सीएए पर मुसलमानों को साधने की संघ की कोशिश फेल, समर्थन में बुलाई गई बैठक में लगे विरोध के नारे

नागरिकता संशोधन कानून पर ईसाई समुदाय को रिझाने की कोशिश करने के बाद आरएसएस ने मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद की पहल की है। इसके तहत दिल्ली में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता इंद्रेश कुमार ने कुछ मुस्लिम उलेमाओं के साथ बैठक की। लेकिन इस बैठक में ही सीएए का विरोध शुरु हो गया।

फोटो : ऐशलिन मैथ्यू
फोटो : ऐशलिन मैथ्यू
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ऐशलिन मैथ्यू

बैठक की शुरुआत होते ही कई लोगों ने नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ हाथों में पर्चे लेकर विरोध शुरु कर दिया और नारेबाजी की। करीब 7-8 मिनट तक यह नारेबाजी चलती रही, जिसके बाद इन लोगों को सभा स्थल से बाहर निकाल दिया गया। इस तरह सीएए के समर्थन में बुलाई गई बैठक में इसके विरोध की ज्यादा चर्चा रही।

बैठक में हालांकि मंच पर कुछ मौलाना को बैठाया गया था, लेकिन इस हंगामे के बाद सिर्फ आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ही बोले और मौलानाओं को बोलने का मौका नहीं मिला। अपने भाषण में इंद्रेश कुमार ने बिना तथ्यों को सामने रखा सरसरे तौर पर कहा कि उनकी टीम टीम ने पुरानी दिल्ली में एक सर्वे किया है जिसमें सामने आया है कि सदर बाजार में काम करने वाले करीब 3000 मजदूरों में से सिफ 235 ही भारतीय हैं बाकी बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। उन्होंने कहा, “मैंने अनपे लोगों को दिल्ली के कुछ और इलाकों में भी सर्वे के लिए भेजा और सामने आया कि आधी से ज्यादा नौकरियां इन बांग्लादेशी घुसपैठियों ने कब्जा ली हैं। हम इसी सबके खिलाफ हैं।”

इस दौरान जब इंद्रेश कुमार से पूछा गया कि इस सर्वे के आंकड़े कहां हैं जिसके आधार पर वह यह बात कह रहे हैं, तो उनका जवाब था कि उन्हें किसी को ये आंकड़े दिखाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर कोई मीडिया संस्थान इस पर स्टोरी करना चाहता है तो उन्हें खुद ही इस पर रिसर्च करनी होगी।


इंद्रेश कुमार के इस जवाब से स्पष्ट हो गया कि वे भी उसी तर्क का सहारा ले रहे हैं जिसके आधार पर बीजेपी सीएए और एनआरसी के विरोध को दबाना चाहती है। इस आयोजन के सभास्थल में करीब 70 लोग शामिल हुए, जिनमें से 30 से ज्यादा हिंदू थे। इंद्रेश कुमार ने कहा कि सीएए और एनआरसी से अल्पसंख्यकों को फायदा होगा और किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि, “भारत हमेशा से सभी धर्मों के लोगों को शरणा देता रहा है। पारसी आए, यहूदी आए, उन सबको हमने अपनाया। इन लोगों का उनके धर्म के कारण दूसरे देशों में उत्पीड़न हो रहा था। और इससे मुस्लिम अलग-थलग नहीं हो गए।”

इंद्रेश कुमार ने दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाओं द्वारा किए जा रहे विरोध आंदोलन की निंदा की। उन्होंने इस्लामी शिक्षा का गलत सदर्भ सामने रखते हुए कहा, इस्लाम में कहा जाता है कि अगर आपका पड़ोसी भूखा है तो आपकी नमाज कुबुल नहीं होगी। उन्होंने कहा, “शाहीन बाग में धरने पर बैठी महिलाओं ने इस्लाम की इस हिदायत को नजरंदाज़ कर दिया है। वे बहादुर महिलाएं है।” उनकी इस बात पर सभा में मौजूद करीब 70 में से सिर्फ दो लोगों ने ही ताली बजाई। लेकिन इंद्रेश कुमार इस्लाम की इस शिक्षा का हवाला देना भूल गए कि हर नाइंसाफी का विरोध होना भी जरूरी है।

इंद्रेश कुमार ने अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की भी कोशिश की। उन्होंने कहा कि “शाहीन बाग की महिलाएं कहती हैं कि अगर प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह आकर बात करें तो वे अपना धरना खत्म कर लेंगी, वे यह भी कहती हैं कि अगर उनके भाई इंद्रेश कुमार उनसे आकर मिलेंगे तो वे अपना आंदोलन वापस ले लेंगी।“


बैठक के बाद नेशनल हेरल्ड ने सभा मेंम मौजूद करीब 15 मुस्लमों से इस बैठक के बारे में सवाल किया, जिनमें से 10 ने तो जवाब ही नहीं दिया। बाकी ने कहा कि उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है और यह कहकर वे बाहर चले गए। जिन पांच लोगों ने बात की उन्होंने उनकी फोटो और नाम जाहिर न करने का अनुरोध किया। इनमें से एक ने बताया, “मैं मुरादाबाद से आया हूं यह देखने के लिए कि आखिर यह लोग क्या कहते हैं। मैं सीएए या एनआरसी का समर्थन नहीं करता हूं क्योंकि इससे भारतीयों पर बुरा प्रभाव पड़ने वाला है और सबसे ज्यादा असर मुसलमानों पर होगा।“ इस शख्स ने बताया कि मंच पर जो लोग बैठे हैं वे सिर्फ पॉवर और पैसे के लिए इनके साथ हैं।

गौरतलब है कि इसी महीने बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने ईसाई समुदाय के साथ बैठक की थी जिसमें 15 पादरियों ने हिस्सा लिया था। इस बैठक में बीजेपी के उपाध्यक्ष दुष्यंत गौतम और टॉम वडक्कन ने भी बात रखी थी।

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Published: 16 Jan 2020, 10:30 PM
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