विष्णु नागर का व्यंग्य: उपचुनाव में जनता ने दिया संदेश तो पिराबलम हो गई बीजेपी को!

जो हारता है न, वह हारने के 100 नहीं तो 50 कारण तो हर हाल में ढूंढ लेता है। वे भी गिना रहे हैं, लेकिन गिनाने से अब होता क्या है? गिनाने से ही कुछ हो जाता तो हर हारा हुआ दल जीता हुआ नजर आता।

फोटो: सोशल मीडिया 
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विष्णु नागर

भई हम तो खुश हैं, आप भी हों शायद क्योंकि यूपी-बिहार वालों ने उन्हें धूल चटा दी, वो भी उनके गढ़ में। जान लड़ा दी बंदों ने, छोड़ी नहीं कोई कसर, मगर लोगों ने भी उन्हें हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दो हफ्ते पहले वे खुश थे, झूम रहे थे, होली मना रहे थे, होली के फाग गा रहे थे, अब हम खुश हैं। ऐसा है न भाई साहब और भाभी जी, इस देश में सबको खुश रहने का हक है और हां दुखी रहने का तो जन्मसिद्ध अधिकार है ही। वो कहते हैं न कभी खुशी, कभी गम। तो अभी वे प्रसन्नता भवन से निकले हैं और कोपभवन में हैं और रहेंगे।

जो हारता है न, वह हारने के 100 नहीं तो 50 कारण तो हर हाल में ढूंढ लेता है। वे भी गिना रहे हैं, लेकिन गिनाने से अब होता क्या है? गिनाने से ही कुछ हो जाता तो हर हारा हुआ दल जीता हुआ नजर आता।

वैसे हारने के हमेशा कुछ रटे-रटाये कारण गिनाये जाते हैं, जैसे कि हमारा संदेश लोगों तक पहुंच नहीं पाया, हालांकि ऐसा कहने वालों को खुद पता नहीं होता, उनका वह संदेश था क्या? कुछ था भी या यूं ही। ये भी अपनी हार का एक कारण लोगों तक संदेश न पहुंचना गिना रहे हैंं। अरे तुम यहां और वहां भी सरकार में हो, न्यूज चैनलों में तुम्हारे भक्तगण विराजे हुए हैं, अखबार दिन-रात सेवारत हैं। विज्ञापन और धमकी के ऐसे अमोघ अस्त्र तुम्हारे पास हैंं कि जब चाहे, जिसका चाहे, गला रेत दो और रेता है भी तुमने खूब जमकर। सोशल मीडिया से फर्जीवाड़ा तो दिन-रात फैलाए रहते ही हो। तिकड़मों के बादशाह तुम, जाति-धर्म का गणित तुम्हारा एकदम फिट रहता है। कुबेर अपना खजाना तुम्हारे पास छोड़ ही गए हैंं। इतने धतकरम करने के बाद भी तुम्हारा संदेश अगर अटक गया, तो यह बड़े दुख की बात है। श्रद्धांजलि का मामला बनता है।

कहीं ऐसा तो नहीं टीवी-अखबार वाले तुम्हारे खिलाफ हो गये थे? सचमुच ऐसा था क्या? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने गलती से अंग्रेजी या फ्रेंच में संदेश दे दिया था या संस्कृत वगैरह में और लोग समझ नहीं पाए। तुम्हारे नेता अब फारसी-अरबी, तमिल -तेलुगु बोलने लगे हैं क्या, जो संदेश लोगों तक नहीं गया? क्या मोबाइल नेटवर्क ठीक से काम नहीं कर रहा था या गाड़ियों में पेट्रोल भरने के लिए पैसों की कमी पड़ गई थी? आखिर हुआ क्या था?

गोमाता, लव जिहाद, राम मंदिर रूपी सारा रेडीमेड माल तुम्हारे पास था। यानी जो भी तुम्हारे पास संदेश था, सीधा जा रहा था। फिर भी पहुंच नहीं पाया तो क्या तुम्हारा संदेश सालभर का बच्चा था, जो मां का हाथ छूट जाने से कहीं खो गया?

वैसे संदेश ही संदेश तो देने के लिए हैं तुम्हारे पास और है क्या? लेकिन लगता है कि लोगों ने सोचा, ये तो बहुत संदेश देते रहते हैं, एक हम भी देकर देख लें , पिराबलम लगता है ये हो गई। क्यों मोदी जी-योगी जी और हां आमित शाह जी और लो हम संघप्रमुख जी को तो भूल ही गये, सच-सच बताओ, गड़बड़ी यहां हो गई न। कोई बात नहीं मगर जनता का संदेश तो मिल गया है न आपको कि आपकी कम्युनिकेशन लाइन एकतरफा है, इधर से संदेश जाता है मगर उधर से आता नहीं। ऐसा है कि अमेरिका-वमेरिका घूम आइए, बहुत दिन हो गये हैं प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप से मिले। दुख की घड़ी में अपने ही साथ देते हैं, कुछ विचार-विमर्श उनसे कर आइएगा, वापसी में इस्राइल भी हो आइएगा, तो हार का सारा गम गलत हो जाएगा। और ऐसा कीजिए इस बार योगी जी को भी साथ ले जाइएगा।2024 में उन्हें पीएम बनाना है न, उनका भी इस बहाने प्रशिक्षण हो जाएगा। कल्पना कीजिए उस करुण-हृदयविदारक दृश्य की कि ‘फकीर’ झोला लेकर जा रहा होगा, ‘योगी’ भगवा पहनकर आ रहा होगा। ‘फकीर’ की आंखें खून के आंसू रो रही होंगी और योगी खुशी के आंसू बहा रहा होगा, लेकिन ऐसा वक्त वाकई आएगा? ध्वज प्रणाम।

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