बिहार में दो बड़े अस्पताल बनकर हैं तैयार पर मरीजों का नहीं हो पा रहा इलाज, नीतीश बाबू क्या कोरोना से ऐसे लड़ेंगे?

देश में कोरोना वायरस की वजह से जिस तरह की आपाधापी है, उसमें क्या आप किसी अस्पताल के बाहर इस किस्म के दृश्य की उम्मीद कर सकते हैं? लेकिन पटना में जय प्रभा मेदांता का यही हाल है।

फोटो: शिशिर
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शिशिर

इस वक्त अस्थायी ही सही, देश भर में जगह-जगह नए अस्पताल, कोविड सेंटर खोले जा रहे हैं। जिस तरह हाहाकार मचा है, उसमें रेल डिब्बों तक को अस्थायी चिकित्सा केंद्र का रूप दे दिया गया है। लेकिन बिहार में रोज सैकड़ों लोगों की मृत्यु के बावजूद पटना के दो अस्पतालों के भवन बिल्कुल तैयार होने के बावजूद महज शोभा बने हुए हैं। यहां किसी कोविड पीड़ित का इलाज नहीं हो रहा।

5 मई को सुबह करीब 9 बजे होंगे। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच में जगह नहीं मिलने पर बाढ़ निवासी राजेश कुमार को लेकर उनके परिजन पटना के ही बिहटा स्थित ईएसआईसी अस्पताल पहुंचे। केंद्र सरकार के इस अस्पताल में 125 वेन्टिलेटर वाला आईसीयू है। प्राइवेट एम्बुलेंस में राजेश का ऑक्सीजन लेवल 84-85 बता रहा था। पहुंचते ही परिजनों को बताया गया कि भर्ती तो हो जाएगी लेकिन साथ ही यह जानकारी भी मिली कि उन्हें जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी। राजेश के साथ आई महिला लतिका ने कहा, “कहते हई कि यहां भेंटिलेटर न हई। मरीज के आईसू के जरूरत हई।” (कहते हैं कि यहां वेन्टिलेटर नहीं है और मरीज को आईसीयू की जरूरत है।)

अस्पताल में कार्यरत डॉक्टरों ने उसे तत्काल आईसीयू वाले अस्पताल ले जाने कहा। उनकी मजबूरी वाजिब भी थी। यहां वेन्टिलेटर की सुविधा के साथ 125 बेड का आईसीयू तो है लेकिन एनेस्थीसिया के डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हुई है, न ही इसके लिए पारा मेडिकल स्टाफ हैं। इसलिए, ऑक्सीजन रहते हुए भी इन संसाधनों का उपयोग नहीं हो रहा है।

इस अस्पताल की हर चीज अनूठी है। आईसीयू से बाहर ऑक्सीजन सुविधा वाले 375 बेड हैं लेकिन हाईकोर्ट तक को सरकार बता आई है कि अभी 150 बेड का इस्तेमाल हो रहा है। वजह वही। डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हुई है। न पारामेडिकल कर्मी हैं और न सफाईकर्मी। यह 150 भी कैसे चल रहे हैं, इसपर कोई डॉक्टर सामने आकर बोलने के लिए तैयार नहीं। हकीकत यह है कि केंद्र सरकार 50 बेड सेना के जरिये चला रही और 100 बेड का जिम्मा राज्य सरकार के डॉक्टरों के भरोसे है। एक अस्पताल में दो तरह का सिस्टम चलना भी अजूबा है। इससे भी नए मरीजों को भर्ती लेने में ढेर सारा नाटक होता है। यह 150 बेड भी इसलिए चल रहे क्योंकि हाईकोर्ट ने लगातार बुलाकर राज्य सरकार को डांट लगाई, रिपोर्ट मांगी। वरना, ऑक्सीजन वाले बेड पर भी यहां भर्ती नहीं हो रही थी। 50 बेड ही चल रहे थे और रोजाना औसतन 10 मरीज औसतन हाथ-पैर पकड़कर इलाज करवा रहे थे।


अब एक अन्य अस्पताल का किस्सा। मई की शुरुआत में जब बिहार में कोरोना से मौतों का सरकारी आंकड़ा सौ के करीब पहुंचने लगा और ऑक्सीजन संकट का भी समाधान नहीं दिख रहा था तो हाईकोर्ट ने शहर के बीचोंबीच स्थित मेदांता जयप्रभा अस्पताल में सरकार को भर्ती प्रक्रिया शुरू कराने के लिए कहा। सरकार यह नहीं कर सकी क्योंकि अस्पताल ने 10 मई से पहले तैयारी नहीं होने की जानकारी दी। वह भी अनौपचारिक। वैसे, यह अस्पताल तैयार है और यहां वैक्सीनेशन ड्राइव भी चल रहा है। दरअसल, अस्पताल प्रबंधन यहां ‘खैराती’ सेवा नहीं देना चाह रहा। वह उद्घाटन कर बाकायदा अन्य अस्पतालों की तरह इसे चलाना चाह रहा है। सितंबर, 2020 में नीतीश जिस अस्पताल का उद्घाटन कर चुके, वह समय लगा रहा है ताकि अपना सिस्टम बनाकर अन्य अस्पतालों की तरह बिल बना सके।

नीतीश कुमार ने 2015 में भारी विरोध के बीच मेदांता ग्रुप को यह जमीन लीज पर दी थी। प्रतिवर्ष 3 करोड़ रुपये बिहार सरकार को मिलना था लेकिन अबतक एक फूटी कौड़ी भी मिली या नहीं, यह बताने वाला कोई नहीं है। यह जमीन लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नाम पर सुरक्षित थी। उन्होंने यहां किडनी और कैंसर के सरकारी अस्पताल का सपना देखा था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह जमीन मेदांता ग्रुप को देते हुए कहा था कि यहां बिहार के गरीब मरीजों के लिए बेड आरक्षित रहेगा। यहां तत्कालीन 30 हजार रुपये वाली केंद्रीय बीमा के तहत भी इलाज होगा। अब आयुष्मान भारत के लाभुकों को छोड़िए, सामान्य मरीजों का भी इलाज नहीं हो रहा है। अस्पताल अपनी जिद पर है और विरोधों के बीच इसे जमीन देने का फैसला करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुछ कर नहीं रहे। हाईकोर्ट की पहल पर संभावना भी जगी, तो भी अस्पताल ने सरकार को तैयार नहीं होने की जानकारी देकर समय ले लिया।

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