नीरव मोदी मामले में क्या झूठ बोल रही है सरकार? तस्वीरें और दस्तावेज दिखा रहे हैं अलग कहानी

पीएनबी महाघोटाले में नीरव मोदी को लेकर क्या केंद्र सरकारकुछ छिपा रही है? आखिर क्यों केंद्रीय मंत्री इसमामले में सफाई दे रहे हैं? क्यों दावोस में खींची गई फोटोको संयोग बताया जा रहा है?

फोटो सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

नीरव मोदी की लूट के मामले में क्या प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्र सरकार के वे सारे मंत्री झूठ बोल रहे हैं या गलत बयानी कर रहे हैं, जो इस मुद्दे पर सरकार का बचाव करने मैदान में उतरे हैं? पीएमओ और आरओसी के बीच हुए पत्राचार से तो यही साबित होता दिख रहा है।

तो आइए आपको बताते हैं नीरव मोदी की लूट की कहानी, हरि प्रसाद की जुबानी। हरि प्रसाद वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने दो साल पहले इस घोटाले की जानकारी पीएमओ को भेजी थी। और, दावोस में पीएम के साथ फोटो संयोग से नहीं, पहले से तय कार्यक्रम के तहत ली गई थी।

“सर, आपको पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय ने मेरी एक शिकायत प्रेषित की है, कृप्या इस पर तुरंत कार्रवाई करें, क्योंकि अगर देर की गई, तो आरोपी बिल्कुल उसी तरह देश छोड़कर भाग जाएगा, जिस तरह किंगफिशर एयरलाइन का विजय माल्य भाग गया। कृप्या जल्द से जल्द इसका उत्तर दें।” 29 जुलाई, 2016 को ई-मेल के जरिए यह पत्र हरि प्रसाद ने मुंबई में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज यानी आरओसी के पब्लिक ग्रीवेंस ऑफिसर को लिखा था। इस ईमेल में हरि प्रसाद ने पीएमओ द्वारा आरओसी को प्रेषित शिकायत का संदर्भ भी लिखा था, जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने 26 जुलाई को हरि प्रसाद की शिकायत रिसीव की और उसे आरओसी को संबंधित कार्रवाई के लिए प्रेषित किया।

नीरव मोदी मामले में क्या झूठ बोल रही है सरकार? तस्वीरें और दस्तावेज दिखा रहे हैं अलग कहानी
हरि प्रसाद द्वारा आरओसी को लिखा गया मेल

लेकिन, नतीजा कुछ नहीं निकला। और जो आशंका हरि प्रसाद ने जताई थी, वह सच साबित हुई। हरि प्रसाद का कहना है कि पीएमओ ने औपचारिकता निभाते हुए शिकायत को आरओसी के पास भेजा तो था और फिर उन्हें सूचित किया गया कि मामले का निपटारा हो गया। इस निपटारे में न तो हरि प्रसाद से कोई अतिरिक्त जानकारी मांगी गई, और न ही आरओसी ने यह बताया कि इस मामले में क्या कार्रवाई हुई।

नीरव मोदी मामले में क्या झूठ बोल रही है सरकार? तस्वीरें और दस्तावेज दिखा रहे हैं अलग कहानी
वह पत्र जिसमें हरि प्रसाद ने साफ लिखा था कि नीरव मोदी और उनकी कंपनियां करीब 1000 करोड़ का घोटाला करने वाली हैं

अब सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री सफाई देते फिर रहे हैं कि नीरव मोदी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी, दावोस में प्रधानमंत्री के साथ ग्रुप फोटो में उसकी मौजूदगी महज इत्तिफाक है, वह सरकार के अधिकारिक डेलीगेशन का हिस्सा नहीं है। लेकिन दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक से पहले जो खबरें पीटीआई के हवाले से विभिन्न अखबारों में छपी थीं. उनमें स्पष्ट था कि सरकार जिन करीब सौ उद्योगपतियों और कार्पोरेट लीडर्स को दावोस ले जा रही है उनमें नीरव मोदी का नाम है।14 जनवरी को पीटीआई ने जो खबर दी थी, उसमें साफ कहा गया था कि वित्त मंत्री देश के 100 मुख्य उद्योगपतियों के साथ दावोस जाएंगे। इसमें नीरव मोदी का नाम था।

