कोरोना संकटः बस दुआ करें, महामारी से करोड़ों लोगों के मारे जाने की भविष्यवाणी न हो सच 

इसमें संदेह नहीं कि दुनिया को झकझोर देने वाले कोरोना वायरस ने मजबूरी में ही सही, हमें मिल-जुलकर काम करने के लिए बाध्य कर दिया है। खास तौर पर जब तक इस संकट का ठोस समाधान न निकल जाए, दुआ करें कि लैरी ब्रिलिएंट की आशंका सच होने से पहले हम इसकी काट खोज लेंगे।

फोटोः सोशल मीडिया 
फोटोः सोशल मीडिया

वह अमेरिका के जाने-माने महामारी विशेषज्ञ हैं। नाम है लैरी ब्रिलिएंट। उन्होंने स्मॉल पॉक्स के उन्मूलन में अहम भूमिका निभाई थी। 14 साल पहले उन्होंने आगाह करदिया था कि विश्व में अगली महामारी कैसी होगी। लेकिन तब टीईडी के साथ बातचीत में ब्रिलिएंट ने जो बातें कही थीं, वे इतनी भयावह थीं कि लोगों ने उन्हें जरा भी गंभीरता से नहीं लिया।

ब्रिलिएंट ने कहा था, “एक अरब लोग बीमार पड़ जाएंगे, 16.5 करोड़ लोगों की मौत हो जाएगी। इससे दुनिया भर में आर्थिक मंदी आ जाएगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1-3 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा और जो बच जाएंगे, उनपर भी बहुत बुरा असर होगा। इससे बड़ी संख्या में लोगों का काम-धंधा छूट जाएगा, उनके हेल्थ केयर लाभ जाते रहेंगे... इसके ऐसे परिणाम होंगे जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।”

अब वह अकल्पनीय स्थिति हमारे सामने आ खड़ी हुई है और महामारी उन्मूलन बोर्ड के चेयरमैन ब्रिलिएंट प्रभावशाली लोगों के साथ अपने अनुभवों को साझा कर रहे हैं। यह सही है कि ब्रिलिएंट ने जितने लोगों की मौत की आशंका जताई, उससे नोवेल कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या बहुत-बहुत कम है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि इस वायरस ने पूरी दुनिया को सिर के बल खड़ा कर दिया है।

ब्रिलिएंट बेशक आमतौर पर यह कहते नहीं सुने जाते हैं कि ‘...मैंने तो पहले ही कह दिया था’ लेकिन यह सच है कि उन्होंने कहकर, लिखकर और फिर वैश्विक महामारी पर बनी हॉरर फिल्म ‘कोंटाजियन’ के निर्माण में सीनियर टेक्निकल एडवाइजर के तौर पर काम करके, तरह-तरह से अपनी बात हम तक पहुंचाई। ब्रिलिएंट ने न केवल स्मॉल पॉक्स के उन्मूलन में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर काम किया बल्कि उन्होंने पोलियो, फ्लू और अंधेपन के खिलाफ अभियान में भी अहम भूमिका निभाई। वेबसाइट वायर्ड ने फोन पर उनसे बात की।

कितना खतरनाक है यह वायरस

यह कोई कल्पना की बात नहीं। दुनिया भर को घुटने पर ला देने वाला यह वायरस पहली बार दिख रहा है। इसी कारण किसी भी मनुष्य में पहले से इस वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं। इसका सीधा सा मतलब है कि यह पूरी मनुष्य जाति के लिए खतरा है। यानी जब तक इस वायरस की दवा नहीं निकलती, पृथ्वी के 7.8 अरब आबादी के लिए यह एक खतरा है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि कोई व्यक्ति ठीक हो जाने के बाद दोबारा इसकी चपेट में आ जाता है।

लेकिन इसे इस तरह से देखना उचित नहीं। ज्यादा संभावना इस बात की है कि यह कोई दोबारा संक्रमित होने का नहीं बल्कि जांच की गड़बड़ी का मामला हो। इस बात की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि देखते-देखते यह वायरस करोड़ों-करोड़ लोगों को संक्रमित कर दे। इस नजरिये से माना जा सकता है कि यह वैश्विक महामारी अब तक के हमारे जीवन में सबसे खतरनाक है।


