सावधान ! NRC-NPR पर नर्मी और सीएए पर मोदी सरकार का अड़ियल रुख है खतरनाक, इनकी फितरत में है पलटकर वार करना

मोदी सरकार ने हाल ही में संसद में माना कि एनआरसी की फिलहाल कोई योजना नहीं है और एनपीआर पर भी राज्यों की सलाह से ही काम होगा। आखिर सरकार के इस नर्म रुख की वजह क्या है? शंका यूं पैदा होती है क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून पर उसका रवैया अड़ियल है। ऐसे में सतर्क रहना जरूरी है।

फोटो : सोशल मीडिया
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कम-से-कम फिलहाल यह मानना चाहिए कि सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर सच बोल रही है। भले ही अमित शाह के जूनियर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा हो, पर बात लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर- संसद, में कही गई है इसलिए इस पर शंका की गुंजाइश नहीं है। हां, यह जरूर है कि सतर्क तो रहना होगा, क्योंकि सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उसका अड़ियल रवैया बरकरार है।

नित्यानंद राय ने लोकसभा में 4 फरवरी को सवालों के लिखित जवाब में कहा कि देश भर में एनआरसी लागू करने का ’अब तक’ कोई फैसला नहीं लिया गया है। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने साफ-साफ कहा कि एनपीआर को अद्यतन करने यानी अपग्रेड करने के दौरान लोगों से कोई दस्तावेज नहीं लिया जाना है। इस दौरान किसी व्यक्ति से ऐसा कोई सत्यापन नहीं होगा, जिससे किसी की नागरिकता पर सवाल उठे। कोई व्यक्ति अगर आधार नंबर नहीं भी देना चाहे, तो वह स्वतंत्र है।

एनआरसी और एनपीआर, ये दो मसले ऐसे हैं जिन पर सरकार के इरादे को लेकर शंका रही है। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) लागू होने के बाद इसी तरह की आशंका को लेकर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। वैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 दिसंबर को रामलीला मैदान की बीजेपी की रैली में भी कहा था कि ’पहले यह तो देख लीजिए कि एनआरसी पर कुछ हुआ भी है क्या? मेरी सरकार आने के बाद 2014 से आज तक कहीं पर भी एनआरसी शब्द पर कोई चर्चा नहीं हुई है, कोई बात नहीं हुई है।’ यह जरूर अर्धसत्य था क्योंकि इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक कई बार बोल चुके थे कि एनआरसी की प्रक्रिया पूरे देश में लागू की जाएगी।


मंत्रियों-सांसदों से बातचीत के बाद बदला रुख!

देशव्यापी तीव्र विरोध, झारखंड में चुनावी हार, दिल्ली चुनावों में मतदाताओं के रुख और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार हो रही किरकिरी से प्रधानमंत्री मोदी को समझ में आ गया कि उन्होंने इसे ठंडे बस्ते में न डाला, तो कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। अपने लेफ्टिनेंट गृह मंत्री अमित शाह के बयानों से फैलती आग पर नियंत्रण पाना उनके लिए जरूरी था। इसके लिए जनवरी के आखिरी दस दिनों में उन्हें कई तरह की कोशिशें करनी पड़ीं। वैसे तो मोदी-शाह बीजेपी नेताओं से बातें करना अपनी हेठी समझते हैं, लेकिन बढ़ते देशव्यापी विरोध के बीच मंत्रिमंडल की हाल ही एक बैठक में हुई बातचीत शायद वह प्वाइंट था जिससे मोदी को समझ में आ गया कि वह कितने गहरे पानी में हैं। असल में, प्रधानमंत्री मोदी की संसद सत्र की तैयारी और अन्य कारणों से मंत्रियों और कुछ सांसदों से मुलाकात पहले से तय थी।

आम तौर पर मोदी मंत्रिमंडल की बैठकों में विचार-विमर्श कम ही होते हैं। पर अभी हाल में कुछ लोगों को बोलने का मौका मिल गया। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक में सवाल उछाल दिया कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों की जनता के बीच क्या प्रतिक्रिया है। बीजेपी का कोई मंत्री इन बैठकों में भी अपनी ओर से कोई राय नहीं जताता। लेकिन इस अवसर का उन मंत्रियों ने फायदा उठा लिया जो सहयोगी दलों के हैं। उन्होंने भी यह तो माना कि समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बहुत तेज है लेकिन यह भी चेताया कि सिर्फ इसके बूते वोटों की फसल काटना संभव नहीं होगा।

इस मंत्री ने हाल के राज्य विधानसभा चुनावों के परिणामों को अपनी बात की पुष्टि के लिए सामने रखा। दो मंत्रियों ने कहा कि जिस तरह लोगों से माता-पिता के जन्मस्थान और जन्मतिथियां मांगने की तैयारी है, उससे काफी लोग डरे हुए हैं और इनमें सिर्फ मुसलमान नहीं हैं। एक मंत्री तो यह तक कहने से भी नहीं चूके कि खुद उनके पास ही कई दस्तावेज नहीं हैं और कम-से-कम माता-पिता से संबंधित डाॅक्यूमेंट तो नहीं ही हैं।


अमित शाह की जरूरत से ज्यादा तेजी से बिगड़ी बात!

