जन्मदिन विशेष: राहुल गांधी को बनना होगा उस बदलाव का चेहरा, भारत को 2019 में है जिसकी उम्मीद

2019 के दरवाजे कांग्रेस और उसके नेता के लिए बंद नहीं हुए हैं। राजनीति में एक साल लंबा समय होता है। कांग्रेस और उसके सहयोगी धारा को अपने पक्ष में कर सकते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया

एक बार फिर से भारत में पांच साल में होने वाले चुनावी चक्र का समय आ गया है। मोदी सरकार के चार साल गुजर चुके हैं और लोगों का मानस तेजी से बदल रहा है। पूरे राष्ट्र में बदलाव की आकांक्षा तेजी से तो नहीं, लेकिन धीमे-धीमे फैल रही है। सबसे बड़ा सवाल है: क्या कांग्रेस अपने मौजूदा और नई सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर बदलाव ला सकती है? जवाब अभी ‘हां’ में तो नहीं है, लेकिन ‘हो सकता है’ में है।

तो कांग्रेस और इसके नए युवा अध्यक्ष के सामने क्या चुनौतियां और मौके हैं जब देश 2019 के लोकसभा चुनाव के मुहाने पर है। पहला, चुनौती क्या है। लड़ाई मुश्किल है, बहुत मुश्किल। चुनावी राजनीति में सभी को अभिलाषी सोच को जहर की तरह छोड़ देना चाहिए, जमीनी सच्चाईयों से लगातार जुड़ा रहना चाहिए, लोगों की सोच को ध्यान लगाकर सुनना चाहिए, प्रतिद्वंदियों की हरकतों का अध्ययन करना चाहिए, अपने और संगठन के जीतने की जिद को मजबूत करते रहना चाहिए।

अतिआत्मविश्वास सफलता को उतना ही बाधित करता है जितना आत्मविश्वास की कमी। और खासतौर पर जब प्रतिद्वंदी मजबूत हो तो प्रयासों की कमी अत्यधिक तैयारी से कई गुना ज्यादा नुकसानदेह हो सकती है।

दूसरा, मौके क्या हैं। यह एक आधा मौका है। हां, भारत का लोकप्रिय मानस बीजेपी को लेकर उतना समर्थक नहीं रह गया है जितना वह उस समय था जब डॉ मनमोहन सिंह सरकार पांच साल पहले अपने आखिरी साल में पहुंच गई थी। लेकिन इस समय वह कांग्रेस की इतनी समर्थक नहीं हुआ है जितना 2013 में वह बीजेपी का था। बीजेपी की लोकप्रियता काफी घटी है। लेकिन कांग्रेस की लोकप्रियता में उतना इजाफा नहीं हुआ है। मोदी सरकार से लोगों का असंतोष बढ़ रहा है। लेकिन विकल्प के लिए तुलनात्मक रूप से कोई साफ प्राथमिकता नहीं बनी है। वास्तव में, विकल्प कहां है? फिलहाल कोई विकल्प नहीं दिख रहा है।

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का परिणाम ज्यादातर इस बात पर निर्भर करेगा कि कितना ज्यादा और कितनी जल्दी कांग्रेस और उसके सहयोगी मतदाताओं द्वारा बीजेपी की अस्वीकृति और गैर-बीजेपी विकल्प (जैसे ही और जब भी वह उभरती है) के लिए उनके समर्थन के बीच मौजूद अंतर को कम कर पाते हैं। एक और अंतर है और यह ज्यादा निर्णायक होने जा रहा है - मोदी और राहुल गांधी की निजी लोकप्रियता के बीच का अंतर। प्रधानमंत्री की अपनी लोकप्रियता किसी भी तरह से उतनी कम नहीं हुई है कि वह कोई निश्चित अंतर बना पाए, हालांकि वह 2014 की तुलना में अभी काफी कम है। इसके अलावा कोई विपक्ष का ‘नेता’ भी नहीं है, और निश्चित रूप से कोई गैर-बीजेपी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी नहीं है जिसकी लोकप्रियता इतनी हो कि वह अंतर बना पाए।

यह कारक तब और महत्वपूर्ण हो सकता है जब मोदी 2019 के चुनाव को प्रेसिडेंशियल चुनाव जैसे अभियान में तब्दील कर देंगे (और ऐसा वे निश्चित रूप से करेंगे) और एक सोचा-समझा अभियान चलाएंगे। कांग्रेस और उसके सहयोगियों को इसे निष्प्रभावी चीज समझकर खारिज नहीं करना चाहिए। मतदाताओं को स्थिर सरकार चाहिए जो अपना कार्यकाल पूरा करने में सक्षम हो और जो एक समर्थ और मजबूत नेता के नेतृत्व में हो। वे अतीत के जर्जर सरकारों की पुनरावृति नहीं चाहते हैं जैसा चरण सिंह, वीपी सिंह, देवगौड़ा और आईके गुजराल के समय में हुआ। और हमें इसका सामना करना चाहिए। गैर-बीजेपी गठबंधन ने नेतृत्व के सवाल को अभी तक हल नहीं किया है।

