एक्सक्लूसिव : संघ से ही जुड़ा था गोडसे – सामने आए नए सबूत

68 साल बाद गोडसे को शहीद साबित करने की कोशिशें हो रही हैं। वहीं महाराष्ट्र के भिवंडी में एक मुकदमे की सुनवाई चल रही है, जिसके पूरा होने पर गोडसे और आरएसएस के रिश्ते साबित हो सकते हैं।

31 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की चिता पर सतर्कता से खड़े पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू
31 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की चिता पर सतर्कता से खड़े पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू
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उत्तम सेनगुप्ता

15 नवंबर, 1949...ये वह दिन था जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के दोषी दो लोगों, नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी पर लटका दिया गया। 68 साल बाद एक तरफ गोडसे को शहीद साबित करने की कोशिशें हो रही हैं और उसके नाम के मंदिर बनाए जा रहे हैं, तो वहीं महाराष्ट्र के भिवंडी में एक मुकदमे की सुनवाई चल रही है, जिसके पूरा होने पर गोडसे और आरएसएस के रिश्ते साबित हो सकते हैं।

इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी एंड रिकॉर्ड्स के लंदन आर्काइव में कुछ ताजा सबूत सामने आए हैं, जिनसे संकेत मिलता है कि गोडसे और आरएसएस का रिश्ता कहीं ज्यादा गहरा था और इतना मामूली नहीं था जितना आरएसएस आजतक दुनिया को बताता रहा है।

13 फरवरी, 1948 को ब्रिटेन के विदेश विभाग द्वारा भेजे गए एक टेलीग्राम में दावा किया गया है कि, “अब यह साबित हो चुका है कि महात्मा गांधी के हत्यारे के रूप में गिरफ्तार गोडसे आर एस एस एस (ऐसा समझा जाए) और महासभा का सदस्य था।” इस टेलीग्राम की एक प्रति नवजीवन और नेशनल हेराल्ड के पास है। (चित्र देखें)

नवजीवन एक्सक्लूसिव
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टेलीग्राम में ये भी बताया गया था : “….शुरुआती गड़बड़ियां और फसाद जाहिर तौर पर फौरी गुस्से का नतीजा थे, कुछ जगहों पर आरएसएस द्वारा महात्मा गांधी की हत्या का जश्न मनाने से भी हालात बिगड़े.... “टेलीग्राम में यह भी कहा गया, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के नेता जय प्रकाश नारायण ने सरकार से मुस्लिम लीग, महासभा और आर एस एस एस को प्रतिबंधित कर नियंत्रित करने और महात्मा गांधी की हत्या रोकने में प्रभावी तौर पर नाकाम रहने के लिए इस्तीफा देने की मांग की। उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री (सरदार पटेल, दक्षिणपंथी) को हटाने की भी मांग रखी.....”

ये टेलीग्राम विभिन्न राजधानियों में तैनात ब्रिटिश महाराजा के प्रतिनिधियों (His Majesty’s Representatives) को भेजा गया, इनमें वाशिंगटन, मॉस्को, बर्लिन, पैरिस, काहिरा और काबुल शामिल थे।

आरएसएस हमेशा से गांधी की हत्या की जिम्मेदारी से ये कहकर इनकार करता रहा है कि इस अपराध को अंजाम देने से पहले गोडसे आरएसएस छोड़ चुका था। तमाम मजबूत सबूतों के बावजूद यह कथित ‘सांस्कृतिक संगठन’ दावा करता है कि इसका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। कुछ तर्कों के साथ इसका ये भी दावा रहा है कि न तो लाल किले में स्थापित विशेष अदालत में चले गांधी की हत्या के मुकदमे के दौरान और न ही बाद में बने जांच आयोगों को महात्मा गांधी की हत्या में उसके शामिल होने के कोई सबूत नहीं मिले।

नवजीवन एक्सक्लूसिव
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लैरी कॉलिंस, डॉमिनिक लैपिए और ए जी नूरानी और अन्य ने भी हमेशा यही माना है कि गोडसे और आरएसएस के करीबी संबंधों में कोई शक नहीं है, क्योंकि ये संगठन हिंदू महासभा का ही एक अलग हुआ संगठन है। नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने भी कई इंटरव्यू में कभी भी उसके भाई नाथूराम और आरएसएस को रिश्तों को स्वीकारा है और कहा है कि नाथूराम ने कभी भी आरएसएस नहीं छोड़ा था और आरएसएस को बचाने के लिए ही उसने आरएसएस से अपने संबंधों से इनकार किया होगा। महात्मा गांधी का हत्यारा गोडसे अपने मुकदमे के दौरान लगातार यही कहता रहा कि उसने आरएसएस छोड़ दिया था और वह हिंदू महासभा का सक्रिय कार्यकर्ता बन गया था।

बाद में भी नूरानी ने इशारा किया है कि गोडसे के मुकदमे में वादा माफ गवाह दिगंबर बाडगे ने भी मुकदमे की सुनवाई कर रही अदालत को बताया था कि विनायक दामोदर सावरकर (जिनकी 1966 में मृत्यु हो गयी) भी इस साजिश में शामिल थे। नूरानी आगे लिखते हैं कि इस वादा माफ गवाह के दावों को साबित करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह न मिलने पर अदालत ने आरएसएस को संदेह का लाभ दे दिया था। नूरानी के मुताबिक बाद में सावरकर के अंगरक्षक आप्टे रामचंद्र केसर और सेक्रेटरी विष्णु दामले ने ये माना था कि सावरकर इस साजिश में शामिल थे।

(उत्तम सेनगुप्ता नेशनल हेराल्ड के कार्यकारी संपादक हैं। उन्हें @chatukhor पर ट्वीट से संपर्क किया जा सकता है)

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Published: 07 Aug 2017, 2:58 PM
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