उत्तराखंड चुनाव: पीएम मोदी ने जिन्हें सौगात बताया था, वे तो निकले सिर्फ भरमाने वाले वादे

पीएम मोदी ने उत्तराखंड में कई योजनाओं को ऐतिहासिक कहते हुए सौगात बताया था। लेकिन इन परियोजनाओं से जो विनाश हो सकता है उसे लेकर लोग आशंकित हैं। जल जीवन मिशन को भी मोदी ने सौगात बताया, पर राज्य सरकार केन्द्र से मिले पैसे ही हर साल खर्च नहीं कर पाई।

प्रतीकात्मक फोटो
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हिमांशु जोशी

आचार संहिता लागू होने से पहले पिछले साल 30 दिसंबर को हल्द्वानी आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड में अपनी पार्टी के लिए चुनाव का टोन सेट करने के खयाल से जो बातें कीं, उनकी असलियत यहां सबको पता है। इससे ही लगता है कि भाजपा यूपी की तरह उत्तराखंड में भी सांप्रदायिक विभाजन पर ही ज्यादा जोर देगी।

दरअसल, यहां बन रहे ऑल वेदर रोड को भाजपा ने विकास मॉडल के तौर पर देश भर में प्रचारित करने की लगातार कोशिश तो की है लेकिन इस निर्माण कार्य से हो रही आपदाओं ने सच्चाई सबके सामने ला दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे ऐतिहासिक बताया लेकिन नैनीताल से टूरिज्म एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट के शोध छात्र कमलेश जोशी की यह टिप्पणी उन्हें आईना दिखाने वाली है कि ‘पहाड़ों में विकास के खिलाफ शायद ही कोई हो लेकिन विनाश की इस शर्त पर विकास शायद ही किसी उत्तराखंडी को मंजूर हो जिसमें पल-पल जानमाल का खतरा बना हुआ है। संसाधनों का सीमित दोहन और उपयोग सतत विकास की मूल अवधारणा है। उत्तराखंड को भी सतत विकास की नितांत आवश्यकता है जो न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी के लिए उपयोगी हो बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी बचा रहे। लेकिन ऑल वेदर रोड का निर्माण तो लोगों के लिए डरावना ही हो गया है।’

एक अन्य व्यक्ति ने सही कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के लोगों को ऑल वेदर रोड से ज्यादा ऑल वेदर हेल्थ सर्विसेज, ऑल वेदर एजुकेशन, ऑल वेदर जॉब सिक्योरिटी तथा ऑल वेदर लिविंग कंडीशन की जरूरत है। जिस दिन ये बेसिक सुविधाएं हर मौसम में सुदूर पहाड़ी गांवों तक पहुंच जाएंगी, रोजगार की मजबूरी में बाहर चले गए लोग भी राजी-खुशी वापस आने लगेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने रैली में टनकपुर- बागेश्वर रेल लाइन, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन को लेकर हो रहे काम को भी ऐतिहासिक बताया था। लेकिन दिक्कत यह है कि इस रेल लाइन का भूत हर चुनाव में सबको जगाता है और आम दिनों में फिर सबकुछ सामान्य हो जाता है। तब ही तो टनकपुर के युवा मयंक पंत कहते हैं कि यह अब कोई बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं रहा क्योंकि सर्वे की बात सुन-सुनकर हम थक चुके हैं। हर सरकार आती है और इस रेलवे लाइन के फाइनल सर्वे की बात कह जाती है।


कमोबेश यही हाल ‘जल जीवन मिशन’ का है जिसे मोदी ने बड़ी सौगात बताया था। उत्तराखंड राज्य जल नीति के मसौदे को 2019 में ही मंजूरी दी गई। इसके तहत सतही और भूमिगत जल के अलावा हर वर्ष बारिश के रूप में राज्य में गिरने वाले 79,957 मिलियन किलो लीटर पानी को संरक्षित करने की कवायद की जानी है। जल नीति में राज्य के 3,550 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले 917 हिमनदों के साथ ही नदियों और प्रवाहतंत्र को प्रदूषण मुक्त करने और लोगों को शुद्ध पेयजल और सीवरेज निकासी सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रावधान किया गया है। वर्ष 2020 में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने तब के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को लिखे पत्र में आश्वस्त किया था कि केन्द्र सरकार उत्तराखंड को 2023 तक ‘हर घर जल राज्य’ बनाने में पूरा सहयोग देगी। त्रिवेन्द्र तो मुख्यमंत्री रहे नहीं, उनके बाद जिन्हें यह पद सौंपा गया, उनकी जगह भी पुष्कर सिंह धामी इस वक्त इस पद पर हैं। लेकिन केन्द्र सरकार इस मद में जो पैसे देती रही है, वह हर साल बैकलॉग में चली जाती है। इसी से समझा जा सकता है कि यह योजना किस मंथर गति से चल रही है और यह वास्तव में कैसी सौगात है।

प्रदेश के नौलों को पुनर्जीवित करने में लगे रानीखेत में बगवाली पोखर के नौला फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष बिशन सिंह भी कहते हैं कि पानी के लिए तरसते पहाड़ के लिए यह मिशन वरदान साबित हो सकता है, पर यह स्थानीय समुदायों की सहभागिता के बगैर जल्दबाजी में लिया गया फैसला है जिससे योजना के सही ढंग से कार्यान्वित होने में संदेह है। सीमित रूप से उपलब्ध भूजल के बजाय पहाड़ के परंपरागत जल स्रोतों नौलों-धारों को आधार न बनाया गया, तो हैंडपम्पों की तरह ही यह योजना भी बेकार हो जाएगी।

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