? तो हमने अलग-अलग देशों के संविधान की बुनियाद का अध्‍ययन किया। इस तरह हमने समानता, आजादी, शांति, अधि‍कार, बंधुता, मानवाधि‍कार, न्‍याय...जैसे मूल्‍यों को इकट्ठा किया।

तो नींव कैसे तैयार हो?

मार्टि‍न बताते हैं कि संविधान की नींव में हमने जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, लिंग जैसे भेदभाव वाले पूर्वग्रहों के रोडा-पत्‍थर को चूर-चूर किया। उसे खत्‍म और समतल किया। अगर पूर्वाग्रह खत्‍म होंगे तब ही यह घर, उन मूल्‍यों पर बन पायेगा। फिर दीवाल बनी। उन्होंने इस घर में एक चबूतरा भी बनाया है। चबूतरा जहां सब मिलते हैं। मार्टिन कहते हैं, संविधान का भी चबूतरा है। इसमें लिखा है- भारत मेरा देश है और सभी भारतीय मेरे भाई-बहन है।


भारत का नागरिक कौन होगा?

मार्टि‍न बताते हैं कि इसे समझाने के लिए घर का दरवाजा है। वे बताते हैं, घर के अंदर जाने का सबसे अहम रास्‍ता दरवाजा होता है। कौन प्रवेश करेगा और कौन नहीं, यहीं तय होता है। घर के अंदर प्रवेश का मुद्दा, नागरिकता का मुद्दा है। हमारे भारत ने बोला- यह भारत का घर है। इसमें सभी भारतीय, चाहे वह कोई भी भाषा बोलने वाले हों, कोई भी जाति के हों, कोई भी धर्म के हों, कोई भी प्रांत के हों, सभी को प्रवेश करने का अधि‍कार है। यह समानता का दरवाजा है। खिड़कियां क्या बताती हैं?

मार्टि‍न बताते हैं कि इस घर में कई खिड़कियां भी दिखती हैं। खि‍ड़कियां क्‍यों? क्‍योंकि घर में जितने भी लोग रहते हैं, उन्‍हें हवा और रोशनी चाहिए। मार्टिन ने दीवार के एक तरफ जीवनदायिनी हवा और रोशनी देनी वाली खिड़कियों को मौलिक अधिकारों का रूप दिया है। उनके मुताबिक, अगर ये नहीं होगा तो घर के अंदर रहने वालों का दम घुट जायेगा। वे मर जायेंगे। जैसे, एक खिड़की अनुच्‍छेद 14 है। यानी कानून के सामने सभी बराबर हैं। एक खिड़की अनुच्छेद 21 की है यानी गौरव/ सम्‍मान से जीने का हक। इसी तरह अनुच्छेद 15, 16, 17, 25 की खिड़कियां हैं। इसमें आरक्षण की जरूरत पर भी चर्चा है। दूसरी दीवार पर अनुच्छेद 19 में मिली 6 प्रकार की आजादियों की खिडकियां हैं।


मार्टि‍न कहते हैं कि घर के ऊपर छप्‍पर बहुत जरूरी है। तो छत नागरि‍कों के फर्ज की बात करता है। तो सबसे बड़ा फर्ज है, बंधुत्‍व की भावना। तब ही देश टिक पायेगा। वैज्ञानकि सोच की बात इसी में है। छप्‍पर पर ही राष्‍ट्रगीत है। मार्टिन की उंगलियां राष्ट्रगीत के शब्दों के साथ हवा में लहराती हैं। वे कहते हैं कि हमारे राष्‍ट्रगीत का एक-एक शब्‍द ऐसा है कि वह पूरा भारत हमारी आंखों के सामने खड़ा कर देता है। वे छत की दूसरी ओर, धार्मिक और भाषाई अल्‍पसंख्‍यकों के हकों की चर्चा करते हैं।

नेम प्लेट भी है। यानी यह भारत का घर है, जो धर्मनिरपेक्ष है। इसमें सभी धर्म और विश्वास के लोग हैं। शासन प्रणाली हैं। घर चलाने के उसूल हैं। इसमें मार्ग निर्देशक सिद्धांतों की चर्चा है। घर के उन बुजुर्गों की भी चर्चा है, जिन्होंने इस घर की बुनियाद रखी थी। इस घर के बुजुर्ग बाबा साहेब के शब्द एक ओर लिखे हैं। ये शब्द बाबा साहेब की बात याद दिलाते हैं। संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर उसे पालन करने वाले लोग या जिनके हाथ में इसके पालन करने की जिम्मेदारी है, अगर वे अच्छे नहीं होंगे तो संविधान बुरा साबित होगा। इस तरह घर के जरिए संविधान की अहम बात पूरी होती है। इसे संभालने-बचाने की जरूरत है।


यह संविधान घर अभी 22 भाषाओं में बन रहा है। कार्यकर्ता दिन रात लगे हैं। कोई नींव तैयार कर रहा है तो कोई दरवाजा खड़ा कर रहा है। किसी को छत तैयार करने की जिम्मेदारी मिली है तो कोई फर्श बराबर कर रही हैं। अभी ज्यादातर घर गुजराती में तैयार हो रहे हैं। कुछ दिनों में बाकी भाषाओं में तैयार होने लगेगा। इसकी लागत 300 रुपये आ रही है। फिलहाल इसी लागत पर इसे देने का विचार है। मौजूदा सामाजिक राजनीतिक माहौल में यह घर काफी काम आयेगा, ऐसी उम्मीद है। खासकर, जिन तक संविधान की मोटी किताब की पहुंच नहीं है, उन्‍हें सहज-सरल-दिलचस्‍प अंदाज में संविधान से रू-ब-रू कराने का यह अनोखा तरीका साबित होगा।

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Published: 27 Jan 2020, 1:58 PM