गौहर रज़ा की नज़्म गवाही दो कि तुम पर फर्ज़ है यह...का दुनिया की 6 भाषाओं में अनुवाद और एक साथ एक ही मंच पर वाचन

संभवतः यह पहला मौका था जब अलग-अलग महाद्वीपों में बैठे बुद्धिजीवियों ने अलग-अलग भाषाओं में एक ही नज्म के अनुवाद पढ़े और उस पर चर्चा की। चर्चा का मूल विषय था कि कैसे एक सांस्कृतिक हालात में लिखी गई कविता दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी प्रासंगिक हो जाती है।

फोटो गौहर रज़ा के फेसबुक से साभार
फोटो गौहर रज़ा के फेसबुक से साभार
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नवजीवन डेस्क

मशहूर शायर और समसामयिक विषयों पर अपनी बेबाक राय रखने वाले वैज्ञानिक गौहर रज़ा की नज्म 'गवाही दो' को 6 भाषाओं में अनुदित किया गया है। इससे भी अद्भुत बात यह है कि इस नज्म के सभी अनुवादों को एक के बाद एक, एक साथ अलग-अलग लोगों ने एक ही मंच पर पढ़ा। गौहर रजा ने यह नज्म 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान लिखी थी, जिसे खूब सराहा गया था।

गौहर रजा की नज्म के अनुवाद को विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, वैज्ञानिकों और कवियों ने पढ़ा। इस आयोजन में नज्म को मूल रूप से उर्दू में गौहर रजा ने पढ़ा। इसके अंग्रेजी, फ्रेंच, अफ्रीकान्स, स्पेनिश, तुर्की और अरबी भाषा में इस नज्म का अनुवाद पढ़ा गया। इन सभी अनुवाद को एक पुस्तक के रूप में जल्द ही प्रकाशित भी किया जाएगी।

संभवतः यह पहला मौका था जब इस तरह की कोई गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें अलग-अलग महाद्वीपों (अफ़्रीका, साउथ अमरीका, यूरोप और एशिया) में बैठे बुद्धिजीवियों ने अलग-अलग भाषाओं में एक ही नज्म के अनुवाद पढ़े और उस पर चर्चा की। चर्चा का मूल विषय और केंद्र बिंदु यही था कि कैसे एक सांस्कृतिक हालात में लिखी गई कविता दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी प्रासंगिक हो जाती है।

इस नज्म के अंग्रेजी अनुवाद को रितुपर्णा ने अंग्रेजी में, हेस्टर डु प्लेसिस ने अफ्रीकान्स में. केंज सिफरियोई ने फ्रेंच में, मोहम्मद साला-ओमरी ने अरबी में और यारा पिलात्ज - इयेलेम कमरुग्लू ने तुर्की में पढ़ा। इसके अलावा इस नज्म के स्पेनिश अनुवाद को जेनाइना गिसलिंग और गैब्रिएल सेलिनास और प्रोफेसर जोइले ने पढ़ा।


इस पूरे आयोजन पर गौहर रजा ने कहा कि वे इससे काफी सम्मानित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस तरह के आयोजनों से देशों के बीच गहरे खींची हुई सीमाओं को धुंधला करने का मौका मिल सकता है।

गौहर रज़ा की मूल नज्म यहां नीचे दे रहे हैं जिसका शीर्षक है 'गवाही'

गवाही दो के तुम उस दौर से गुज़रे हो जब दौर-ए-ख़िज़ाँ था

गवाही दो कि बहते वक़्त के धारे बहुत संगीन थे

तब बहाओ तेज़ था, और तैरना मुश्किल था बेहद

गवाही दो कि तुम उस दौर से गुज़रे हो

जब हुक्काम ने ख़ुद को ख़ुदा समझा

गवाही दो कि तुम मौजूद थे जब इस वतन के पासबानों ने,

अंधेरी रात में यलग़ार बोला था

हर एक शहरी को सफ़आर किया था

गवाही दो अंधेरी रात थी और मुल्क में डाका पड़ा था

सफ़ें जब बिछ चुकीं हर जेब ख़ाली हो चुकी

तब ग़रीबों के लबों से रोटियाँ तक छीन ली थीं

गवाही दो जुनूँ को सरबरहना घरों में बस्तियों में घूमता देखा है तुमने

गवाही दो कि नफ़रत साथ थी उसके

गवाही दो इसी नफ़रत ने उनके घर जलाए

जो अपने हक़ की ख़ातिर शाहराहों पर खड़े थे

गवाही दो वो सहमे लोग देखे हैं कि जिन के घर जले थे

गवाही दो दुकानों, दरसगाहों और घरों की राख

पैरों से लिपट कर रो रही थी

गवाही दो कि शाहों की अदालत नफ़रतों से भर चुकी है

अदालत मुजरिमों के कटघरे में खड़ी है हाथ बाँधे

सही इल्ज़ाम है इन मुन्सिफ़ों पर,

किताबों और क़लम को बेच डाला मुंसिफ़ी को बेच डाला

गवाही दो यह सब सस्ता बिका था

गवाही दो कि अब इंसाफ़ जनता की अदालत में खड़ा है

गवाही दो यक़ीन रखो कि इस दौरे ख़िज़ाँ में भी

तुम्हारी हर गवाही दर्ज होगी

तुम्हारी हर गवाही पर यहाँ इंसाफ़ होगा

तुम्हारी हर गवाही से गरेबां चाक हैं जितने,

सिलेंगे तुम्हारी हर गवाही से

बहारें अपने पैरहन की जेबाइश करेंगी

तुम्हारी हर गवाही अगली नस्लों के लिए

राहों में उजियारा बिखेरेगी

गवाही दो कि तुम पर क़र्ज़ है ये

गवाही दो कि तुम पर फ़र्ज़ है ये

गौहर रज़ा ने यह नज्म पहली बार फरवरी 2020 में सामने रखी थी। यह वह मौका था जब देश की राजधानी के उत्तर पूर्वी इलाके में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी और 50 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।

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