विष्णु नागर का लेख: बीजेपी नेताओं का दलितों के घर भोजन करना उनका सम्मान नहीं, अपमान है

दलितों को ऐसा नाटकीय सम्मान नहीं चाहिए। कोई दलित किसी सवर्ण से यह कहने नहीं जा रहा कि महाराज आप मेरे घर मुंह जूठाकर मुझे कृतार्थ कीजिए। यह आपकी सामंती मानसिकता और राजनीतिक जरूरत है।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

आए दिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का दलितों के यहां भोजन करने का ड्रामा हास्यास्पद साबित होता जा रहा है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने मध्य प्रदेश के गढ़मऊ गांंव के 'सामाजिक समरसता भोज' में शामिल होने से इनकार कर दिया। बहाना जो भी हो, संदेश यही गया है कि उमा भारती को दलितों के लिए आयोजित भोज में उनके साथ, उनका बनाया खाना मंजूर नहीं, जिसका कुछ ज्यादा ही ड्रामा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह करके फोटो क्लिक करवाते रहे हैं।

इसी के साथ उसी दिन यह खबर भी आई कि उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास राज्य मंत्री सुरेश राणा रात को 11 बजे अलीगढ़ जिले के लोहागढ़ गांव में एक दलित रजनीश कुमार के यहां पहुंचे, जिसके परिवार के लोग कहीं बाहर गए हुए थे और वह खुद बाजार के छोले भटूरे से पेट भरकर सो चुका था। मंत्री जी हैं यानी प्रदेश के राजा जी ही हैं समझो! राजाजी को किसी की मर्जी, किसी की सुविधा-असुविधा की दरकार क्या? राजाजी का मन आया और उन्हें मोदीजी और अमित शाह जी के आदेश पर दलित ड्रामा करने की याद आई कि उन्हें भी दलित के यहां भोजन करके दिखाना और उसके यहां सोना भी है तो उस सोते हुए दलित को जगा दिया, भले ही सुबह-सुबह उस आदमी को फिर से मेहनत मजदूरी करने के लिए निकलना हो।

फिर माननीय मंत्री जी ने उस दलित के घर जिला प्रशासन द्वारा मंगवाया गया खाना जमकर खाया, जिसमें 'नवजीवन' की एक रिपोर्ट के अनुसार दाल मखनी, छोले-चावल, पालक पनीर, उड़द की दाल, मिक्स वेज, रायता और तंदूरी रोटियां थीं, यानी पूरा शाही भोजन था। और हां गुलाब जामुन भी थे। पानी भी दलित के यहां का नहीं था, मिनरल वाटर की व्यवस्था थी। जिन प्लेटों, बर्तनों वगैरह में खाना खाया गया, वे भी दलित के नहीं थे। सबकुछ 'पवित्र' था, बस वह घर 'अपवित्र' था, मगर मंत्रीजी की 'चरणधूलि' से वह भी 'पवित्र' हो चुका था।

एक और रिपोर्ट के अनुसार उस दलित को अपने साथ बैठाकर मंत्री जी ने खिलाया भी नहीं कि भाई, फोटो-ऑप के लिए ही सही, जिंदगी में पहली और शायद आखिरी बार यह खाना तू भी चखकर देख ले और यह भी नजदीक से देख ले कि तुम्हारा घर 'पवित्र' करने आया मंत्री क्या-क्या माल खाता है और कितना खाकर, कितनी डकारें लेता है। खबर यह भी आई कि उस रात मंत्री जी सोये भी वहीं, लेकिन चकाचक नया बिस्तर मंगवाकर। वे मंत्री हैं तो उन्हें दलित से कहीं ज्यादा, बहुत ज्यादा गर्मी भी लगती है। एसी तो फटाफट लग नहीं सकता था तो कूलर लगाया गया। फुल भोजन, फुल शयन, फुल ड्रामा हुआ।