घर में रहने, भीड़-भाड़ से बचने जैसी सलाह है जरूरी

पहले 12 हफ्ते के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से कोई सलाह नहीं आई। लोग झूठ और अफवाहों में जीते रहे। आज भी कुछ लोग मानते हैं कि इससे कुछ नहीं होने जा रहा लेकिन ऐसा मानना खुद उनके लिए हानिकारक है। जितना हो सके घर में रहने, भीड़-भाड़ से दूर रहने, एक-दूसरे से छह फुट की दूरी बनाकर रखने जैसी सलाह बिल्कुल सही है। अभी इस वायरस का कोई वैक्सीन नहीं निकाला जा सका है, लिहाजा इसका कोई इलाज नहीं और परहेज वगैरह से संक्रमित लोगों की संख्या कम नहीं हो जाएगी।

लेकिन ऐसी स्थिति में वायरस के संक्रमण को फैलने से जितना हो सके, रोकना ही एकमात्र उपाय है। यानी ऐसी बीमारी जिसमें फिलहाल परहेज ही इलाज है। इतना जरूर है कि ऐसे उपाय करके ही दुनिया को सुरक्षित रखा जा सकता है। अच्छी बात यह है कि इसका वैक्सीन तैयार करने का काम शुरू हो चुका है और उम्मीद करनी चाहिए कि अगले 12-18 महीने के दौरान यह हमें उपलब्ध भी हो जाएगा। लेकिन तब तक तो अपने आप को सुरक्षित रखने के उपाय करने होंगे।

इलाज भी निकलेगा और बचाव की दवा भी

लैरी ब्रिलिएंट कहते हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हममें से कई लोगों को कोविड-19 का संक्रमण हुआ होगा और हमारे शरीर ने इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली होगी, जिसके कारण तमाम लोग ठीक भी हो गए होंगे। वह कहते हैं कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि कोविड-19 के मामलों में कारगर एंटीवायरल उपचार खोज लिया जा सकेगा, लेकिन इसके अलावा भी उपाय है।

निश्चित रूप से यह एक विवादास्पद मामला है और तमाम लोग ब्रिलिएंट की बातों पर यकीन नहीं करेंगे क्योंकि इसे अभी साबित नहीं किया जा सका है, लेकिन वह इसके लिए 2005 में हुए दो शोध पत्रों का हवाला देते हैं- एक नेचर में प्रकाशित हुआ और दूसरा साइंस में। दोनों ही मामलों में इन्फ्लूएंजा प्रभावित इलाकों में टैमिफ्लू का प्रयोग करके यह देखा गया कि क्या इससे इन्फ्लूएंजा के प्रसार को काबू में किया जा सकता है। दोनों ही मामलों में फॉर्मूला काम कर गया।

एक और भी बात है जिसका हमें ध्यान रखना चाहिए। शुरू में एचआईवी/एड्स का कोई इलाज नहीं था और इसे मृत्युदंड के फरमान की तरह देखा जाता था। लेकिन फिर हमारे कुछ बेहतरीन वैज्ञानिकों ने इसमें काम करने वाली दवाएं निकालीं और हमने पाया कि इनमें से कुछ का इस्तेमाल प्रिवेंटिव दवा के तौर पर किया जा सकता है। अभी हममें कोविड-19 का उपचार खोजने की दृढ़ इच्छा है और हमने इसके लिए विज्ञान, पैसा, संसाधन सब लगा दिए हैं ताकि इसके उपचार के साथ-साथ इसे होने से रोकने की दवा भी खोजी जा सके।


चीन और दक्षिण कोरिया का मॉडल

अब जबकि दुनिया के तमाम देशों में लोग घरों में कैद होते जा रहे हैं और इतना तय है कि फिलहाल हमें बचाव के ही उपाय करने होंगे तो सवाल यह उठता है कि एक देश को कौन सा मॉडल अपनाना चाहिए। चीन का मॉडल या दक्षिण कोरिया का? अब चीन से ज्यादा मामले अन्य देशों में हो चुके हैं और जितने लोगों की मौत चीन में हुई, उससे कहीं ज्यादा तो अकेले इटली में हो चुकी है। चीन ने जिस तरह वुहान को एकदम काट दिया और इसकी सीमाओं को पूरी तरह सील कर दिया, उससे उसे संक्रमण को दूसरे इलाकों में फैलने से रोकने में कामयाबी भी मिली लेकिन चीन का मॉडल ऐसा है जिसे अपनाना दूसरों के लिए बहुत-बहुत मुश्किल है।

