आकार पटेल का लेख: कई मुसीबतों से एकसाथ सामना: महामारी, अर्थव्यवस्था और चीन, बशर्ते सरकार माने कि सामने है खतरा

देश इस समय तिहरी समस्याओं और चुनौतियों से दो-चार है। एकजुट होकर इनका मुकाबला किया जा सकता है, बशर्ते सरकार माने कि खतरा है। इनमें महामारी, खस्ता आर्थिक हालत और चीन की चुनौती शामिल है।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

लेखकों के लिए यह बड़ा मुश्किल वक्त है कि किस आपदा को इस सप्ताह बड़ा मानें, क्योंकि इतनी सारी आपदाएं सामने खड़ी हैं। यह बड़े लोगों के लिए शर्म की बात है या फिर एकदम इसका उलटा है।

चलिए सबसे पहले स्वास्थ्य सेवाओं की बात ककते हैं। शुक्रवार को देश में करीब 22,000 लोगो कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इसी दिन कम से कम 440 लोग इस महामारी से मौत के मुंह में चले गए। स्थिति यह है कि अब हमारे देश में दुनिया भर के करीब 10 फीसदी मरीज कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। सोमवार तक आशंका है कि हम दुनिया में इस मोर्चे पर तीसरे नंबर पर पहुंच जाएंगे। आशंका जताई जा रही है कि जुलाई के अंत तक हमारे यहां हर रोज 50,000 कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आएंगे। यह वह संख्या जो कि अमेरिका में इन दिनों ह और वहां हर रोज करीब 1000 लोगों की मौत हो रही है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगस्त अंत तक संख्या एक लाख प्रतिदिन पहुंच सकती है। तब तक कितने डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी काम पर आ रहे होंगे और इतनी बड़ी तादाद में लोगों को इलाज मुहैया करा पा रहे होंगे।

सितंबर और अक्टूबर की अभी से बात करने का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में तो आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। ध्यान रहे कि यह वो तीन शहर हैं जहां देश की सबसे बेहतर चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएँ और सुविधाएं उपलब्ध हैं। लेकिन जब यह महामारी छोटे शहरों में पैर पसारेगी तो क्या स्थिति होगी, इसकी अभी कल्पना तक नहीं की जा सकती।

अब आते हैं अर्थव्यवस्था की तरफ। हमारे देश में कई ऐसे संकेतक हैं जिनसे देश की आर्थिक सेहत का अनुमान लगाया जा सकता है। इनमें से एक सबसे अच्छा संकेतक है ऑटोमोबिल बिक्री का, क्योंकि हर महीने की शुरुआत में सभी ऑटोमोबाइल कंपनियां आंकड़े जारी करती हैं कि उन्होंने पिछले महीने कितने वाहन बेचे। इन आंकड़ों को पिछले साल के इसी महीने के आंकड़ों से तुलना की जा सकती है जिससे पता चलता है कि क्या बदल चुका है।

जनवरी 2020 में देश में यात्री वाहनों की बिक्री गिरकर 2.6 लाख रह गई थी। 2019 के जनवरी महीने में 2.9 लाख यात्री वाहन बिके थे। ध्यान रहे कि यह महीना वह था जब देश में कोरोना वायरस की आमद नहीं हुई थी और लॉकडाउन से भी दो महीने पहले की बात है। इसी तरह कमर्शियल वाहनों की बिक्री भी जनवरी 2019 के 87,000 के आंकड़े से गिरकर जनवरी 2020 में 75,000 पहुंच गई थी। दोपहिया वाहनों की बिक्री भी जनवरी 2019 के 15 लाख से गिरकर जनवरी 2020 में 13 लाख रह गई थी। दरअसल मध्यवर्ग और निम्न मध्य वर्ग की आर्थिक स्थिति खस्ता थी, जो इन वाहनों की बिक्री में बढ़ोत्तरी या गिरावट करते हैं। फरवरी में कमर्शियव वाहनों की बिक्री 32 फीसदी गिरी जबकि यात्री वाहनों की बिक्री में 7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

फिर लॉकडाउन लग गया और अप्रैल में किसी भी श्रेणी का कोई भी वाहन नहीं बिका। लेकिन अनलॉक शुरु होने के बाद मई और जून में तो वाहनों की बिक्री में उछाल आना चाहिए था, लेकिन हुआ इसका उलटा। यानी कुछ तो ऐसा है जो अर्थव्यवस्था को गहरे नुकसान पहुंचा रहा है। और यह सब लॉकडाउन से पहले की स्थिति है। सरकार मानने को तैयार नहीं है, जबकि आंकड़े साफ चुगली करते हैं। चूंकि सरकार मान नहीं रही कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है, इसलिए वह इस मोर्चे पर सुधार के लिए कुछ कर भी नहीं रही है। हालत यह है कि समस्या बनी रहेगी और आर्थिक हालात खस्ता ही रहने की आशंका है।


