विष्णु नागर का व्यंग्य: आश्चर्य होना अब मूर्खता की निशानी, कौन अब आश्चर्यचकित होता है?

आश्चर्य होना वैसे भी अब मूर्खता की निशानी है और दुख होना महामूर्खता की। मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं महामूर्ख हूँ। सच कहूँ, तो मुझे महामूर्ख होने पर कभी-कभी गर्व सा होने लगता है।

यह 2014 की तस्वीर है, जिसमें रामदेव ने पीएम मोदी को योग कराया था (फोटो : Getty Images
यह 2014 की तस्वीर है, जिसमें रामदेव ने पीएम मोदी को योग कराया था (फोटो : Getty Images
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विष्णु नागर

क्या आपको अभी भी किसी बात पर आश्चर्य होता है? मुझे आखिरी बार 2014 में हुआ था, जब वर्तमान प्रधानमंत्री ने शपथ ग्रहण समारोह के अवसर पर नवाज शरीफ आदि पड़ोसी देशों के प्रमुखों को बुलाया था। तब मेरी आँखें फटी की फटी रह गई थीं! इस कारण आँखों में बहुत समय तक तकलीफ़ रही। जल्दी -जल्दी चश्मे का नंबर बदलवाना पड़ा। उसके बाद आश्चर्य होना जो बंद हुआ, सो आज तक बंद है। फिर क्रोध आना शुरू हुआ, दुख होने लगा। रोना भी आया कभी अपनों के बीच। लगा कि हम तो कहीं गये नहीं मगर बिना गये ये कहाँ आ गये?

अब तो खैर,रोना- हँसी,दुख-क्रोध सब स्थगित है। अब तो मोदी जी, शाह जी, योगी जी, अनुराग ठाकुर जी,अलां जी, फलां जी, नुपूर जी, नवीन जिंदल जी, नरसिंहानंद जी,पंडित जी, महाराज जी, गुप्ता जी, सिंह साहब यानी किसी की भी कितनी ही बेढँगी, ओछी, घृणित, झूठी बात पर कुछ नहीं होता। बात तो बात इनके काम पर भी कुछ नहीं होता। भगवाधारी सभी सचमुच के साधु- संत होते हैं और देश का प्रधानमंत्री, सचमुच प्रधानमंत्री ही होता है, यह भ्रम भी टूट चुका है।

अब तो लगता है 80 बनाम 20 की इशारेबाजी का युग भी जा चुका है। अब नरसिंहानंद - नुपूर शर्मा का युग है। खुला खेल फरुर्खाबादी का समय है। अब नरसंहार करने की धमकी देना और उस पर भी कहीं कुछ न होना इतना सामान्य हो चुका है कि यह भी चकित-थकित-व्यथित नहीं करता। मालूम था कि नुपूर शर्मा की बयानबाजी पर एक पत्ता तक लोककल्याण मार्ग पर भी नहीं हिलेगा। बस केवल यह पता नहीं था कि इससे कुछ इस्लामी देशों में उबाल सा आ जाएगा, लाखों भारतीयों की नौकरी और निर्यात पर बन आएगी। फिर भी सरकार की ओर से कुछ हुआ सा लगता अवश्य है मगर कुछ हुआ नहीं है।

मुझे तो मंदिर-मंदिर करनेवालों को स्कूल -दर्शन करने की बात कहकर कभी तगड़ा जवाब देने वाले मनीष सिसोदिया ने जब अयोध्या जाकर राममंदिर और हनुमान मंदिर में उत्तर प्रदेश चुनाव में जीत की अर्जी लगाई थी, तब भी आश्चर्य नहीं हुआ था। 2024 में राम मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर अरविन्द केजरीवाल जी, अगर मोदी जी का आशीर्वाद लेते पाए जाएँ तो भी आश्चर्य नहीं होगा। यहाँ तक कि कल इनकी पार्टी का भाजपा में या भाजपा का आप में विलय हो जाए तो भी आश्चर्य नहीं होगा।


जब देश की सरेआम बिक्री को अंगीकृत कर लिया, जब मान लिया कि सच्चा राष्ट्रवाद यही है।जब मान लिया कि जनता की सेवा का मतलब अडानी-अंबानी की अनथक सेवा है, तब आश्चर्य करने के लिए बचता क्या है? बचता यह है कि हर मस्जिद के नीचे एक मंदिर है, इसलिए हर मस्जिद की खुदाई होना जरूरी है, जबकि हर कस्बे, हर शहर में इतनी मूर्तियां-मंदिर उपलब्ध हैं कि कोई ह़िंदू चौबीस घंटे भी पूजा करने का संकल्प करे तो उसे पूरा न पाए। उसे बीमार पड़ कर अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा मगर मंदिर वहीं बनाएंगे, चल रहा है तो चल ही रहा है। क्या फर्क पड़ता है कि दुनिया हम पर हँसती है! हम तो मानते हैं कि दुनिया हमारे अंदर विराजमान विश्वगुरु को देख रही है!

बसपा-सपा सब जब यूपी चुनाव के समय ब्राह्मण देवता की पूजा-अर्चना कर रहे थे, तो भी आश्चर्य नहींं हुआ था। मन को तब समझाया था कि हे मूर्ख मन, तुझे इतना भी नहीं पता कि ब्राह्मण देवता अनंत काल से पूजनीय रहे हैं? तो ये नेता भी अगर उसी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं, तो किम् आश्चर्यम्? क्यों बसपा-सपा हिंदू परंपरा को भाजपा के भरोसे छोड़ दें? क्या बसपा-सपावाले भाजपाइयों और आम आदमी पार्टी से कम हिंदू हैं? बिल्कुल नहीं हैं!