एक और चुनौती यह है कि बीजेपी और उसके प्रतिद्वंदियों के बीच संसाधन का अंतर बहुत ज्यादा है। और कौन कहता है कि पैसा चुनावी कहानी में हेरफेर नहीं कर सकता है? मीडिया को साधने के लिए पैसे का इस्तेमाल किया जाएगा और पूर्व-निर्धारित इलाकों में मतदाताओं को साधने के लिए पैसे के साथ-साथ विभाजनकारी मुद्दों का इस्तेमाल किया जाएगा।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि 2019 के दरवाजे कांग्रेस और उसके नेता के लिए बंद हो चुके हैं। राजनीति में एक साल लंबा समय होता है। कांग्रेस और उसके सहयोगी धारा को अपने पक्ष में कर सकते हैं और इस आधे मौके को पूरे मौके में तब्दील कर सकते हैं। इसके लिए चार चीजों की जरूरत होगी।

पहला, कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के आने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराना होगा और वह ऐसा कर सकती है। यह कांग्रेस का हौसला तो बढ़ाएगा ही, साथ-साथ 2019 के चुनावों के लिए बीजेपी का हौसला कम भी कर देगी। उच्च नेतृत्व से बूथ स्तर तक कांग्रेस में मजबूत संगठनात्मक एकता बनाना इसलिए जरूरी है ताकि पार्टी को इन तीनों में से किसी भी राज्य में जीत के जबड़े से हार न मिले।

दूसरा, उन राज्यों में जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला नहीं है और जहां कांग्रेस को क्षेत्रीय सहयोगियों पर निर्भर होना होगा (यूपी, बिहार, महाराष्ट्र आदि), वहां पार्टी को यह सुनिश्चित करना होगा कि गठबंधन की भावना सारे दलों के जमीनी कार्यकर्ताओं तक पहुंच जाए। और एक साल इस काम के लिए काफी समय होता है। अगर गठबंधन की एकता चुनावी क्षेत्रों में कमजोर है तो बीजेपी इसका अपने हित में फायदा उठा सकती है। गठबंधन तभी अच्छे नतीजे प्राप्त कर सकता है जब निचले स्तर के कार्यकर्ता को उच्च नेतृत्व के फैसले स्वीकार्य होंगे। यहां तक कि निचले स्तर का कार्यकर्ता बीजेपी उम्मीदवार को हराने के लिए इतना मजबूत दबाव बनाए कि मध्य या उच्च स्तर का नेता कोई गड़बड़ी न कर सके।

तीसरा, अभी तक कांग्रेस और उसके सहयोगी सिर्फ मोदी सरकार की असफलताओं को लेकर उस पर हमला कर रहे हैं। पूरी तरह से अभियान का यह नकारात्मक स्वर बदलना चाहिए क्योंकि यह कारगर नहीं हो सकता है। एक विश्वसनीय विकल्प के तौर पर उभरने के लिए विपक्ष को उन समस्याओं और असफलताओं का समाधान भी सामने रखना होगा जिसको लेकर वे प्रधानमंत्री और सत्ताधारी पार्टी की सही ही आलोचना करते हैं। उदाहरण के लिए, कांग्रेस और उसके सहयोगियों के पास किसान संकट को खत्म करने के लिए क्या सकारात्मक एजेंडा है? वैकल्पिक आर्थिक नीतियां और कार्यक्रम क्या हैं जो युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर सकती हैं? शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की समस्याओं का हल कैसे निकले, यह दोनों चीजें गरीबों और मध्य वर्ग की हैसियत से बाहर जा चुका है? प्रशासन, न्यायपालिका और चुनाव सुधारों के लिए क्या उपाय हैं?

लंबे समय तक भारत पर शासन करने वाली एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस को कश्मीर समस्या के समाधान के लिए अपने विचारों को सामने लाने की जरूरत है। पाकिस्तान के साथ रिश्ते कैसे सामान्य हों, चीन के साथ हर मोर्चे पर संबंध कैसे बेहतर बनें, सार्क की प्रक्रिया फिर से कैसे शुरू हो, और मोदी सरकार की विदेश नीति की कई गलतियों को कैसे सुधारा जाए, इन सबको लेकर कांग्रेस के विचार सामने आने चाहिए। इस तरह का सकारात्मक अभियान लोगों में यह भरोसा पैदा करेगा कि उन्हें एक ऐसी सरकार को वोट नहीं देना चाहिए जो किसी भी आकांक्षा को पूरा करने में असफल रही है, बल्कि एक विकल्प को वोट देना चाहिए जिस पर वे निर्भर हो सकते हैं।

अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण सवाल। मोदी को आड़े हाथों लेने के लिए बीजेपी-विरोधी गठबंधन के पास एक विश्वसनीय, मजबूत और आकर्षक प्रधानमंत्री का उम्मीदवार होना चाहिए। और वह सिर्फ कांग्रेस दे सकती है। इसलिए, राहुल गांधी को दौड़ के अंतिम चरण में तेज और बेहतर ढंग से भागना होगा और एक उम्मीद भरा एजेंडा देना होगा जो युवा और गैर-युवा मतदाताओं दोनों को अपनी ओर खींचे। उन्हें उस बदलाव का चेहरा बनना होगा जिसकी उम्मीद भारत 2019 में कर रहा है।

(लेखक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पीएमओ में सलाहकार थे।)

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