ये दो समस्याएं ही आम लोगों की की जिंदगी दूभर करने के लिए काफी नहीं थीं कि चीन की तरफ से दो दशक की सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने आ खड़ी हुई। सीमा पर चीन हमें चिढ़ा रहा है और लद्दाख में हमारी उस जमीन पर कब्जा कर बैठा है जहां मार्च तक हमारी फौज गश्त करती रही है। हमें नहीं पता कि चीन आखिर ऐसा कर क्यों रहा है और वह चाहता क्या है। मौजूदा केंद्र सरकार के राष्ट्य सुरक्षा सलाहकार जासूस रह चुके हैं। यह वह पद है जिस पर आमतौर पर विद्धान ही आसीन रहे हैं। हमारे पास चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ भी हैं जिनका फोकस कश्मीर में आंतकविरोधी कार्रवाइयों पर रहा है और चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर वे आश्वस्त लगते रहे हैं। लेकिन अब स्थिति यह है कि हमं पाकिस्तानी मोर्चे से हटाकर अपने जवानों को लद्दाख की तरफ भेजना पड़ रहा है और हम नए लड़ाकू विमान भी खरीद रहे हैं।

सामरिक मामलों के विश्लेषक प्रवीण साहनी ने लिखा है कि चीन के साथ बातचीत बहुत लंबी चल चुकी है लेकिन बात आगे बढ़ ही नहीं रही है। कारण है कि चीन चाहता है कि भारत मौजूदा स्थिति को स्वीकार कर ले यानी उसकी सेना ने जो जगह कब्जाई है वह उसे दे दी जाए। इसका अर्थ होगा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदला जाए। जाहिर है कि ऐसा नहीं हो सकता है और हम इसे नहीं मानने वाले, लेकिन इस मुद्दे पर सीधे बात कैसे हो, क्योंकि प्रधानमंत्री तो कह चुके हैं कि हमारी किसी जमीन या पोस्ट पर किसी ने कब्जा नहीं किया है। हालांकि रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री मान चुके हैं कि चीन ने हमारी जमीन कब्जा ली है और वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर वह हमारे इलाके में आ चुका है। मोदी ने शुक्रवार को लद्दाख का दौरा किया, उम्मीदथी कि जो गलती या असमंजस था उसे दुरुस्त कर लिया जाएगा। उन्होंने युद्ध भूमि वाला भाषण भी दिया जिससे यह तो साबित हुआ कि खतरा असली है और चीन को पीछे हटना ही होगा। लेकिन वह अपने भाषण में चीन का नाम लेने से हमेशा की तरह परहेज कर गए। लेकिन देर-सवेर उन्हें चीन का नाम लेना ही होगा क्योंकि चीन हमारी जमीन आसानी से नहीं छोड़ने वाला और इसमें वक्त लग सकता है।

इस तरह कहा जा सकता है कि चूंकि हमने स्थिति की गंभीरता को स्वीकार ही नहीं किया इसलिए काफी अहम वक्त हाथ से निकल गया। अब यह शर्म की बात है और इससे पीएम की छवि को धक्का लगेगा या नहीं, इस पर बहस होती रहेगी। शुरु में हमारे पास जो वक्त था उसका इस्तेमाल हम वैश्विक स्तर पर अपने लिए समर्थन जुटाने में कर सकते थे, बशर्ते हमने साफ कहा होता कि चीन ने एएसी का उल्लंघन किया है और हमारे इलाके में घुस आया है। लेकिन अब पछताए होत क्या...। अभी भी हमारे पास मौका है जब जी-7 सम्मेलन में मोदी शामिल होंगे। लेकिन यह भी साफ नहीं है कि तब तक चीन मौजूदा स्थिति से बदल चुका होगा या नहीं।

कुल मिलाकर हमारे सामने महमारी, खस्ता आर्थिक स्थिति और मंदी, रिकॉर्ड बेरोजगारी और एक शक्तिशाली दुश्मन से मुकाबला करने की चुनौती है।

इस साल की शुरुआत में मैंने कहा होता कि इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि सत्ताधारी दल भारतीयों को विभाजित करने की कोशिश कर रहा है। वह समस्या और चिंता अब भी है, लेकिन इस समय जो चुनौतियां हैं, उनका सामना हमें एक देश के रूप में एकजुट होकर करना है।

(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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Published: 05 Jul 2020, 9:03 PM