खरी-खरीः प्रज्ञा एक झांसा है, इसमें मत फंसिए

गुजरात में गोधरा था, तो वहां खेल बन गया। लेकिन अभी ऐसी कोई बात नहीं कि हिंदू समाज को मुसलमान शत्रु के रूप में दिखाई दें। जब सामने कोई शत्रु नहीं, तो मोदीजी अंगरक्षक कैसे बनें। ऐसे में भला आतंकवाद की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर का जादू कैसे सिर चढ़कर बोल सकता है?

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

चोर चोरी से जाए पर, हेरा फेरी से न जाए! भारतीय जनता पार्टी की स्थिति इस समय कुछ ऐसी ही है। इस लेख के लिखे जाने तक लोकसभा चुनाव के तीन चरण हो चुके हैं। अर्थात् 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव हो चुके हैं। कुल 543 लोकसभा सीटों में से 302 अर्थात आधे से अधिक सीटों पर चुनाव समाप्त हो चुके हैं।

इन तीन चरणों की मुख्य बात यह रही कि इन सभी में बीजेपी की हालत अच्छी नहीं बताई जा रही है। इसके स्पष्ट कारण हैं। इन तीनों चरणों में 2014 के मुकाबले कम प्रतिशत में वोट पड़े। इससे स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी के लिए मतदाताओं में उत्साह नहीं है। अर्थात् इस बार अभी तक कोई मोदी लहर नहीं है।

फिर अभी तक जिन राज्यों में चुनाव हुए हैं उनमें अधिकतम सीटें दक्षिण भारत में केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से हैं। इन सभी राज्यों को मिलाकर भी बीजेपी को कुल दस सीटें मिलने की भी संभावना नहीं है। केवल गुजरात और उत्तर प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी को 2014 में अधिकतम सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। गुजरात की 26 सीटें बीजेपी के खाते में थीं। लेकिन इस बार कांग्रेस को भी वहां से 8-10 सीटें मिलने की आशा है।

उत्तर प्रदेश की कुल 80 सीटों में से बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास 73 सीटें थीं। इस बार तीन चरणों में उत्तर प्रदेश में जो चुनाव हुए उनमें एसपी, बीएसपी, आरएलडी गठबंधन की लहर दिखाई पड़ी। अर्थात् उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की स्थिति काफी बिगड़ चुकी है। फिर बिहार और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस गठबंधन आगे बताए जा रहे हैं।


नरेंद्र मोदी कोई हवा में राजनीति करने वाले नेता नहीं हैं। जब हमको और आपको यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि बीजेपी की स्थिति चुनावी बिसात पर बिगड़ चुकी है, तो भला नरेंद्र मोदी की समझ में यह बात क्यों नहीं आ रही होगी। स्पष्ट है कि मोदी और शाह समझ रहे हैं कि चुनावी स्थिति यही रही तो नतीजे आते-आते बीजेपी के लिए लाले पड़ जाएंगे। मोदीजी सत्ता से बाहर हों यह विचार ही मोदी और शाह के लिए डरावना है। क्योंकि दोनों ने सत्ता में रहते हुए इतने दुश्मन बनाए हैं कि सत्ता के बाहर दुश्मन जीवन नरक कर देंगे।

खैर, तो मोदी-शाह ने यह चिंतन किया होगा कि भैया वोटर मुंह क्यों मोड़ रहा है। यह समझने के लिए कोई बड़ी बुद्धि की आवश्यकता नहीं है। मोदी ने इस चुनाव में सारा दांव बालाकोट अर्थात् पाकिस्तान कार्ड पर लगाया था। मोदी की रणनीति यह थी कि पांच वर्षों की सत्ता में जनता की कोई भलाई तो की नहीं है। बल्कि नोटबंदी, जीएसटी, किसान पीड़ा और बेरोजगारी से पीड़ित जनता नाराज तो है ही, अतः उसको पाकिस्तान का झांसा देकर हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर पिछली समस्याएं भुला दो और पाकिस्तान की आड़ में जनता को भावुक बनाकर फिर वोट बटोर लो।

लेकिन जैसे पहले लिखा था, ‘यह जो पब्लिक है सब जानती है।’ अर्थात् जनता पाकिस्तान और बालाकोट के झांसे में आई नहीं। तीन चरणों के चुनाव के पश्चात यह बात स्पष्ट है कि मोदी का पाकिस्तान झांसा नहीं चल रहा है। अब मोदीजी करें तो क्या करें। बीजेपी की नैया कैसे पार हो, सत्ता फिर कैसे मिले। लगता है गहरे चिंतन के पश्चात यह तय हुआ कि वापस सांप्रदायिक कार्ड पर चला जाए। यह काम हो तो कैसे हो?

