अमेरिकी शेयर बाजार में मचा कोहराम, निवेशकों के बीच बढ़ा मंदी का डर, जानें भारत में क्या पड़ रहा असर?

अमेरिकी शेयर सूचकांक डाऊ जोंस में सोमवार को 1.1 प्रतिशत की गिरावट हुई और इस तरह जनवरी से अब तक यह 20 प्रतिशत गिर चुका है। यह आधिकारिक तौर पर बाजार के ‘बेयर मार्केट’ हो जाने का संकेत है।

अमेरिकी बाजार में गिरावट के साथ मंदी का डर बढ़ा
अमेरिकी बाजार में गिरावट के साथ मंदी का डर बढ़ा
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नवजीवन डेस्क

अमेरिका के तीन प्रमुख शेयर सूचकाकों में से सबसे पुराना सूचकांक डाउ जोंस अब आधिकारिक तौर पर ‘बेयर मार्केट' हो गया है। सोमवार को 1.1 प्रतिशत की गिरावट के साथ इसने नौ महीने में 20 प्रतिशत की गिरावट का आंकड़ा पार कर लिया, जिसे बेयर मार्केट की साधारण परिभाषा कहा जाता है।

अमेरिका के संघीय बैंक द्वारा महंगाई कम करने के लिए ब्याज दरों के बढ़ाए जाने से बाजार में चिंता है कि अर्थव्यवस्था मंदी की ओर चली जाएगी। इसलिए 2022 में शेयर बाजार लगातार लुढ़कता रहा है और अब यह बेयर हो गया है।

एसएंडपी (500) और नैस्डैक पहले ही क्रमशः 23 और 32 फीसदी नीचे गिर चुके हैं। यानी डाऊ जोंस का लुढ़कना अब इस साल की बाजार की उथल पुथल का आखरी पड़ाव था। वैसे तो डाऊ जोंस में सिर्फ 30 कंपनियां शामिल हैं और इसका दायरा अन्य सूचकांकों से काफी छोटा है लेकिन ऐतिहासिक रूप से इसे सबसे अहम प्रतीक के रूप में देखा जाता रहा है।

क्या होता है बुल और बेयर मार्केट?

शेयर बाजार में बुल और बेयर शब्दों का इस्तेमाल शेयर बाजार के चढ़ने व गिरने के लिए किया जाता है। यानी कीमतें जब लगातार ऊपर की ओर जा रही हों तो उसे बुलिश मार्केट कहा जाता है। इसी तरह जब कीमतें लगातार गिर रही हों तो उसे बेयर मार्केट कहा जाता है। लेकिन किसी बाजार को पूरी तरह बेयर मार्केट सिर्फ कीमतों के कुछ समय तक जारी गिरावट के आधार पर नहीं कहा जाता।

कुछ विशेषज्ञों के लिए यह शब्दावली ज्यादा मायने नहीं रखती और वे कंपनियों की आय, कीमत, ब्याज दरों और आर्थिक परिस्थितियों जैसी तमाम बातों की गणना करने को जरूरी मानते हैं। कुछ निवेशक मानते हैं कि किसी बाजार का अपने सर्वोच्च स्तर से 20 फीसदी नीचे चले जाना इस बात का संकेत है कि बाजार बेयरिश हो गया है यानी अब गिरावट वाले क्षेत्र में चला गया है।

इसी तरह कुछ निवेशक मानते हैं कि जब बाजार अपने सबसे निचले स्तर से 20 प्रतिशत ऊपर चला जाए तो बाजार को बुलिश कहा जा सकता है यानी अब वह ऊपर की ओर चढ़ने के क्षेत्र में आ गया है।

सरकार के लिए महंगाई प्राथमिकता

अमेरिकी अधिकारी शेयर बाजार की उथल-पुथल पर नजर बनाए हुए हैं लेकिन उनका कहना है कि महंगाई सरकार की प्राथमिकता है। क्लीवलैंड संघीय बैंक की अध्यक्ष लोरेटा मेस्टर ने कहा कि वित्तीय बाजारों की अस्थिरता से निवेशकों के फैसले प्रभावित होते हैं और डॉलर की कीमत से अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है लेकिन कीमतों की स्थिरता पहला मकसद है।

मेस्टर ने कहा, "लक्ष्यों के लिहाज हम अपन नीति बनाने में इस माहौल का ध्यान रखेंगे ताकि अमेरिका में कीमतों की स्थिरता हासिल की जा सके।" मसैचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एक कार्यक्रम में मेस्टर ने कहा कि मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए जरूरत से ज्यादा कदम ना उठाना ज्यादा महंगा पड़ सकता है।

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अटलांटा के संघीय बैंक के अध्यक्ष रफाएल बोस्टिक ने भी कहा कि इस वक्त मुद्रास्फीति नियंत्रण ज्यादा जरूरी है। निवेशकों के रवैये को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि वे अति-आशावान हैं या नहीं, जरूरी बात यह है कि हमें मुद्रास्फीति को काबू में लाना है। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक हर दिशा में अस्थिरता दिखाई देगी।”

भारत पर असर

अगस्त में भारत में खुदरा बाजार में महंगाई दर में अनुमान से ज्यादा वृद्धि हुई और यह 7 प्रतिशत पर पहुंच गई। खाद्य पदार्थों और ईंधन की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी हुई है।

बीते साल के मुकाबले खाद्य पदार्थों की कीमत में अगस्त महीने 7.62 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि ईंधन और बिजली की कीमतें 10.78 फीसदी बढ़ीं। कपड़ों व जूतों के दाम में 9.91 फीसदी बढ़त हुई जबकि घरों की कीमतें 4.06 फीसदी बढ़ीं।

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