कोरोना लॉकडाउन ने तोड़ी कमर, नौकरी गंवाने वाले युवा दर-दर भटकने को मजबूर, सुनें दीपक और सादिक की दर्द भरी कहानी

लॉकडाउन के दौरान बहुत से युवाओं की नौकरी चली गई है। बच्चों की पढ़ाई बेहद बुरी तरह प्रभावित हुई है और महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। दीपक और सादिक़ ऐसे ही दो युवक है। जिनको लॉकडाउन ने पूरी तरह बर्बाद कर कर दिया।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर आगामी लॉकडाउन को लेकर संदेह की स्थिति बन रही है। लोगों में अजीब सा खौफ जारी है। भारत में महीनों तक लगाया गया 'लॉकडाऊन' मिसमैनेजमेंट और कई प्रकार के उलजुलूल प्रयोग को लेकर आलोचनाओं के लिए केंद्र रहा। लॉकडाउन के दौरान बहुत से युवाओं की नौकरी चली गई है। बच्चों की पढ़ाई बेहद बुरी तरह प्रभावित हुई है और महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। दीपक और सादिक़ ऐसे ही दो युवक है। जिनको लॉकडाउन ने पूरी तरह बर्बाद कर कर दिया और इससे उबरने में उन्हें काफ़ी समय लग सकता है। यह दो कहानी इस हक़ीक़त को बयां करती है।

दीपक शर्मा, 37 मुजफ्फरनगर ,हलवाई

100 लोगों की एक शादी की दावत में दीपक शर्मा खाना बना रहे है। आम बोलचाल में उन्हें 'दीपक हलवाई' कहते हैं। दीपक हलवाई इलाके में अपने स्वादिष्ट भोजन के लिए मशहूर है। वो बड़े आयोजन में शिरकत करने के लिए पहचान रखते हैं। एक हजार से ज्यादा लोगों की 100 से दावत करा चुके हैं। दीपक खुद अपने हाथों से सब्जी बना रहे हैं। उनके पास सिर्फ एक सहयोगी है।

रोटी बनाने वाली पास में खड़ी बीना नाम की महिला कहती है, “मैंने अक्सर इन्हें कारीगरों को निर्देश देते देखा है और अब यह सब काम अपने हाथ से कर रहे हैं। दीपक कहते हैं, “अब 100 लोगों के खाने के लिए किसी और को रोजगार नही दे सकता। एक ही चादर है। क्या ओढ़ लूं ! क्या बिछा लूं ! दीपक अपने चेहरे की झुर्रियां दिखाते है और कहते हैं कि सिर्फ 2020 की तक़लीफ़ है। सब कुछ बर्बाद हो गया है। लीवर की परेशानी के चलते अस्पताल में अपना सब कुछ गंवा के लौटा था। शादियों में खाना बनाना और काम न होने पर चाट का ठेला लगाना मेरी दाल रोटी का जरिया था। शादी बंद हो गई। ठेला खड़ा हो गया और मैं कर्ज में डूबा अस्पताल से लौटा था। कुछ नही कर सकता था। कुछ दिन कट गए जैसे -तैसे। अब बस मांगने की नौबत आ गई। मगर किससे मांगे और क्यों मांगे ! हालात सबकी बिगड़ रही थी।


दीपक अपने फोन में अपने दो बच्चों का फोटो दिखाते हुए बताते हैं कि एक समय ऐसा भी आया जब इनके लिए दूध नही जुटा पा रहा था। आप सोचिए यह कितना कष्टदायक है। अपनी दवाई ना खरीद पाना भी इतना कष्टदायक नहीं था। एक दिन मुझे मेरी पत्नी ने कहा कि लॉकडाउन है। मैं कुछ टिक्की बनाकर दे देती हूं, आप घर के बाहर ही रख कर बेच लो। दूध के पैसे तो आ ही जायेंगे, मैंने किया ऐसा ही। जैसे ही घर के बाहर आलू टिक्की रखी तो दो -चार बिक थी, एक उम्मीद सी जाग गई तभी पुलिस आई टिक्की उठा ले गई। जैसे-तैसे करके मुक़दमे से जान बची। दीपक कहते हैं कि वो मरते दम तक इस तकलीफ को भूल नही पाएंगे। यह सिर्फ और सिर्फ मिस-मैनेजमेंट की कहानी है।

सादिक़, 38, मीरापुर,टेक्नीशियन

नौकरी चली गई,बच्चों का स्कूल छूट गया। बीवी का इलाज नही करा पा रहा। अब 5 हजार का परचून का सामान रख बेच रहा हूं, ताकि रोटी जुटा सकूं। मीरापुर के सादिक कुरैशी दिल्ली में एक मोबाइल फोन असेम्बल करने वाली कम्पनी में काम करते थे। इस मुश्किल वक़्त में उन्होंने अपनी नौकरी खो दी। सादिक़ ने जामिया से टेक्नोलॉजी सीखी,वहीं पढ़ाई की और अब तीन हजार महीने कमा रहे हैं। सादिक़ कहते हैं इस पैसे में परिवार चलाना है। दिल्ली में इतना पैसा सिर्फ स्कूल फ़ीस में चला जाता था। जिंदगी एकदम बदल गई है। ना इन्हें लॉकडाउन लगाना आया और न कोरोना से लोगों को बचाना, इन्हें बस हिन्दू - मुस्लिम में बांटना आता है।

सादिक़ बताते हैं वो मुसलमानों की जिस क़ुरैशी बिरादरी से आते हैं वो सबसे कम पढ़ती है और बचपन से खाने- कमाने पर जोर देती है। अब मेरी जमकर मज़ाक उड़ रही है। पढ़कर लिखकर यही करना था तो इतनी मेहनत और सपने पालने की जरूरत नहीं थी। अब बेइज्जती भी होती है और आसपास का समाज मजाक भी उड़ाता है। सादिक़ बताते हैं कि पहले तो उनकी कंपनी में अचानक से सीनियर टेक्नीशियन की नौकरी खत्म कर दी और वो भी इसमे शामिल थे। इसके लिए इस्तीफा मांगा गया, मैंने इंकार कर दिया और कहा कि टर्मिनेट कर दो।


यह उन्होंने नही किया। उसके बाद दो महीने की तन्ख्वाह देने की बात कही,फिर तबादले की चाल चली और तरह-तरह उत्पीड़न करने लगे। अब कोई और रास्ता नही बचा था। सादिक़ बताते हैं अब क्या मुझे पकौड़े बेचने चाहिए। अब उसकी भी गुंजाइश नही बची है। देश में ऐसा माहौल बना हुआ है अगर हम अपने हक़ अधिकार की बात करते हैं तो तुरंत इसे हमारे मजहब से जोड़कर कहते हैं कि ये तो सरकार के ख़िलाफ़ है। सरकार अच्छा करेगी तो हम तारीफ भी करेंगे।

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