इसके लिए बहुत सोच-विचार के पश्चात झाड़-पोंछकर प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से चुनाव में खड़ा किया गया। प्रज्ञा ठाकुर क्यों? क्योंकि प्रज्ञा ठाकुर मुस्लिम नफरत का सीधा प्रतीक हैं। उनके विरुद्ध मुस्लिम इलाके में बम फोड़कर आतंकवाद का अभी भी इल्जाम है। वह अभी भी आतंकवाद मामले से छूटी नहीं हैं। वह केवल इस मामले में जमानत पर हैं। जाहिर है कि ऐसे विवादित व्यक्तित्व को चुनाव में उतारने पर लोग भड़केंगे ही। और हुआ भी यही।


बस मोदीजी प्रज्ञा ठाकुर को लेकर स्वयं हर चुनावी सभा में कूद पड़े। जहां देखो, मोदीजी भाषणों में प्रज्ञा-प्रज्ञा करने लगे। राजनीतिक दलों ने प्रज्ञा का खंडन करना शुरू कर दिया। स्पष्ट है कि मोदीजी प्रज्ञा की आड़ में हिंदू-मुस्लिम बिसात बिछाने की भरपूर चेष्टा कर रहे हैं। उनका प्रयत्न यह है कि वह प्रज्ञा की ढाल के सहारे स्वयं ‘हिंदू अंगरक्षक’ फिर बन जाएं और विपक्ष को वह आधुनिक ‘मुस्लिम लीग’ का जामा पहना दें।

देखने में तो यह रणनीति बहुत काम की नजर आती है। प्रज्ञा ठाकुर हिंदुत्व की चरम प्रतीक नजर आती है। उनके पक्ष में खड़े मोदीजी स्वाभाविक रूप से ‘हिंदू अंगरक्षक’ दिखने चाहिए। पर यह बाण तभी निशाने पर लगेगा जब हिंदू समुदाय में मुसलमान के प्रति डर और फिर घृणा उत्पन्न हो। बस यहीं मोदीजी का खेल बिगड़ने लगा। भाई, मुसलमानों ने तो प्रज्ञा का कुछ बिगाड़ा नहीं था। उन पर जो मुकदमा है उसके अनुसार प्रज्ञा ठाकुर ने बम धमाकों के जरिए मुसलमानों की हत्या की थी। ऐसी स्थिति में हिंदू समुदाय में न तो मुसलमान के प्रति भय उत्पन्न होगा और नहीं घृणा की भावना उत्पन्न होगी।

इस रणनीति को सफल बनाने के लिए एक गोधरा या एक बाबरी मस्जिद का होना आवश्यक है। जैसे सांड को भड़काने के लिए एक लाल कपड़ा आवश्यक है। वैसे ही एक समाज में दूसरे समाज के प्रति घृणा उत्पन्न करने के लिए उस समाज को पहले कोई नुकसान तो पहुंचाना चाहिए। पिछले पांच सालों में भारतीय मुस्लिम समुदाय ने चूं भी नहीं की। घर में घुसकर और सड़कों पर ‘मॉब-लिचिंग’ हुई और भयभीत मुस्लिम समाज चुपचाप सब कुछ सहन करता रहा।

अर्थात् इस समय कोई ऐसी बात नहीं कि हिंदू समाज को मुसलमान अपने शत्रु के रूप में दिखाई पड़े। जब सामने कोई शत्रु नहीं, तो मोदीजी अब अंगरक्षक कैसे बनें। गुजरात में गोधरा था, तो वहां खेल बन गया। अब तो यह स्थिति है कि संघ ने जनवरी के महीने में राम मंदिर कार्ड खड़ा करने की चेष्टा की पर सफलता नहीं मिली। ऐसे में भला आतंकवाद के इल्जाम में फंसी प्रज्ञा ठाकुर का जादू कैसे सिर चढ़कर बोल सकता है।

परंतु मोदी प्रज्ञा का गुणगान या ऐसी छेड़छाड़ पूरे चुनाव में करते रहेंगे। ताकि हिंदू-मुस्लिम खाई पैदा हो। वह ऐसा पांसा फेंककर विपक्ष को अपने जाल में फांसने का प्रयत्न कर रहे हैं। विपक्ष को ऐसी हर चाल को समझकर चुपचाप झटक देना चाहिए। प्रज्ञा ठाकुर भोपाल के स्तर की समस्या है। दिग्विजय सिंह एक मंझे हुए नेता हैं, वह उनसे निपट लेंगे। प्रज्ञा ठाकुर को देशभर की समस्या मत बनाइए। वरना मोदी कामयाब हो सकते हैं!!

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