पार्टी अध्यक्ष का आदेश है तो हर जगह यह ड्रामा हो रहा है, वह खुद भी इसमें संलग्न हैं। दलितों के बढ़ते गुस्से को देख अब तो प्रधानमंत्री जी का भी आदेश-निर्देश है तो दलित गृह भोजन-भक्षण और शयन प्रतियोगिता नित्यप्रति की जाए। मंत्री राणा जी की तरह कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी येदियुरप्पा साहब भी पांच सितारा होटल से खाना मंगवाकर दलित के यहां खाते पाए गए थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने भी दलित के घर जाकर गैरदलित महिला नेता का बनाया खाना खाया था।

एक तो बीजेपी की यह बहुत बड़ी भूल है कि दलित वोटों तक पहुंचने की यह संघी प्रतीकात्मकता अब किसी काम आएगी। प्रतीकात्मकताओं से खुश करने की रणनीति का युग अब चला गया। खासकर जब दलित समझ चुके हैं कि बीजेपी वाले उनके न हैं और न हो सकते हैं। वैसे भी किसी दलित के घर जाकर भोजन करके उसका प्रदर्शन करने के पीछे की सवर्ण मानसिकता इन सब उदाहरणों से उजागर है। अच्छा हुआ कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जल्दी ही इससे मुक्ति पा ली।

मान लो दलित के घर, दलित द्वारा बनाया भोजन कुछ भाजपाई नेताओं ने खा भी लिया हो, तो भी यह सवर्णवादी मानसिकता है। आप क्या आज भी यही दिखाना चाहते हैं कि देखो, हम हैं तो वैसे जाति में श्रेष्ठ और रहेंगे भी श्रेष्ठ ही, लेकिन देखो कितने उदार ह्रदय भी हैं कि तुम्हारे घर आकर भोजन ग्रहण कर रहे हैं। यह दलितों का सम्मान नहीं ,सामाजिक समरसता नहीं, उनका अपमान है।बस सीधे-सीधे नहीं मगर संकेत में उन्हें गाली देना है, उन्हें उनकी 'सही औकात' बताना है।

आज दलितों को किसी से ऐसा नाटकीय सम्मान नहीं चाहिए। कोई दलित किसी भी सवर्ण से यह कहने नहीं जा रहा कि महाराज आप मेरे घर मुंह जूठाकर मुझे कृतार्थ कीजिए। यह आपकी सामंती मानसिकता और राजनीतिक जरूरत है कि आप उनके यहां भागे-भागे जा रहे हैं। यह चातुर्वर्ण्य की परोक्ष स्थापना की चालाक कोशिश है, यह अपनी जातीय श्रेष्ठता का जयघोष है।

आज के दलितों की समस्याएं दूसरी हैं, उनके संघर्ष दूसरे हैं, जिन्हें आपका उपकार नहीं, अपना संवैधानिक अधिकार चाहिए। उन्होंने पिछले दिनों 'दलित बंद' के जरिए दिखा दिया कि वे आपके कृपाकांक्षी नहीं हैं, आपसे लड़कर हक लेंगे, जो आप दलितों के यहां भोजन का ड्रामा करके देना नहीं चाहते। दलित के यहां भोजन करके योगी आदित्यनाथ दलितों के विरुद्ध जाति विशेष के अपराधियों को संरक्षण देने की अपनी मानसिकता को छुपा नहीं सकते। आप रोहित वेमुला की आत्महत्या का बोझ समरसता भोज की नाटकीयता से अपने सिर से हटा नहीं सकते। आप दलित दूल्हे को घोड़े पर बैठकर सवर्ण इलाकों से बारात निकालने पर अपमानित करने के बाद दलित के यहां भोजन करके कथित सामाजिक समरसता का भ्रम पैदा नहीं कर सकते। आप आरक्षण विरोधी मानसिकता से इस तरह नहीं लड़ सकते। वह युग, वे स्थितियां बदल गईं। यहां तक कि वह 2014 भी गुजर चुका है, जब आपके झूठ का जादू चल गया था।

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