पुण्यतिथिः 'जुबली कुमार' के मुक़ाम तक पहुंचना सब के बस की बात नहीं...

राजेंद्र कुमार दिखने में काफी खूबसूरत और हैंडसम थे। साल 1950 में उन्हें महज 21 साल की उम्र में अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ फिल्म जोगन में काम करने का मौका मिला। फिल्म जोगन में अभिनय करने के बाद वह हर फिल्म के हर किरदार में फिट होने लगे।

राजेंद्र कुमार के मुक़ाम तक पहुंचना सब के बस की बात नहीं
राजेंद्र कुमार के मुक़ाम तक पहुंचना सब के बस की बात नहीं
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अतहर मसूद

आज हिंदी के मशहूर अभिनेता राजेंद्र कुमार की 24वीं पुण्यतिथि हैं। 60 और 70 के दशक में राजेंद्र कुमार की फिल्मों नें बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दिया था। उनकी फिल्मों के एक के बाद लगातार हिट होने की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें जुबली कुमार के नाम से पुकारा जाने लगा था। अपनी बेमिसाल और दमदार अदाकारी से हिंदी सिनेमा में उन्होंने अपना जो मुकाम बनाया था, वहां तक पहुंचना सब के बस की बात नहीं है। राजेंद्र कुमार फिल्मों में एक्टिंग करने के अलावा कई फिल्मों के निर्माता-निर्देशक भी बने। राजेंद्र कुमार की रोमांटिक छवि उनकी हर फिल्म में देखने को मिलती थी।

राजेंद्र कुमार का जन्म 20 जुलाई 1929 को पंजाब के सियालकोट में हुआ था। राजेंद्र कुमार बचपन से ही एक फिल्म एक्टर बनना चाहते थे। एक मिडिल क्लास परिवार से होने के बावजूद भी उन्होंने अपने एक्टर बनने के ख्वाब को नहीं छोड़ा, अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए राजेंद्र कुमार ने अपने पिता की घड़ी को बेचकर बंबई का रुख किया था।

राजेंद्र कुमार दिखने में काफी खूबसूरत और हैंडसम थे। साल 1950 में उन्हें महज 21 साल की उम्र में अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ फिल्म जोगन में काम करने का मौका मिला। फिल्म जोगन में अभिनय करने के बाद वह हर फिल्म के हर किरदार में फिट होने लगे। उसके बाद 1957 में रिलीज हुई महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया में उन्होंने नरगिस के बड़े बेटे का किरदार बहुत ही खूबसूरती के साथ निभाया। 1959 में आई फिल्म गूंज उठी शहनाई में पहली बार वह बतौर लीड एक्टर नजर आए।

फ़िल्म गूंज उठी शहनाई के बाद 1959 में यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म धूल का फूल में भी उनके काम को काफी पसंद किया गया था। इसी फिल्म से यश चोपड़ा ने बतौर डॉयरेक्टर अपना करियर शुरू किया था। 1963 की फ़िल्म मेरे महबूब के बाद राज कपूर की फिल्म संगम में भी राजेंद्र कुमार के अभिनय की खूब तारीफ हुई थी।


दर्शकों के बीच राजेंद्र कुमार 1957 में रिलीज हुई महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया से अपनी जगह बना चुके थे। मदर इंडिया के बाद राजेंद्र कुमार के पास फिल्मों के खूब ऑफर आने लगे और उन्होंने 1959 में धूल का फूल, 1963 में मेरे महबूब, 1964 में आई मिलन की बेला, 1964 में संगम, 1965 में आरजू और 1966 में सूरज जैसी कामयाब फिल्में हिंदी सिनेमा को दीं।

60 के दशक में राजेंद्र कुमार हिंदी सिनेमा पर छाए हुए थे। उनकी फिल्में एक के बाद एक लगातार बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली साबित हो रही थीं, यही वजह थी की उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में जुबली कुमार कहा जाने लगा था। उसके बाद 70 के दशक में उनके करियर का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा, क्योंकि तब हिंदी सिनेमा में राजेश खन्ना का आगमन हो चुका था।

उस दशक में राजेंद्र कुमार की 1970 में आई फिल्म गंवार, 1972 में आई तांगेवाला, ललकार और गांव हमारा शहर तुम्हारा, 1972 में आई आन बान जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई थीं। इसीलिए उस दौर में फिल्मों में उनकी डिमांड कम होने लगी थी। 1970 से लेकर 1977 तक का समय उनके लिए काफी दिक्कतों से भरा था। उसके बाद 1978 में उन्होंने एक्ट्रेस नूतन के साथ फिल्म साजन बिन सुहागन में काम किया, इस फिल्म से उनके दिन फिर से लौट आए और वह एक बार फिर से दर्शकों के चहेते बन गए।

राजेंद्र कुमार नें राज कपूर के साथ 1964 में फिल्म संगम और 1970 में मेरा नाम जोकर जैसी फिल्मों में सहायक अभिनेता का रोल निभाया था। उसके बाद उन्होंने 1975 में राज कपूर के साथ फिल्म दो जासूस में भी काम किया था। 1978 की फिल्म साजन बिन सुहागन के बाद उन्होंने फिल्मों में कैरेक्टर रोल निभाने शुरू कर दिए थे। उन्होंने हिंदी फिल्मों के अलावा कुछ पंजाबी फिल्मों में भी काम किया था, जिसमें तेरी मेरी एक जिंदगी फिल्म काफी लोकप्रिय हुई थी। राजेंद्र कुमार आखिरी बार साल 1998 में दीपा मेहता की फिल्म अर्थ में नजर आए थे।

फिल्मों में बतौर एक्टर की पारी पूरी करने के बाद 1981 में उन्होंने फिल्मों के निर्माण और डॉयरेक्शन की दुनिया में कदम रखा। बतौर निर्माता-निर्देशक उनकी पहली फिल्म थी लव स्टोरी जो की साल 1981 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म अपने वक्त की बड़ी हिट मानी जाती है। इस फिल्म से उन्होंने अपने बेटे कुमार गौरव को बड़े पर्दे पर पेश किया था। उसके बाद उन्होंने फूल, जुर्रत, नाम, लवर्स जैसी फिल्मों का भी निर्माण किया।


राजेंद्र कुमार को फिल्मफेयर अवार्ड के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए तीन बार नॉमिनेट किया गया, लेकिन उन्हें कभी यह पुरस्कार मिल नहीं पाया। साल 1969 में भारत सरकार नें उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। हिन्दी फिल्म कानून और गुजराती फिल्म मेंहदी रंग लाग्यो के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

राजेंद्र कुमार का आज ही के दिन यानी 12 जुलाई 1999 को कैंसर की वजह से बॉम्बे में निधन हो गया था। राजेंद्र कुमार अपनी एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्मों से आज भी अपने चाहने वालों के बीच मौजूद हैं।

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