कश्मीर में पाबंदी का एक महीना: खुफिया विभाग पहले जांचता है पत्रकारों के ई-मेल, फिर जाती हैं घाटी से बाहर खबरें

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अभी तक हालात पटरी पर नहीं लौटे हैं। पत्रकारों पर भी पाबंदियां जारी हैं। ताजा आदेश में प्रशासन ने तीन बड़े मीडिया समूहों के पत्रकारों से सरकारी आवास खाली करने को कहा है।

कश्मीर का आर के सरोवर होटल, इसी होटल में बनाया गया है मीडिया सेंटर
कश्मीर का आर के सरोवर होटल, इसी होटल में बनाया गया है मीडिया सेंटर
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गुलजार बट

कश्मीर टाइम्स के एडिटर इन चीफ प्रबोध जमवाल के अतिरिक्त शपथ पत्र दाखिल करने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने अखबार की एक्जीक्यूटिव एडिटर अनुराधा भसीन की याचिका पर गुरुवार को इस मामले की सुनवाई 16 सितंबर तक टाल दी। अगस्त के तीसरे सप्ताह में दाखिल इस याचिका में भसीन मांग की है कि कश्मीर में इंटरनेट और ब्रॉडबैंड सेवाएं और मोबाइल फोन चालू किए जाएं क्योंकि इससे पत्रकारों को अपना काम करने में दिक्कतों का सामना कर पड़ रहा है और कई अखबारों को अपने प्रकाशन बंद करने पड़े हैं। इस याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक सप्ताह का नोटिस देकर जवाब मांगा था।

बुधवार को प्रबोध जमवाल ने अतिरिक्त शपथ पत्र दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि श्रीनगर में पत्रकारों के लिए बनाए गए मीडिया सेंटर में खुफिया विभाग और सुरक्षा बल पत्रकारों के ई-मेल चेक करते हैं। सभी पत्रकारों को यह जानकारी देनी होती है कि वे किसे फोन कर रहे हैं।


शपथ पत्र के मुताबिक, “कश्मीर में करीब 100 पत्रकारों के लिए सिर्फ चार कम्प्यूटर, बिना इंटरनेट के मोबाइल फोन और बहुत ही धीमी स्पीड वाला ब्रॉडबैंड है। जो भी न्यूज रिपोर्ट फाइल की जा रही हैं, उनकी जांच की जा रही है। इतना ही नहीं इस मीडिया सेंटर में पत्रकारों की ईमेल तक की जांच हो रही है। इसके अलावा सभी पत्रकारों को यह सूचना देनी होती है कि वे किससे बात कर रहे हैं और न्यूज रिपोर्ट के रूप में क्या सूचना किसे भेज रहे हैं।”

लेकिन, अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दावे को खारिज करते हुए दावा किया कि घाटी में हालात बहुत तेजी से सामान्य हो रहे हैं। अटॉर्नी जनरल ने इन खबरों को भी खारिज किया कि घाटी में मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, “यह कहना कि जम्मू-कश्मीर में मरीजों को अस्पताल पहुंचने में दिक्कत हो रही है, एकदम गलत है। करीब 7 लाख मरीजों ने अस्पतालों में इलाज कराया है। 4334 मरीजों की बड़ी सर्जरी और 44236 मरीजों की मामूली सर्जरी की गई है।”

ध्यान रहे कि घाटी में गुरुवार तक इंटरनेट सेवाएं शुरु नहीं हुई थीं और न ही मोबाइल फोन बहाल हुए थे। ग्रेटर कश्मीर और राइजिंग कश्मीर अखबार के ट्विटर हैंडल भी 4 अगस्त से बंद पड़े हैं।

घाटी के जो स्थानीय पत्रकार जम्मू पहुंचे हैं उनका कहना है कि श्रीनगर के मीडिया सेंटर में भी सोशल मीडिया के इस्तेमाल करने से मना किया जा रहा है। यह मीडिया सेंटर श्रीनगर के पॉश सोनावर इलाके में बनाया गया है। दिल्ली और दूसरे इलाकों से आने वाले सरकार की पसंद के पत्रकारों को इस मीडिया सेंटर के इस्तेमाल की इजाज़त है जबकि स्थानीय पत्रकारों को इनकार किया जा रहा है।


ऐसे ही एक पत्रकार राइज़िंग कश्मीर के मंसूर पीर ने बताया कि, “खबरें जुटाना बेहद मुश्किल हो गया है। हम अपने सूत्रों से बात नहीं कर पा रहे हैं और न ही ईमेल भेज पा रहे हैं। हालांकि अखबार निकल रहा है, लेकिन पहले के 20 पन्नों के मुकाबले सिर्फ 8 पन्ने ही प्रकाशित किए जा रहे हैं क्योंकि खबरें मिल ही नहीं रही हैं।”

कश्मीर इमेजेज़ के न्यूज एडिटर अकील रशीद के मुताबिक उनके अखबार ने 5 अगस्त से ही संपादकीय पन्ने छापना बंद कर रखा है क्योंकि वे इन पन्नों के लिए सामग्री भेजने वाले लेखकों आदि से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं।

घाटी के एक और अखबार ग्रेटर कश्मीर ने भी अपने पन्नों की संख्या घटाकर 20 कर दी है, जबकि चंडीगढ़ से प्रकाशित द ट्रिब्यून ने अपना श्रीनगर संस्करण 6 अगस्त से ही बंद कर दिया है। द ट्रिब्यू ने श्रीनगर दफ्तर में एक कर्मचारी ने बताया कि इंटरनेट न होने के कारण हम श्रीनगर संस्करण नहीं छाप पा रहे हैं। यहां तक कि हमारी लीज़ लाइनें भी बंद कर दी गई हैं।

इस बीच खबर है कि तीन बड़े मीडिया समूहों के पत्रकारों को सरकारी आवास खाली करने को कहा गया है। इनमें अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस – एपी और रॉयटर्स के अलावा एनडीटीवी के पत्रकार शामिल हैं। सरकार की पसंद की खबरें प्रकाशित करने वाली एक वेबसाइट के मुताबिक यही कारण है कि एपी, रॉयटर्स और एनडीटीवी सरकारी कामकाज की आलोचना करते रहते हैं।

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