इतना ही नहीं दावोस में पीएम के साथ फोटो खिंचवाते नीरव मोदी की जो तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं, उसे तो विदेश मंत्रालय ने ही जारी किया था। अभी तक तो सिर्फ कतार में खड़े नीरव मोदी की तस्वीर ही सामने आई थी, लेकिन ऊपर दी गई तस्वीर से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री का इन सभी लोगों से बाकायदा ‘इंटरैक्शन’ भी हुआ था।

सबसे पहले आपको बताते हैं कि आखिर हरि प्रसाद को इस घोटाले की भनक कैसे लगी या उन्हें इसमें घोटाले की आशंका कैसे हुई। टीवी चैनलों और अखबारों से बात करते हुए हरि प्रसाद ने बताया कि, “2012 में मैंने नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के साथ एक बिजनेस डील की थी। डील थी नीरव मोदी ब्रांड की फ्रेंचाइजी लेना। मैंने इसमें करीब 10 करोड़ रूपए निवेश किए, जिसके बदले में नीरव मोदी की कंपनी मुझे 25 करोड़ मूल्य का माल देने वाली थी। लेकिन मेरे निवेश के एक साल बाद भी जब मुझे कुछ नहीं मिला, तो मैंने नीरव मोदी और मेहुल चोकसी से मिलने की कोशिश की, लेकिन दोनों ने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया।”

हरि प्रसाद दो साल तक अपने डूबे पैसे को वापस पाने की कोशिश करता रहा, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। आखिर हरि प्रसाद ने बेंग्लुरु में पुलिस शिकायत दर्ज कराई। लेकिन वहां भी कोई नतीजा नहीं निकला। उसने फिर एक और शिकायत दर्ज कराई, उसका नतीजा भी कुछ नहीं निकला। इसके बाद हरि प्रसाद ने नीरव मोदी की कंपनियों की बैलेंस शीट की जांच करना शुरु की, तो उसे पता चला कि यह तो बहुत बड़ा घोटाला है।

इस पर प्रसाद ने सीबीआई को शिकायत भेजी। लेकिन सीबीआई से भी निराश होने के बाद प्रसाद ने मामले को पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय में दर्ज कराया। पीएमओ ने उसकी शिकायत को एकनॉलिज करते हुए आगे की कार्रवाई के लिए आरओसी के मुंबई कार्यालय भेज दिया। लेकिन आरओसी ने भी उससे कुछ पूछे बिना और कोई कार्रवाई किए बिना ही इस मामले को बंद कर दिया।

यहां यह जानना जरूरी है कि सीबीआई जिस विभाग के अंतर्गत काम करती है, उस विभाग के मंत्री प्रधानमंत्री स्वंय हैं। साथ ही रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज, जिस विभाग के मातहत काम करती है, उस विभाग के मंत्री, वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं। किन-किन धाराओं में यह मामला बन सकता था, उसे तय करना एजेंसियों का काम भले ही हो, लेकिन कानूनी तौर पर मजबूत किसी भी मामले की जिम्मेदारी देश के कानून मंत्री के पास होती है। इसके अलावा चूंकि यह कारोबारी मामला था, इसलिए इसकी जिम्मेदारी वाणिज्य मंत्रालय की भी होती है, जिसकी मंत्री निर्मला सीतारमण थीं।

अब यही मंत्री सरकार के बचाव में उतरे हैं, बिल्कुल उसी तरह जैसे, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह के मामले में केंद्रीय मंत्री बचाव में उतरे थे। आखिर क्यों एक प्राइवेट पर्सन के बचाव में अचानक केंद्र सरकार मैदान में उतर आती है?

निर्मला सीतारमण ने कुछ टीवी चैनलों से बातचीत में कहा कि यह घोटाला 2011 से चल रहा था, उस समय यूपीए सरकार थी। लेकिन पंजाब नेशनल बैंक ने जिन घोटालों की सूची सीबीआई को सौंपी है, उसमें सारे मामले जनवरी-फरवरी 2017 के हैं। (नीचे दिया गया चित्र देखें)

नीरव मोदी मामले में क्या झूठ बोल रही है सरकार? तस्वीरें और दस्तावेज दिखा रहे हैं अलग कहानी
पीएनबी की तरफ से सीबीआई को सौंपी गई रकम की जानकारी

पीएनबी ने जो सूची सौंपी है, उसमें साफ लिखा है कि यह सारे फ्रॉड 2017 में हुए और इन पर पीएनबी को जनवरी 2018 में भुगतान करना था।

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