शिव ‘राज’ सरकार का कारनामा, जांच में देरी होने पर घोटाले के 6 अधिकारियों और कर्मचारियों का निलंबन किया खत्म

मध्य प्रदेश सरकार में करोड़ों के घोटाले में शामिल अफसरों को सिर्फ इसलिए निलंबन के बाद बहाल कर दिया गया, क्योंकि जांच में देरी हो रही थी।

फोटो: सोशल मीडिया
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आईएएनएस

मध्य प्रदेश देश का अजब राज्य है, जिसकी कहानी भी गजब है। तभी तो करोड़ों के घोटाले में शामिल अफसरों को सिर्फ इसलिए निलंबन के बाद बहाल कर दिया गया, क्योंकि जांच में देरी हो रही थी। इस मामले को लेकर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने 11 जनवरी को मुख्यमंत्री आवास के बाहर लगी शिकायत पेटी में अपनी शिकायत का लिफाफा डाल दिया। अजय सिंह ने इंदौर में हुए 75 करोड़ से अधिक के आबकारी घोटाले में आरोपी अधिकारी-कर्मचारियों को बहाल करने के बीजेपी सरकार के निर्णय को एक और बड़ा घोटाला बताया है।

उन्होंने कहा कि जिस तरीके और कारण के साथ 6 अधिकारी-कर्मचारियों का निलंबन खत्म किया गया है, वह मध्य प्रदेश के इतिहास में अभूतपूर्व भ्रष्टाचार की मिसाल है।

उन्होंने आगे कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं न खाऊंगा न खाने दूंगा, वहीं शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार में जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। दूसरी ओर आबकारी विभाग के उन अफसरों को बहाल कर दिया जाता है, जो करोड़ों के घपले में शामिल हैं।”

10 जनवरी की रात वाणिज्यिक कर विभाग के उपसचिव अदिति कुमार त्रिपाठी के हस्ताक्षर से जारी आदेश में कहा गया है कि जांच में संबंधित अधिकारियों को जवाबदेह पाया गया है, आरोपपत्र जारी हुआ है और विभागीय जांच हो रही है। इस प्रक्रिया में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए तब तक के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों का निलंबन खत्म कर उन्हें बहाल किया जाता है।

अजय सिंह ने शिकायत पेटी में डाले अपने पत्र में कहा कि राज्य सरकार ने 10 जनवरी की देर रात को वर्ष 2017 के बड़े आबकारी घोटाले के आरोपियों को बहाल करने का आदेश निकाला। इसकी जांच भी पूरी नहीं हुई है। लोकायुक्त के साथ यह मामला उच्च न्यायालय में चल रहा है। सरकार ने जिस चोरी छुपे तरीके से बहाली का जो आदेश निकाला है, वह घोटाले में एक और घोटाले होने का संकेत दे रहा है।

अजय सिंह ने पत्र में याद दिलाते हुए कहा कि 1 सितंबर को उच्च न्यायालय में राज्य सरकार की ओर से आबकारी घोटाले के मामले में जो जवाब न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया था, उसमें स्पष्ट यह उल्लेख किया गया था कि इस आर्थिक गड़बड़ी के प्राथमिक जिम्मेदार सहायक आयुक्त संजीव दुबे ही हैं। जवाब में यह भी लिखा गया था कि इस आर्थिक गड़बड़ी की जांच 4 वरिष्ठ अधिकारियों ने की।

उन्होंने आगे कहा कि हैरान करने वाली बात यह है कि बहाली के जो आदेश सरकार ने जारी किए हैं, उसमें भी इन अधिकारियों-कर्मचारियों को दोषी माना है, फिर भी बहाली का आदेश दिया गया है।

उन्होंने सवाल उठाया, “सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि 75 करोड़ से अधिक का चूना लगाने वाले और अमानत में खयानत करने वाले इन अधिकारियों-कर्मचारियों को बहाल करना पड़ा?”

उन्होंने अंदेशा जताते हुए सवाल उठाया, “क्या आरोपियों ने इस घोटाले में सत्ताशीर्ष से जुड़े लोगों के नाम उजागर करने की धमकी दी थी?”

नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमंत्री को लिखा, “आप इस मामले की जांच कराने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए इस पूरे मामले की जांच सीबीआई या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति गठित कर कराई जाए।”

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