एक साथ तीन तलाक : दस बातों में समझें सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समाज में तलाक के तीन तरीकों में से एक ‘एक बार में तीन तलाक’ को गैर संवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट का फैसला इस आधार पर है कि इस तरीके की इस्लाम में ही कोई वैधता नहीं है।

 कोर्ट ने 3:2 के बहुमत के आधार पर तलाक-ए-बिदत को खत्म कर दिया है 
कोर्ट ने 3:2 के बहुमत के आधार पर तलाक-ए-बिदत को खत्म कर दिया है
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने एक साथ तीन तलाक देने को अपराध घोषित करते हुए इसे असंवैधानिक ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा:

अलग-अलग राय लेने के बाद कोर्ट ने 3:2 के बहुमत के आधार पर तलाक-ए-बिदत को खत्म कर दिया है

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रधानमंत्री ने ऐतिहासिक और तमाम राजनीतिक दलों और मुस्लम संगठनों ने प्रगतिशील बताया है। इस फैसले में एक राहत भी है। वह यह, कि कोर्ट ने तलाक के सभी तरीकों पर रोक नहीं लगायी है। कोर्ट ने सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले तरीके तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत कानूनी ठहाया है।

कोर्ट ने सिर्फ एक साथ तीन तलाक के तरीके यानी तलाक-ए-बिदत पर ही रोक लगायी है क्योंकि तलाक के इस तरीके का कुर’आन में भी जिक्र नहीं है।

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता फ्लाविया एग्नेस ने मुंबई में कहा, “सभी जजों की अलग-अलग राय थी। दो जजों (नरीमन और ललित) ने कहा कि ये असंवैधानिक है। चूंकि 1937 का कानून तीन तलाक को मान्यता देता है, इसलिए यह कानून चलन में है। ऐसे में ये संवैधानिक वैधता का सवाल बन जाता है। जस्टिस कूरियन ने गैर इस्लामी करार दिया और इसे खत्म करने दिया। उन्होंने जो कुछ इस पर कहा और जो कुछ भी 2002 के शमीम आरा मामले में कहा गया था, वो इसमें कोई फर्क नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, “जजों ने नहीं कहा है, वह यह है कि अगर कोई पुरुष एक साथ तीन तलाक सुना देता है तो क्या होगा? ऐसे में महिला कहां जाएगी? उसके अधिकारों का क्या होगा? समस्या अभी खत्म नहीं हुयी है।”

कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें:

  • इस्लामी कानून के मुताबिक तलाक के तीन तरीके हैं। तलाक के मायने पति-पत्नी के बीच पति की पहल पर संबंध विच्छेद होना हैं। ‘खुला’ भी एक तरीके का तलाक है, लेकिन वह पत्नी की पहल पर दोनों के बीच संबंध खत्म होना है। तीसरा तरीका है मुबारात, यानी दोनों पक्षों (पति-पत्नी के बीच आपसी सहमति से संबंध खत्म होना)
  • पति की पहल पर दी जाने वाली तलाक के भी तीन प्रकार है: 1) तलाक-ए-अहसन, 2) तलाक-ए-हसन, और 3) तलाक-ए-बिदत। याचिकाकर्ता का कहना था कि तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन को कुर’आन और हदीस की मान्यता है। और इन्हें ही तलाक का सबसे सही तरीका माना जाता है,
  • याचिका में कहा गया था कि तलाक-ए-बिदत को न तो कुर’आन से और न ही हदीस से मान्यता है, ऐसे में इसे मुस्लिम धर्म में अटल नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के पास इसी तलाक-ए-बिदत पर फैसले के लिए मामला आया था।
  • तलाक-ए-बिदत के तहत पुरुष एक ही वाक्य में “मैं तुम्हें तलाक देता हूं” या एक ही बार में “तलाक, तलाक, तलाक” कह कर रिश्ते को खत्म कर सकता था। इस तरीके में संबंध विच्छेद तुरंत प्रभावी हो जाता था। जबकि, दूसरों तरीकों में संबंध विच्छेद के लिए एक निश्चित समय सीमा पूरी होना जरूरी है। वैसे मुस्लिम समाज में एक साथ तीन तलाक कहने का चलन बहुत ज्यादा नहीं है।
  • याचिका में कहा गया कि तलाक-ए-बिदत का भले ही कुर’आन और हदीस में कहीं जिक्र नहीं है लेकिन ये दूसरी शताब्दी से ही चलन में है। और सिर्फ हनफी सुन्नी मुसलमानों के बीच ही इसकी परंपरा है। साथ ही यह भी कहा गया कि जिन इस्लामिक स्कूलों ने इस तरीके को सही ठहराया है वे भी इसे तलाक का सबसे खराब तरीका मानते हैं।

कोर्ट के फैसले के 10 अहम बिंदु :

  1. सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक के चलन को 3:2 के बहुमत से असंवैधानिक ठहराया है। जस्टिस कूरियन जोसेफ, यू यू ललित और आर एफ नरीमन ने बहुमत के पक्ष में राय रखी, जबकि मुख्य न्यायाधीश खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर की राय इससे अलग थी
  2. एक साथ तीन तलाक या तलाक-ए-बिदत, वह तरीका है जिसमें पुरुष एक ही बार में तलाक सुना देता है और इद्दत का भी इंतजार नहीं करता है।
  3. एक साथ तीन तलाक को आमतौर पर मान्यता नहीं है क्योंकि कुर’आन और शरीयत इसे वैध नहीं ठहराते।
  4. अपने शपथ पत्र में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी कहा था कि इस तरीके के तलाक को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। बोर्ड ने इस बारे में एडवाइजरी भी जारी की थी।
  5. तलाक के दूसरे तरीके तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन जारी रहेंगे।
तलाक-ए-अहसन : यह वह तरीका है जिसमें पति अपने होश-ओ-हवास में पत्नी को तलाक सुनाता है और इसके बाद इद्दत (90 दिन) पूरी होने का इंतजार करता है। इस तरह की तलाक इद्दत के दौरान सुलह होने पर अमान्य हो जाती है।
तलाक-ए-हसन : इस तरीके में पति तीन बार में तलाक सुनाता है। लेकिन इन तीनों के बीच एक महीने (30 दिन) का अंतराल होता है। इस तरह की तलाक भी तीसरी बार तलाक कहने से पहले अमान्य हो सकती है। लेकिन तीसरी बार तलाक कहने के बाद रिश्ता खत्म हो जाता है।
  1. पर्सनल लॉ को सिर्फ न्यायिक नैतिकता के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये कानून मौलिक अधिकारों का हिस्सा हैं
  2. कपिल सिब्बल का कहना है कि उनका ये तर्क सही साबित हुआ है कि पर्सनल लॉ से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।
  3. शायरा बानू ने एक बार में तीन तलाक दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
  4. जस्टिस कूरियन जोसेफ का कहना था कि चूंकि धर्मशास्त्र में एक साथ तलाक को भी गलत माना गया है। इसलिए यह एक गैरकानूनी परंपरा है और कुर’आन के खिलाफ है।
  5. जस्टिस नरीमन ने कहा कि कुर’आन में बताए गए तलाक के तरीके आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक हैं।

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Published: 22 Aug 2017, 6:16 PM