गाजियाबाद के पास बसे इस गांव में कोरोना ने बरपाया कहर, महीने भर में 100 से अधिक मौत का दावा, सरकार पर लगे आरोप

नाहल गांव के लोगों के अनुसार, लगभग 10 मई तक एक एक दिन में 10 मौतें भी हुईं। किसी दिन एक साथ 4 मौत दर्ज हुई तो किसी दिन 4 से अधिक मौतें। गांव वालों का दावा है कि हालात ऐसे बिगड़े कि करीब 30 दिन में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई।

फोटो: IANS
फोटो: IANS
user

नवजीवन डेस्क

दिल्ली से महज 30 मिनट की दूरी पर गाजियाबाद के एक गांव में पिछले दिनों कोरोना की दूसरी लहर में जमकर कहर बरपाया। गाजियाबाद के नाहल गांव के निवासियों का कहना है कि, पंचायत चुनाव के बाद गांव में कोरोना की वजह से हालात बिगड़ना शुरू हुए। 15 अप्रैल के बाद से गांव में अचानक लोगों में कोरोना के लक्षण देखने को मिले, हल्के बुखार और खांसी की शिकायतें मिलनी शुरू हो गईं।

गांव की गलियों में बैठे डॉक्टरों की दुकानों के बाहर लंबी लंबी कतारें लग गई। हालांकि, दवाई लेने के बाद कई लोग ठीक भी हुए। लेकिन जिस मरीज की हालत बिगड़ी, उसे लेकर परिवार वाले बड़े अस्पतालों के पास भागे। स्थानीय अस्पताल गांव से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है।

नाहल गांव के लोगों के अनुसार, लगभग 10 मई तक एक एक दिन में 10 मौतें भी हुईं। किसी दिन एक साथ 4 मौत दर्ज हुई तो किसी दिन 4 से अधिक मौतें। गांव वालों का दावा है कि हालात ऐसे बिगड़े कि करीब 30 दिन में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई।

नाहल गांव के पूर्व प्रधान मुन्नवर ने बताया कि, लोगों को बुखार चढ़ा और गले बंद हो गए। ऐसे करीब 112 लोगों को जान गवानी पड़ी। ऑक्सिजन सिलेंडर मिल नहीं रहे थे। 2 से 4 दिन में लोगों की मृत्यु होने लगी थी।

उन्होंने कहा कि, बड़े अस्पतालों में भर्ती नहीं किया गया तो लोगों ने गांव में ही मौजूद डॉक्टरों से इलाज कराया। क्योंकि उनके पास कोई और उपाय नहीं था। सरकार की तरफ से इधर कोई जांच करने नहीं आया। गांव में बीते कल भी एक मृत्यु हुई है।


नाहल गांव निवासी जाकिर हुसैन ने बताया कि, गांव की स्थिति ठीक थी लेकिन जैसे ही पंचायत चुनाव हुए उसके तुरंत बाद हालात बिगड़े। लोगों को बुखार आने लगा और उन्होंने गांव के ही झोला छाप डॉक्टरों को दिखाया।

इस दौरान लोग ठीक भी हुए, लेकिन जब ज्यादा हालात बिगड़े तो लोग कुछ अस्पतालों में भी गए, जिसने कोशिश की उनको निजी अस्पतालों में बेड भी मिले। गांव में कोई ऐसा नहीं था जिसको बेड न मिला हो।

उन्होंने बताया कि दूसरी लहर के दौरान टीकाकरण के लिए एक मैडम आती रहीं, लेकिन जांच के लिए कोई नहीं आया और न किसी तरह का इधर कैम्प लगा। हाल ही में एसडीएम ने गांव के ही कुछ डॉक्टरों को बुलाया था और उन्हें कोरोना किट बाटी थी।

हालांकि 100 से अधिक मौतों पर नहाल गांव के मौजूदा प्रधान तसव्वर ने बताया कि, सभी मृत्यु कोरोना से नहीं हुई है। कुछ मरीज कैंसर से पीड़ित थे और कुछ को अन्य गंभीर बीमारी भी थी। जिनकी मृत्यु हुई उनकी कोई जांच रिपोर्ट नहीं थी।

गांव में कोई जांच नहीं हुई है, लेकिन हमने गांव में कोरोना की 63 किट बाटी, 25 किट और आने वाली है। यदि किसी मे कोरोना के लक्षण दिखाई देते है तो हम उन्हें ये किट दे देते हैं और उससे लोगों को आराम भी मिला है।

गांव में 40 हजार की आबादी में सिर्फ 63 कोरोना किट ही बाटी गई ? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि, चुनाव हाल ही में सम्पन्न हुआ, उसके बाद किट आना शुरू हुई। बीच मे कोई जिम्मेदार आदमी गांव में नहीं था और कहीं से कुछ आया भी नहीं।

इस मसले पर जब एसडीएम (सदर) डीपी सिंह से बात की तो उन्होंने गांव की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं होने की बात कही। उनके अनुसार, '' हर एक गांव में कोरोना का प्रभाव लगातार है और हम लोग निगरानी समिति के माध्यम से दवाई का एडवांस किट बाट रहें हैं। यदि किसी मे लक्षण हुए तो जांच करा रहें हैं।

गांव वालों के अनुसार गांव में कोरोना की जांच नहीं हुई । इस सवाल के जवाब में एसडीएम सदर ने कहा कि, गांव में जांच हो रही है, नजदीकी डासना सीएससी में जांच की जा रही है।उनके मुताबिक जिस तरह लॉकडाउन लगा और लोग घरों में रहना शुरू हुए उसके बाद आंकड़ो में कमी आई और लोग कम बीमार हुए।

दरअसल गांव में अचानक इतनी संख्या में मौत होने के बाद एक दहशत का माहौल बन गया। महीने भर में 100 अधिक लोगों की मृत्यु कोरोना से हुई या सामान्य बीमारी से, इसकी गांव वाले पुष्टि नहीं कर सके। उनके अनुसार सामान्य बीमारी से भी लोगों की हो मृत्यु सकती है।


गांव के एक अन्य निवासी के मुताबिक, '' जिले का सबसे बड़ा गांव होने के बाद भी इधर एक भी बड़ा अस्पताल नहीं हैं। करीब 15 साल पहले एक छोटा सा अस्पताल बना था। उसमें कुछ दिन नर्स आई लेकिन वो भी बंद हो गया।''

हाजी तैयब नाहाल गांव में ही पैदा हुए। उन्होंने आईएएनएस को बताया कि, डासना स्थित एक देवी अस्पताल में ही अधिक्तर लोग इलाज कराने के लिए जाते हैं। गांव में कुछ छोटे डॉक्टर भी हैं। इस गांव में किसी तरह की कोई जांच नहीं कराई गई और न ही सरकार की ओर से कोई आया।

अस्पतालों में जगह न होने के कारण लोग गांव ही वापस आए उसके बाद ही लोगों की मृत्यु हुई है। गांव के एक निवासी को अस्पताल में जगह नहीं मिली। जिसके बाद उन्होंने पेड़ के नीचे ही दम तोड़ दिया। क्योंकि अस्पताल में ऑक्सिजन नहीं था। इसके लिए उन्होंने कहा पेड़ के नीचे लिटा देना।

गांव के ही एक और पूर्व प्रधान डॉ फजल अहमद के अनुसार, यदि गांव में हालात जानने है तो वो जांच करने से ही पता लगेगा, गांव में किसी तरह की कोई जांच नहीं हुई और न ही सरकार ने जांच कराई। गांव के ही कुछ लोगों ने खुद जांच कराई है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


/* */