‘साज़िश-साज़िश’ का शोर मचाने के बजाय इसके पीछे की सच्चाई क्यों नहीं बताती सरकार?

वैश्विक अनुभव है कि सत्ताधारी राजनेताओं पर जब विपक्ष के आरोप भारी पड़ने लगते हैं, तब वे ‘विदेशी साज़िश’ का सहारा लेते हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का उदाहरण सामने है। उन्हें भी लगता है कि अमेरिका के खिलाफ दुनिया में साज़िशें हो रहीं हैं, जिनसे बचाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ उनके ऊपर ही है।

फोटो : सोशल मीडिया
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प्रमोद जोशी

राफेल विमान के सौदे पर बढ़ते विवाद को ‘भारत के खिलाफ़ विदेशी साज़िश’ का मोड़ देने के बजाय बीजेपी को सीधे सवालों के सीधे जवाब देने चाहिए। पिछले कई महीनों से पार्टी के सीनियर नेता दावा कर रहे हैं कि चीन, पाकिस्तान और कुछ दूसरी ताकतों की कोशिश है कि 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को परास्त किया जाए। मंगलवार को भोपाल में हुई एक सभा में नरेंद्र मोदी ने भी इसी किस्म की बातें की हैं।

पिछले साल गुजरात चुनाव के दौरान भी इसी किस्म की बातें कही गईं थीं। उसके बाद कर्नाटक चुनाव में भी ‘साज़िश’ की हवा उड़ी। अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव के वक्त इसे अंतरराष्ट्रीय साजिश बताया जा रहा है। फ़र्क इतना आया है कि राफेल विमान के सौदे पर उठ रहे सवालों को भी विदेशी साज़िश के दायरे में रख लिया गया है।

सोमवार को बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान और कांग्रेस के बीच समानता है, उनकी भाषा भी एक है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाकर पाकिस्तान मोदी सरकार को हटाना चाहता है।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सोमवार को आरोप लगाया कि राफेल जेट सौदे को लेकर लगे आरोपों के पीछे अंतर्राष्ट्रीय साजिश है, जिसका मकसद मोदी सरकार और भारतीय वायु सेना को कमज़ोर करना है। शेखावत से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली भी इसी किस्म की बातें कह चुके हैं।

ये सब बातें चुनाव सभाओं और रात की टीवी बहसों में कही जा रही हैं, जबकि जरूरत इस बात की है कि किसी उचित फोरम पर संदेहों को दूर किया जाए। विडंबना है कि एक तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने मंच पर विरोधियों को आने की दावत दे रहा है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक संवाददाता सम्मेलन तक आयोजित करने को तैयार नहीं हैं।

उनके कार्यकाल के साढ़े चार साल पूरे होने जा रहे हैं और उन्होंने एक भी संवाददाता सम्मेलन नहीं बुलाया है। पिछले दिनों कुछ अखबारों में उनके इंटरव्यू के नाम पर जो छपा, उसे पढ़कर लगा नहीं कि ये आमने-सामने के सवाल जवाब हैं। बेशक प्रधानमंत्री के पास कहने को बहुत सी बातें हैं, पर जनता के पास भी उनसे पूछने को कुछ सवाल हैं। उनका सामना कीजिए।

देश के खिलाफ विदेशी साजिश का आरोप छोटा नहीं है। इसके पीछे कहीं सच्चाई है, तो उन आधारों को स्पष्ट किया जाना चाहिए। यह कोई छोटी बात तो नहीं है। राजनीतिक आधार पर बार-बार लगने वाले भारी-भरकम आरोप कुछ समय बात फुस्स होने लगते हैं। वोट पड़ने के बाद ऐसे आरोप भी डब्बाबंद हो जाते हैं और फिर अगले चुनाव में नमूदार होते हैं।

वैश्विक अनुभव है कि सत्ताधारी राजनेताओं पर जब विपक्ष के आरोप भारी पड़ने लगते हैं, तब वे ‘विदेशी साज़िश’ का सहारा लेते हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का उदाहरण सामने है। उन्हें भी लगता है कि अमेरिका के खिलाफ दुनिया में साज़िशें हो रहीं हैं, जिनसे बचाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ उनके ऊपर ही है।

यह सब हो क्या रहा है? और क्यों हो रहा है? सच यह है कि साज़िश-साज़िश का शोर हमें मुद्दों से भटका रहा है। इस वक्त जरूरत है कि जनता के मन में बैठे जरूरी सवालों के जवाब सरकार दे। पैसा खर्च करके जमा की गई भीड़, अतिशय नाटकीयता और तैशभरे भाषणों से गरीब का पेट भरने वाला नहीं। यह राजनीति नहीं नाटक है। इससे संज़ीदा नागरिक हताश है।

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Published: 25 Sep 2018, 9:29 PM