अपने दम पर जीत को लेकर बीजेपी आश्वस्त नहीं, संघ से मांगी मदद, उत्तर प्रदेश पूरी तरह आरएसएस के हवाले

आम जनजीवन से जुड़े मुद्दों पर लोगों के गुस्से से परेशान बीजेपी अपने दम पर अगला लोकसभा चुनाव जीतने को लेकर आश्वस्त नहीं है। इसीलिए उसने अब संघ से मदद मांगी है। उत्तर प्रदेश को तो पूरी तरह संघ को सौंप दिया गया है। अब संघ के प्रचारक ही तय करेंगे कि किस सीट से कौन उम्मीदवार होगा।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी बेहद चिंतित है और एक-एक सीट का हिसाब रखने की तैयारी की जा रही है। इसी कड़ी में पार्टी ने अपने सभी सांसदों का रिपोर्ट कार्ड बनाने का फैसला किया है, और यह रिपोर्ट कार्ड बीजेपी संगठन नहीं, बल्कि आरएसएस बनाएगा। इसके अलावा उत्तर प्रदेश की तो पूरी कमान एक तरह से आरएसएस के हाथों में दे दी गई है। इसी कड़ी में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अपने क्षेत्रीय संगठन मंत्रियों को बदला है और आरएसएस के पुराने स्वंयसेवकों को के हाथों में कमान दी है।

उत्तर प्रदेश में हाल हुए उपचुनावों में एसपी-बीएसपी गठबंधन और संयुक्त विपक्ष के हाथों करारी शिकस्त खाने के बाद बीजेपी के हाथ पांव फूल गए हैं। इससे निपटने के लिए बीजेपी ने उत्तर प्रदेश को संघ के हवाले करने का फैसला किया है। संघ की परिभाषा के मुताबिक उत्तर प्रदेश को छह प्रांतों में बांटकर हरेक प्रांत की जिम्मेदारी अलग-अलग क्षेत्रीय संगठन मंत्री को सौंपी है।

उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र पांडे ने शनिवार को यूपी बीजेपी के क्षेत्रीय संगठन मंत्रियों के कार्यक्षेत्रों में फेरबदल किया। नई व्यवस्था के तहत काशी के संगठन मंत्री रत्नाकर को काशी के साथ-साथ गोरखपुर क्षेत्र का संगठन मंत्री भी बनाया गया है। वे काशी में रहकर संगठन का काम देखेंगे। वहीं बीजेपी प्रकोष्ठों के प्रभारी रहे प्रद्युम्न को अवध क्षेत्र का संगठन मंत्री बनाया गया है। वे लखनऊ में रहकर कामकाज देखेंगे। इसी तरह ब्रज क्षेत्र में भवानी सिंह को ब्रज के साथ-साथ कानपुर-बुन्देलखण्ड का काम भी दिया गया है। वे आगरा में रहकर कामकाज देखेंगेष क्षेत्र के भी संगठन मंत्री होंगे। इसके अलावा गोरखपुर के संगठन मंत्री शिव कुमार पाठक, कानपुर के ओम प्रकाश, अवध के बृज बहादुर को फिलहाल कार्यमुक्त कर दिया गया है।

इस बदलाव को लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की अहमियत को देखते हुए उठाया गया कदम माना जा रहा है। हर प्रांत के संगठन मंत्री की जिम्मेदारी यह रिपोर्ट तैयार करना है कि उनके क्षेत्र में एसपी-बीएसपी गठबंधन कितना मजबूत है और उससे कैसे निपटा जा सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन संगठन मंत्रियों को यूपी का जिम्मा सौंपा गया है वे आरएसएस के प्रचारक रहे हैं।

दरअसल 2019 के चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने आरएसएस के साथ मिलकर रणनीति बनाने के लिए मंथन शुरु कर दिया है। दिल्ली के नजदीक हरियाणा के सूरजकुंड में संघ-बीजेपी की 4 दिन की बैठक में रणनीति को अंतिम रूप देने का काम किया जा रहा है। यह बैठक 18 जून (सोमवार) को समाप्त हो रही है। सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में बीजेपी के मौजूदा सांसदों को टिकट देने का फैसला उनके काम की समीक्षा और निर्वाचन क्षेत्रों में उनकी जीत की संभावना के आधार पर किया जाएगा, और यह काम आरएसएस करेगा। यूं तो इस काम में बीजेपी के संगठन मंत्रियों को भी शामिल किया गया है, लेकिन संगठन मंत्रियों को पद पर आरएसएस प्रचारकों को ही स्थापित किया जा रहा है।

‘इकॉनोमिक टाइम्स’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक संघ और संगठन मंत्रियों की रिपोर्ट के बाद ही तय किया जाएगा कि किस सांसद का टिकट कटेगा और किसका बचेगा। सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि यदि सांसदों ने अच्छा काम किया है तो उन्हें घबराने की जरुरत नहीं है, यदि जनता का सांसद के प्रति विश्वास कम हुआ है तो फिर वह चाहे कितना भी हाई प्रोफाइल नेता क्यों न हों, उसका टिकट कटना तय है। संगठन मंत्री मौजूदा सांसद का टिकट कटने की स्थिति में नए उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव भी करेंगे। यह रिपोर्ट अगले एक महीने में दाखिल कर दी जाएगी।

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