मेडिकल कॉलेज के छात्रों को मध्य प्रदेश सरकार संघ के संस्थापक हेडगेवार के विचार पढ़ाएगी, यह पढ़ा था तो भी आश्चर्य क्यों होता? अरे जब 2002 के नरसंहार में मुसलमानों के मारे जाने पर जिसने इतना दुख प्रकट किया था, जितना कार के नीचे कुत्ते का पिल्ला आ जाने से होता है, तब भी आश्चर्य नहीं हुआ था, तो अब क्यों होता? जब ऐसा मुख्यमंत्री उससे भी अगली सीढ़ी पर दनदनाता हुआ चढ़ जाता है और समस्त भारत को रौंदते हुए बेखटके घूमता है तो फिर किसी भी बात पर आश्चर्य होने पर ही आश्चर्य होना चाहिए। हर संघी-भाजपाई कुछ भी कर ले, कह ले, उसका क्यों कुछ नहीं बिगड़ता, इस पर अब किसी मूर्ख को ही आश्चर्य होता है। अब तो यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण हुई बर्बादी की कितनी ही मार्मिक खबर पर न आश्चर्य होता है, न दुख। किसके पास अब दुखी होने का समय बचा है? जो दुखी हैं, उनके पास रोटी कमाने का ही समय बचा है और जो सुखी हैं,उनके दुखी होने का कोई कारण नहीं। रोज खबर छपती है, आटा महंगा, प्याज महंगा, टमाटर महंगा। महंगाई ने सारी सीमाएँ लाँघ ली हैं तो भी किसी को कुछ महसूस नहीं होता। अब तो महंगाई के सपोर्टर भी जनम ले चुके हैं। अब तो क्रांति तलक भगवा होने लगी है! यह सब अब न्यू नार्मल है।


आश्चर्य की हर सीढ़ी मैं लगभग पार कर चुका हूँ। दुख साला कमीना अब भी कभी-कभी होता रहता है। उसी का इलाज करवाना है। इसी प्रकार चलता रहा तो वह दिन भी जल्दी आ जाएगा, जब दर्द ही दवा बन जाएगा। वैसे एक दिन तो इस जिंदगी में नहीं तो इसके परे जाने पर दुख सुख, मान-अपमान सबसे आदमी परे हो जाता है। उसकी लाश पर कोई पैर रखे, ठोकर मारे तो लाश का जरूर कुछ बिगड़ता है, उस आदमी का कुछ नहीं बिगड़ता। चेहरे के भाव नहीं बदलते, आँखों की पुतलियाँ अगर खुली हैं तो खुली, बंद हैं तो बंद रहती हैं। दर्द, तकलीफ़, मान-अपमान, देश और काल से वह परे हो जाता है।

मैं अगर श्री-श्री या रामदेव या उस अंग्रेजीवाल़े बाबा की शरण में अब भी चला जाऊँ (आसाराम अभी उपलब्ध नहीं हैं) तो रहा-सहा दुख होना भी बंद हो जाएगा। आश्चर्य, दुख, तकलीफ़ तो सब छोटी बातें हैं, टट्टी-पेशाब आना तक बंद हो जाएगा। खाओ और गाओ, यह बीज मंत्र हो जाएगा।

आश्चर्य होना वैसे भी अब मूर्खता की निशानी है और दुख होना महामूर्खता की। मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं महामूर्ख हूँ। सच कहूँ, तो मुझे महामूर्ख होने पर कभी-कभी गर्व सा होने लगता है।लगता है,' यह गर्व से कहो, हिन्दू हूँ ' की क्रिया की प्रतिक्रिया है। आपको याद होगा नाली से गैस उत्पन्न करनेवाली महान भारतीय प्रतिभा ने 2002 के नरसंहार पर न्यूटन का तीसरा सिद्धांत लागू किया था कि यह क्रिया की प्रतिक्रिया है। मेरे साथ जो हुआ है, गर्व -सिद्धांत की क्रिया की प्रतिक्रिया है।


ये न्यायालय अभी भी कभी-कभी आश्चर्य की ओर ठेल दिया करते हैं। सरकार को फटकार सी लगाने लग जाते हैं मगर जब किसी हाईकोर्ट का जज गाय आक्सीजन लेती और छोड़ती है, जैसी बात कह देता है, तो उस आश्चर्य पर पाला पड़ जाता है। वैसे बोबड़े साहब और उनके तथा उनके भी पूर्ववर्ती साहब काफी मलहम सेवा कर चुके थे मगर ये बाद वाले साहब कभी-कभी आश्चर्य से भर देते हैं। शायद ये जाएँ तो फिर बोबड़े साहब आदि की परंपरा आरंभ हो जाए। आजकल कुछ पता नहीं चलता। कौन क्या है और क्या नहीं है। वैसे इस सरकार का जरूर एक चरित्र है।यह ऐसी कोई बात सुनती नहीं, जो कानों को न सुहाए। फिर ऐसी बोली बोलनेवालों का 'सूटेबल इंतजाम' भी समय-समय पर कर देती है। कब ,किसका, क्या और कैसा इंतजाम हो जाए, कुछ पता नहीं।

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