आखिर बिना फोन और इंटरनेट के मजदूर कैसे पकड़ें ट्रेन, प्रवासियों ने कहा- जिंदा रहें या मर जाएं, पर चलते रहेंगे

चौतरफा दबाव के बाद सरकार ने कुछ ट्रेन चलाकर लोगों को उनके राज्य तक भेजना शुरू किया है, लेकिन इसके बावजूद भी कई प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने गांव जा रहे हैं। इसकी वजह वह सरकारी सिस्टम है, जो ऐसे संकट के वक्त में भी जमीन से कोसों दूर हवाई नियम-कानून बनाता है।

फोटोः IANS
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नवजीवन डेस्क

देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से लोगों की आवाजाही पर रोक है। कोरोना वायरस को रोकने की दिशा में उठाए गए इस कदम से जो जहां थे, वहीं रह गए हैं। सबसे बुरी हालत प्रवासी मजदूरों की है। अब तक डेढ़ महीने से ज्यादा के लॉकडाउन में लाखों प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घरों के लिए निकल चुके हैं। इस दौरान रास्ते में पेश आए हादसों में अब तक कई मजदूरों की जान भी जा चुकी है। लेकिन इन सबके बावजूद मजदूरों का पैदल पलायन नहीं रुक रहा है।

हालांकि, मजदूरों की हालत को लेकर विपक्ष के चौतरफा दबाव के बाद सरकार ने कुछ ट्रेन चलाकर लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की कोशिश की है, लेकिन इसके बावजूद भी कई ऐसे प्रवासी मजदूर हैं, जो पैदल ही अपने गांव जा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है वो सरकारी सिस्टम जो ऐसे संकट के वक्त में भी जमीन से कोसों दूर हवाई नियम-कानून बनाता है। सरकार की वजह से ही अब भी लाखों मजदूर सड़कों पर पैदल चल रहे हैं।

दरअसल, केंद्र सरकार ने जो मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं, उसमें यात्रा करने के लिए आपको मोबईल और इंटरनेट की पूरी जानकारी के साथ-साथ पढ़ा-लिखा भी होना जरूरी है। पहले खुद अपने फोन से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना और फिर मैसेज के आधार पर स्टेशन पहुंचकर ट्रेन पकड़ना हम-आप जैसे लोगों के लिए सोचने वाली बात ही नहीं है, लेकिन इन गरीब अनपढ़ मजदूरों के लिए सबसे बड़ा समस्या यही है।

और यही सबसे बड़ा कारण है कि आज भी लाखों मजदूर देश भर में पैदल ही अपने घरों के लिए निकल पड़े हैं। दिल्ली से दमोह के लिए पैदल ही निकले लगभग 40 साल के घनश्याम कहते हैं कि “न तो हमारे पास स्मार्टफोन है और न ही हमें इंटरनेट का प्रयोग करने के बारे में पता है। बाहर कहीं कोई दुकान नहीं खुला है, जिसके पास जाकर ट्रेन के लिए रजिस्ट्रेशन करा लें।” साथ ही घनश्याम आज से शुरू हुई ट्रेनों को लेकर भी कहते हैं कि इन वातानुकूलित ट्रेनों के लिए तो पैसे भी उनके पास नहीं हैं। घनश्याम का कहना है कि “चाहे हम जिंदा रहें या ना रहें, यह भगवान के ऊपर है, लेकिन हम मध्यप्रदेश में अपने गांव चलकर जाएंगे।

कोराना वायरस महामारी की वजह से लागू महाबंदी में इन लोगों के पास ना तो अन्न बचा है और ना ही पैसा। 50 लोगों के समूह के साथ नई दिल्ली से पैदल ही दमोह अपने घर जाने के लिए रवाना हुए घनश्याम ने कहा, "सरकार कैसे सोच सकती है कि हम ट्रेन टिकट बुक करने में सक्षम होंगे। और जो ट्रेन चल रही है, वह एसी ट्रेन है जो कि हमारे पहुंच से बाहर है। हम यह खर्च वहन नहीं कर सकते। हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, इसलिए हमने अपने गृह जिला पैदल ही जाने का निर्णय किया।"

दमोह नई दिल्ली से करीब 750 किलोमीटर दूर है। इन 50 लोगों के समूह में दो से चार वर्ष के सात से आठ बच्चे और अपने सिर पर सामान का बोझ उठाए कुछ बुजुर्ग भी शामिल हैं। इन लोगों से उत्तर प्रदेश के नोएडा के नई दिल्ली-आगरा एक्सप्रेस वे पर बातचीत हुई। इनमें से एक पन्ना जिले के राकेश ने कहा, "हम पैदल ही मध्यप्रदेश जा रहे हैं, क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं हैं।"

राकेश दिल्ली में मकान बनाने के काम से जुड़ा हुआ है और उसे 23 मार्च के बाद लॉकडाउन लागू होने के बाद से कोई काम नहीं मिला। राकेश ने कहा, "हम लोग पास के ही कम्युनिटी किचन से खाना खाते हैं। लेकिन तीन दिन पहले ही उन्होंने उसे बंद कर दिया। हमारे पास राशन खरीदने के लिए पैसा नहीं था और घर जाने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा।" यह पूछे जाने पर कि कितने दिन में वह घर पहुंच जाएगा, इस पर उन्होंने कहा, "हम 15-20 दिन में घर पहुंच जाएंगे।"

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