सुपरटेक ट्विन टॉवर को गिराने में कई चुनौतियां, देश में पहले ध्वस्त नहीं की गई इस तरह की बिल्डिंग, जानें क्या है उपाय

सुपरटेक ट्विन टावर में भ्रष्टाचार की नींव को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार देते हुए तीन महीने के भीतर गिराने के आदेश दिये हैं। हिंदुस्तान में इस तरह की बिल्डिंग को पहले ध्वस्त नहीं किया गया है, ऐसे में इंटरनेशनल एक्सपर्ट की सलाह लेनी पड़ेगी।

फोटो: IANS
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आईएएनएस

10 साल पहले रखी गई सुपरटेक ट्विन टावर में भ्रष्टाचार की नींव को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार देते हुए तीन महीने के भीतर गिराने के आदेश दिये हैं। हालांकि एक्सपर्ट्स की माने तो हिंदुस्तान में इस तरह की बिल्डिंग को पहले ध्वस्त नहीं किया गया है, ऐसे में इंटरनेशनल एक्सपर्ट की सलाह लेनी पड़ेगी।

प्लानिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्च र एक्सपर्ट अभिनव सिंह के अनुसार, अर्बन एरिया में इस तरह का फैसला ऐतिहासिक है, लेकिन इसके पीछे चुनातियां भी हैं। बिल्डिंग के बगल में कई सारी इमारत पहले से मौजूद हैं। हिंदुस्तान में इस तरह की बिल्डिंग को ध्वस्त नहीं किया गया जो इतनी मंजिल की हों। बिल्डिंग ध्वस्त करने पर आस पास में एक वाइब्रेशन भी पैदा होगा, जो स्थानीय बिल्डिंग को नुकसान पहुंचा सकता है।

उन्होंने बताया कि, इस तरह की बिल्डिंग को तोड़ने के लिए हिंदुस्तान में कोई एक्सपर्ट नहीं हैं, हमें विदेश से मदद लेनी होगी, इंटरनेशनल एक्सपर्ट की मदद से हम इसपर कोई कार्रवाई कर सकते हैं। हालांकि अन्य एक्सपटरें की मानें तो इस बिल्डिंग को नॉन एक्सप्लोसिव ध्वस्त करना होगा, मैन्युअली और चरण बद्ध तरीके से तोड़ना होगा। जिसके लिए मैन पावर की जरूरत पड़ेगी क्योंकि एक समय के अंतराल पर इसे तोड़ना है।

अंकुर वत्स अर्किटेक्ट ने आईएएनएस को बताया कि, मैन्यूली बिल्डिंग को तोड़ा जाना चाहिए, हाइब्रिड मॉडल को अपनाना होगा यानी ऊंची मंजिलों को मैन्यूली तोड़ना और निचली मंजिलों को एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं यदि हम शटरिंग का इस्तेमाल करेंगे वो बहुत खर्चीला होगा।


बगल वाली बिल्डिंग के बेसमेंट से जुड़े होने के कारण भी एक चुनौती है, हिंदुस्तान में यह खुद एक अनोखी चीज होगी। दरअसल नोएडा स्थित सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के 40 फ्लोर वाले ट्विन टावर को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार देते हुए तीन महीने के भीतर गिराने का आदेश दिया है।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्विन टावर में जो भी फ्लैट खरीदार हैं, उन्हें दो महीने के भीतर उनके पैसे रिफंड किए जाएं, इस रकम पर 12 फीसदी ब्याज का भी भुगतान किया जाए।
धर्मेंद्र सिंह ने 2009 में ट्विन टावर की 9वीं मंजिल पर फ्लैट खरीदा, जिसमें उनको कुल 48 लाख रुपये में से 42 लाख रुपये दे चुके हैं।

उन्होंने आईएएनएस को बताया कि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हमें 12 फीसदी देनी की बात कही है, लेकिन हाई कोर्ट ने 14 फीसदी देनी की बात कही थी। हमने पैसा ब्याज पर नहीं लगाया बल्कि सारी जमापूंजी खर्च कर एक घर का सपना देखा था।

हम सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डालेंगे कि नोएडा ऑथरिटी के ऊपर क्या कार्यवाही की गई ? सुप्रीम कोर्ट हमें नोएडा अथॉरिटी से घर दिलवाये। हमें ब्याज पर पैसा नहीं चाहिए। दूसरी ओर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मसले पर सख्त नजर आ रहे हैं। उन्होंने शासन स्तर पर एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम गठन करने के आदेश जारी किया, साथ ही ये एसआईटी साल 2004 से 2017 तक इस प्रकरण से जुड़े रहे प्राधिकरण के अफसरों की सूची बनाकर जवाबदेही तय करेगी।

सीएम योगी ने साफ कर दिया है कि इस मामले में दोषी पाए गए अफसरों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। दरअसल इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2014 में ट्विन टावर तोड़ने का आदेश दिया था, सुपरटेक ने उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एमरल्ड कोर्ट रेसिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य बेहद खुश हैं।



प्रतीक पालीवाल ने आईएएनएस को बताया कि, 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह केस डाला गया था, 11 अप्रैल 2014 को कोर्ट के फैसले के बाद हमारा विश्वास बढ़ गया। फैसले के बाद 2014 में बिल्डर सुप्रीम कोर्ट में गया और देश के नामी वकीलों से बहस कराई। 31अगस्त के फैसले के बाद बिल्डर, खरीदार और प्राधिकरण के रिश्तों को रेखांतिक करेगा और भविष्य में कोई भी बिल्डर खरीदार को परेशान नहीं करेगा।

एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी पंकज वर्मा ने आईएएनएस को बताया कि, 'मॉन्स्टर' हटने की खबर से सभी को खुशी है। हवा, पानी, सूरज की रौशनी कुछ नजर नहीं आती। आग लगने की स्थिती में इमरजेंसी गाड़ियां नहीं जा सकती।

इस मामले से जुड़े रहे एडवोकेट केके सिंह ने आईएएनएस को बताया कि, कुछ सरकारी और प्राधिकरण के लोग बिल्डर के साथ मिलकर बायर्स को चूना लगा रहे थे। इस मामले में मानकों तक कि धज्जियां उड़ाई गईं। शुरू में 14 टॉवर सेंक्शन हुए, वहीं आरडब्ल्यूए ने रातों रात अवैध निर्माण शुरू होते देखा तो सुपरटेक के लोगों से बात कर सवाल पूछे गए।

2006, 2009 और 2012 के अंदर कानूनी अमलीजामा पहनाया गया, मानकों में बदलाव कर दिये गए। कोर्ट में याचिका डाली गई। उन्होंने आगे बताया कि, दो महीने में बायर्स को पैसा वापस करना है, यहां दो टॉवर 40 मंजिल के हैं। 915 फ्लैट, 21 कमर्शियल दुकाने हैं। वहीं 633 फ्लैट उस वक्त तुरन्त बुक हो गए थे। 633 में से कुछ लोगों ने अपना पैसा वापस ले लिया है। लेकिन अधिक्तर बायर्स पैसे वापस होने का इंतजार हैं।

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