मजदूरों की बदहाली पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश, सरकारें श्रमिकों से बस-ट्रेन का किराया न वसूलें और खाना भी दें

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कहा है कि जो भी मजदूर ट्रेन और बस से भेजे जा रहे हैं, उनसे किराया नहीं लिया जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि ट्रेन या बस से घर जाने वाले मजदूरों को सरकारें खाना दें, अगर वे रेल में सफर कर रहे हैं तो रेलवे उन्हें खाना मुहैया करवाए।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

देशव्यापी लॉकडाउन के चलते देश के विभिन्न भागों में फंसे प्रवासी मजदूरों की दयनीय हालत और उनकी समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को कई सख्त निर्देश दिए। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि घर पहुंचने से पहले प्रवासियों को भोजन, पानी और अन्य बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश जारी करते हुए कहा कि जो भी प्रवासी मजदूर ट्रेन और बस से भेजे जा रहे हैं, उनसे किराया नहीं वसूला जाना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रेन या बस से घर भेजे जा रहे मजदूरों को भोजन सरकारें उपलब्ध करवाएं और अगर प्रवासी श्रमिक रेल से सफर कर रहे हैं तो रेलवे उन्हें खाना मुहैया करवाए।

कोरोना संकट के चलते लागू लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न भागों में फंसे प्रवासी मजदूरों की दयनीय हालत और उनकी समस्या पर बीते मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा था कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की ओर से किए जा रहे प्रयास अपर्याप्त हैं और इनमें खामियां हैं। अदालत ने इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब भी मांगा है।

देश में श्रमिकों की दुर्दशा से जुड़े इस मामले पर आज फिर से सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से कई तीखे सवाल पूछे। सुनवाई के दौरान केंद्र के वकील ने कहा कि 1 से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों और बसों के जरिए लगभग 91 लाख प्रवासी श्रमिकों को राज्य सरकारों के साथ समन्वय से उनके गृह राज्यों में पहुंचाया गया है।

इस पर शीर्ष अदालत की पीठ ने पूछा कि “क्या बड़ी संख्या में यात्रा कर रहे श्रमिकों को ठीक से भोजन दिया गया? क्या उन्हें किसी भी स्तर पर टिकट के लिए भुगतान करने के लिए कहा गया?सवाल यह है कि राज्य सरकार इसका भुगतान कैसे कर रही है? क्या इसके लिए श्रमिकों को पैसे देने के लिए कहा जा रहा है?” कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या इन लोगों को बाद में प्रतिपूर्ति की जाएगी? अदालत ने पूछा कि जब वे ट्रेनों में जाने के लिए इंतजार कर रहे थे, तो क्या उन्हें भोजन दिया गया? पीठ ने जोर देकर कहा, उन्हें भोजन मिलना चाहिए।

इस पर केंद्र के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि उन्हें सफर के दौरान भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे मेहता ने कहा कि हर दिन लगभग 3.36 लाख प्रवासियों को स्थानांतरित किया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार अपने प्रयासों को तब तक नहीं रोकेगी, जब तक कि अंतिम प्रवासी को उसके गृह राज्य में वापस नहीं भेज दिया जाता।

इस पर जस्टिस अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने कहा कि कोई संदेह नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारों ने कदम उठाए हैं, लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाया। कोर्ट ने कहा कि राहत शिविरों में प्रवासियों को भोजन मिल सकता है, लेकिन किराए पर रह रहे लोग राष्ट्रव्यापी बंद के कारण परेशानी का सामना कर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि घर पहुंचने से पहले प्रवासियों को भोजन, पानी और बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए।

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Published: 28 May 2020, 6:03 PM