दिल्ली: ‘आप’ ने ही अटकाए कांग्रेस से गठबंधन की राह में रोड़े, अब शहीद होने का दिखावा करेगी

कांग्रेस ने आखिरकार आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली में गठबंधन न करने के फैसले पर मुहर लगा दी। कांग्रेस सोमवार के दिल्ली के 7 में से 6 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया। इस तरह करीब 3 महीने से जारी रस्साकशी का अंत हो गया।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया

कांग्रेस के इस फैसले के बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कांग्रेस की हठधर्मी का रोना रो रहे हैं ताकि दिल्ली के वोटरों को रिझा सकें। गौरतलब है कि जब भी गठबंधन के लिए दोनों दलों के बीच बातचीत हुई तो आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर गैर बीजेपी नेताओं के जरिए दबाव बनवाया, और कांग्रेस ने भी इसका सम्मान करते हुए आप की हर संभव मांगे मानीं।

ध्यान रहे की जब भी किसी गठबंधन की बातचीत होती है तो पर्दे के पीछे चलने वाली समानांतर चर्चा का काफी महत्व होता है। यह हकीकत है कि कांग्रेस ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के विरोध के बावजूद इस गठबंधन को करने की कोशिश की। कांग्रेस का एक ही मकसद था कि किसी तरह गैर बीजेपी वोटों का बंटवारा न हो। लेकिन आप संयोजक ने इसी स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश की। और अब साफ हो गया है कि वे सिर्फ दिखावे के लिए गठबंधन की बात कर रहे थे, जबकि वह पहले दिन से ही कांग्रेस से गठबंधन नहीं करना चाहते थे।

जब-जब दोनों दलों के बीच बात हुई, तब-तब केजरीवाल ने नई शर्त रखी। नतीजतन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को मजबूर होकर ट्विटर के जरिए केजरीवाल के यू-टर्न का खुलासा करना पड़ा। सार्वजनिक तौर पर तो केजरीवाल मीडिया में दिल्ली की बात करते रहे, लेकिन आमने-सामने की बातचीत में उन्होंने हर बार नई शर्त रखी।

करीब एक महीने पहले दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को अंतिम रूप दिया जा चुका था। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के घर हुई बैठक में राहुल गांधी और केजरीवाल के बीच अच्छी बात हुई थी। फार्मूला 3:3:1 का निकला था। इसके मुताबिक कांग्रेस और आप 3-3 सीटों पर चुनाव लड़तीं और एक सीट पर संयुक्त रूप से पूर्व वित्त और विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा या शत्रुघ्न सिन्हा को उतारा जाता। लेकिन कुछ दिन बाद ही केजरीवाल इससे पलट गए और उन्होंने मांग रख दी कि आप 4 सीटों पर लड़ेगी और कांग्रेस 3 पर।

कांग्रेस ने केजरीवाल की यह शर्त भी मान ली, और गठबंधन तय हो गया। लेकिन कुछ ही समय बाद केजरीवाल एक नए प्रस्ताव के साथ सामने आ गए। इस बार आप ने कहा कि आप दिल्ली में कांग्रेस के साथ तभी गठबंधन करेगी जब वह हरियाणा में भी उसके साथ और जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) के साथ भी गठबंधन करे।

इस नए प्रस्ताव को पहले ही दिन कांग्रेस ने साफ तौर पर खारिज कर दिया। कांग्रेस का कहना था कि जेजेपी भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (आईएनएलडी) का एक धड़ा है और कांग्रेस इसकी प्रतिद्धंदी रही है क्योंकि दोनों ही पार्टियों को जनाधार जाट समुदाय के बीच है।

बात यहीं रुकी, इसी बीच आप ने गोवा में एक और चंडीगढ़ की एक सीट भी कांग्रेस से मांग ली। कांग्रेस ने साफ संदेश दे दिया कि गोवा और चंडीगढ़ की कांग्रेस इकाइयां इसके पक्ष में नहीं हैं। फिर भी कांग्रेस ने कहा कि वह दिल्ली के साथ ही हरियाणा में भी गठबंधन पर विचार कर सकती है। लेकिन साफ कर दिया कि वह किसी भी कीमत पर जेजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेगी।

कांग्रेस ने आप के वार्ताकारों को साफ कर दिया था कि वे अपनी सीटों लिए बात करें और जेजेपी जैसे किसी और दल की वकालत न करें, क्योंकि हरियाणा में लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद ही विधानसभा चुनाव भी होने हैं। सूत्रों का कहना है कि दूसरे समान विचारधारा वाले दलों के दबाव के बाद कांग्रेस आखिरकार हरियाणा की कुल 10 सीटों में से जेजेपी को दो सीटें और आप को एक सीट देने पर राजी हो गई थी। यह भी तय हो गया था कि दिल्ली महिला आयोग की चेयरपर्सन स्वाति मालीवाल के पति नवीन जयहिंद को उनकी पसंद की सीट दी जाएगी।

सूत्रों का कहना है कि इस फार्मूले पर आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता तैयार हो गए थे, लेकिन फिर भी केजरीवाल ने गठबंधन करने से इनकार कर दिया। इसके बाद ही कांग्रेस ने तय कर लिया कि आम आदमी पार्टी से किसी भी तरह के गठबंधन की अब बात नहीं होगा।

कांग्रेस-आप का गठबंधन टूटने पर एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि, “आप का रवैया हरियाणा को लेकर ऐसा था कि हम आपकी दावत में तब आएंगे जब आप हमारे पड़ोसी को भी बुलावा दोगे और मेरे दोस्त के पैर छुओगे। इससे जाहिर है कि आप गठबंधन करना ही नहीं चाहती थी।”

इस मुद्दे पर नई दिल्ली से कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन ने कहा कि, “पहले दिन से आप की गठबंधन में कोई रुचि नहीं थी और सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए वह बात कर रही थी ताकि कांग्रेस को बदनाम कर सके। हमें पता है कि आप बीजेपी की बी टीम है। हमने बातचीत कामयाब करने के लिए बहुत कोशिश की क्योंकि हम गैर बीजेपी वोटों का बंटवारा नहीं चाहते थे।”

लेकिन यहां ध्यान रखना होगा कि इस बार के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है न कि आप। इसके बावजूद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिश की, जिसका जवाब तो अब दिल्ली के वोटर को ही देना है।

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