दूसरा मॉडल है दक्षिण कोरिया का जिसने व्यापक रूप से परीक्षण करके प्रभावित लोगों को अलग-थलग कर दिया। अन्य देश इस मॉडल को अपना सकते हैं, लेकिन दिक्कत की बात यह है कि इसके लिए भी परीक्षण की व्यापक सुविधा जरूरी है और तमाम देशों में इस तरह की व्यवस्था नहीं है। रैंडम टेस्ट करके भी इससे संक्रमित लोगों की पहचान की जा सकती है। इस लिहाज से जिन देशों में ज्यादा मामले नहीं आए हैं, उन्हें इस तरह के उपाय करने चाहिए।

हो सकता है कि जिम्बाब्वे में कोविड-19 का कोई मामला इसलिए नहीं मिला क्योंकि वहां इसके परीक्षण की सुविधा ही नहीं है। ऐसी ही स्थिति मिसिसिपी की भी हो सकती है। बेहतर तो यह हो कि इसका परीक्षण उसी तरह होना चाहिए जैसा कि प्रेगनेंसी को कन्फर्म करने का टेस्ट होता है जो घरेलू स्तर पर लोगों के पास उपलब्ध है। लेकिन ऐसी स्थिति कब आएगी, कहा नहीं जा सकता।

कितना जानते हैं, अभी तो यह भी नहीं पता

दुनिया तब तक सामान्य नहीं हो सकती जब तक तीन बातें स्पष्ट न हो जाएं। पहली, आखिर हमें इस वायरस के बारे में कितना पता है। क्या हमारी जानकारी उस आइसबर्ग की तरह है जिसका सातवां हिस्सा ही पानी के ऊपर होता है और ऊपर से उतना ही दिखता है। या फिर हमारी जानकारी किसी पिरामिड को ऊपर से देखने जैसा है, जिसमें सबकुछ हमारी आंखों के सामने होता है। हो सकता है कि हम कोविड-19 के बारे में आइसबर्ग के पानी की सतह के ऊपरी हिस्से जितना ही जानते हों क्योंकि हम पर्याप्त संख्या में टेस्ट तो कर नहीं पा रहे, उस स्थिति में मान लेना चाहिए कि यह किसी बड़े खतरे का आभास मात्र है।

दूसरी बात, वायरस के संक्रमण का कितना कारगर उपचार खोज पाते हैं, इसका संक्रमण न हो इसके उपाय कब तक निकाल पाते हैं। और तीसरी, संक्रमित लोगों का परीक्षण करके यह सुनिश्चित कर पाना कि वे पूरी तरह वायरस से मुक्त हैं या नहीं। इस मामले में उन लोगों का भी विशेष तौर पर परीक्षण करना होगा जो जनसेवा के काम से जुड़े हों- जैसे डॉक्टर-नर्स, स्वास्थ्य सेवा से जुड़े अन्य लोग, पुलिसकर्मी, दमकलकर्मी, शिक्षक इत्यादि।


इसके साथ ही हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि संक्रमित लोगों की आसानी से पहचान की कारगर व्यवस्था हो। हमें उस स्तर तक पहुंचना होगा जिसमें हम बच्चों को स्कूल भेजते समय इस बात को लेकर आश्वस्त हों कि टीचर संक्रमित नहीं, अस्पताल जाने पर निश्चिंत हों कि हमारा उपचार करने वाली नर्स और डॉक्टर खुद संक्रमित नहीं हैं। इतना कुछ होने के बाद ही दुनिया पूरी तरह नॉर्मल हो पाएगी।

यह हमारी सामूहिक कोशिशों पर निर्भर करता है कि वह स्थिति कितनी जल्दी आती है, पूरी आती है या आंशिक आती है और आती भी है या नहीं। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि दुनिया को झकझोर देने वाले इस वायरस ने मजबूरी में ही सही, हमें अपनी सुरक्षा के लिए मिल-जुलकर काम करने के लिए बाध्य कर दिया है। खास तौर पर जब तक इस संकट का ठोस समाधान न निकल जाए और दुआ करें कि लैरी ब्रिलिएंट ने जितनी बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की आशंका जताई थी, उसके काफी पहले ही हम इसकी काट खोज लेंगे।

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Published: 27 Mar 2020, 9:06 PM