एक उच्चपदस्थ अधिकारी ने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व, खास तौर से अमित शाह, ने जरूरत से अधिक तेजी दिखा दी इसलिए यह स्थिति पैदा हुई है। इस अधिकारी ने कहा कि एनआरसी तो छोड़िए, एनपीआर को भी लेकर अभी सरकार के स्तर पर तैयारी ही हो रही है। अभी तो यह फाॅर्मूला ही पूरी तरह तैयार नहीं हो पाया है कि आखिर, एनपीआर के फाॅर्म में क्या-क्या सवाल किस-किस तरह पूछे जाएंगे। सरकार ने, एक तरह से, सभी लोगों की वंशावली बनाने को सोच तो लिया लेकिन इसके लिए अपनी तैयारी ही पक्की नहीं की। एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वैसे भी, यह मसला सीधे गृह मंत्रालय के अधीन है और शाह के सामने कोई वरिष्ठ अधिकारी कुछ नहीं बोलता। इस सरकार ने विचार-विमर्श पर एक तरह से पाबंदी ही लगा रखी है। इसलिए अधिकतर मामलों में, खास तौर से एनपीआर प्रसंग में शाह की बातें सुनने की प्रतीक्षा की जाती है। और, शाह ने इन दिनों थोड़े रुकने को कहा हुआ है। सारी गफलत इस वजह से हो रही है।

शाह के डिपुटी नित्यानंद राय ने संसद में इसीलिए कहा कि अभी राज्यों के साथ बातचीत की जा रही है कि एनपीआर में क्या-क्या सवाल किस-किस तरह पूछे जाएं। राय ने यह भी साफ किया कि एनपीआर फाॅर्म को भी अभी अंतिम रूप दिया जाना और नोटिफाई किया जाना है।

तो क्या इस जोड़ी में दरार है?

अभी इस नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी कि मोदी और शाह के बीच दरार पड़ चुकी है। मोदी की गुजरात से अब तक की राजनीतिक यात्रा में शाह चप्पे-चप्पे पर नजर आते रहे हैं। मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री-पद दिलवाने में शाह ने बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर वह सब कुछ किया जो मोदी की इच्छा रही है। लेकिन इसमें भी शक नहीं कि जबसे शाह ने गृह मंत्री का पद संभाला है, उनकी भाव-भंगिमा, बात-चीत ऐसी है, मानो वह ही इस सरकार के मुखिया हों। संघ परिवार के एजेंडे का पूरा करने करते हुए वह कई दफा मोदी के कद से ऊंचे नजर आने लगे हैं जबकि मोदी की भूमिका वस्तुतः मौनी बाबा वाली होने लगी है।

मोदी की छटपटाहट इसलिए भी बढ़ रही है कि लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पहले से ज्यादा सीटें आने के बावजूद शाह की हठधर्मिता की वजह से महाराष्ट्र की सत्ता हाथ से जाती रही, जबकि इससे पहले देवेंद्र फडणवीस को जबरन मुख्यमंत्री-पद की शपथ दिलवाने से बदनामी अलग से हो गई। हरियाणा में सत्ता मिल तो गई, पर कितने दिन रहेगी, कहना मुश्किल ही है। झारखंड में तो मुंह की ही खानी पड़ी। सीएए से जिस लाभ की आशा थी, उसे देशव्यापी विरोध ने तो धो-पोछ दिया ही, आलोचना अंतरराष्ट्रीय स्तर तक होने लगी। इसीलिए मोदी ने कम-से-कम इस प्रसंग में तो शाह की बातें सुनना बंद कर ही दिया है।


दिल्ली चुनावों में भी फायदा न होते देख ही आग ठंडी करने के खयाल से मोदी के निर्देश पर ही केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह बयान दिया था कि सरकार शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों से बात करने को तैयार है। सरकार के मन में कोई खोट न होता, तो बातचीत शुरू भी हो जाती। लेकिन इस बारे में लोगों को रत्ती भर भी यकीन नहीं हुआ। फिर, शाहीन बाग और जामिया में प्रदर्शनकारियों पर हमले भी हो गए। इसलिए कुछ नहीं हुआ।

फिर भी चैकन्ना रहना जरूरी

मोदी सरकार ने फिलहाल जो रुख अख्तियार किया है, उस पर आंखें मूंदकर विश्वास तो नहीं किया जा सकता, लेकिन यह अवश्य है कि सतर्कता के साथ लगातार निगाह बनाए रखनी होगी। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में ढांचे की सुरक्षा के आश्वासन के बावजूद बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने जिस तरह इसका उल्लंघन किया था, वह ऐसी मिसाल है जिसे भूलने की कोई वजह नहीं है।

वैसे भी, मोदी सरकार संघ के एजेंडे को पूरा करने की हरसंभव कोशिश करेगी। इसलिए नाटक के ताजा अध्याय में शाह को फिलहाल भले ही किनारे करने का मंचन चल रहा हो, उन पर लगातार निगाह जमाए रखनी होगी। वैसे भी, आदमी का मूल चरित्र नहीं बदलता!

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