चर्चा में डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘वी होल्ड द लाइन’: जिसमें दिखता है भारत का अक्स

‘रेपलर’ एक स्वतंत्र और प्रभावशाली ऑनलाइन समाचार वेबसाइट है। इसकी सह-संस्थापक और सीईओ पत्रकार मारिया रेसा हैं। मारिया रेसा वर्ष 2021 के नोबेल शांति पुरस्कार की सह-विजेता हैं। आज वह खबरों की सुर्खियों में हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नम्रता जोशी

हमने शायद अपने प्रधानमंत्री को कभी भी संवाददाता सम्मेलन करते नहीं देखा है और शायद इसीलिए मार्क विएस की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘वी होल्ड द लाइन’ में वह दृश्य सबसे डराने वाला और दिलचस्प भी है जिसमें 2018 में एक संवाददाता सम्मेलन में फिलिपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते आधिकारिक तौर पर पत्रकारों से सवाल तो ले रहे होते हैं लेकिन वह किसी प्रश्न का बहुत स्पष्ट उत्तर नहीं देते बल्कि वह खुल्लमखुल्ला उन प्रश्नों को चालाकी से टाल देते हैं और उस अवसर का पूरा इस्तेमाल मीडिया को गाली-गलौज करने और धमकियां देने के लिए करते हैं। वह बहुत ही खराब तरीके से आक्रामक रवैये का प्रदर्शन भी करते हैं। इसके बावजूद ‘रेपलर’ की पतली-दुबली रिपोर्टर उनसे लगातार प्रश्न पूछती रहती है जबकि वह उसके मीडिया संस्थान को ‘कचरा’ कहते हैं। उस रिपोर्टर का साहस और उसकी अवज्ञा से भरा वह क्षण ही फिल्म का सार है: तानाशाही का उभार और लोकतंत्र के बचाव की अंतिम पंक्ति में खड़ा मीडिया।

‘रेपलर’ एक स्वतंत्र और प्रभावशाली ऑनलाइन समाचार वेबसाइट है। इसकी सह-संस्थापक और सीईओ पत्रकार मारिया रेसा हैं। मारिया रेसा वर्ष 2021 के नोबेल शांति पुरस्कार की सह-विजेता हैं। आज वह खबरों की सुर्खियों में हैं। वहीं ‘वी होल्ड द लाइन’ फिल्म उनके प्रशंसनीय जीवन की झलक हमें दिखाती है। साथ ही यह फिल्म हमें रोड्रिगो दुतेर्ते की कपटी राजनीति और निरंकुश तरीकों के खिलाफ एवं प्रेस तथा लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिए मारिया रेसा के शाश्वत संघर्ष की एक झांकी भी प्रस्तुत करती है। यह संघर्ष दुनियाभर के मीडिया के लिए एक मिसाल बन गया है।


विएस इस फिल्म में हमें बहुत ही ईमानदारी से घटनाओं की हर कड़ी से जोड़े रखते हैं और हम उसमें पूरी तरह से डूब जाते हैं। वर्ष 2015 में राष्ट्रपति चुनावों की पूर्व संध्या पर दुतेर्ते के बारे में एक बहुत ही सकारात्मक धारणा बनाई जाती है जिसमें यह विश्वास दिलाया जाता है कि ‘देखभाल और साहस’ की अपनी नीति के साथ वह फिलिपींस को अराजकता, गरीबी, ड्रग्स और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाएंगे। वह बिना पलक झपकाए कहते हैं, “यह खूनी होने जा रहा है। यह एक तानाशाही होने जा रही है।” हम रेसा के साथ 2015 में उनके दूसरे साक्षात्कार के अभिलेखीय फुटेज देखते हैं जिसमें वह 1987 में रेसा के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद करते हैं और साथ ही दवाओ के मेयर के रूप में तीन लोगों की हत्या पर शोरगुल मचाते हैं। यह फिल्म सत्ता के क्रूर दुरुपयोग और मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक दस्तावेज है। मौत के दस्तों द्वारा ड्रग रैकेट के सफाये की आड़ में हजारों लोगों को उनके परिवार के सदस्यों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। लेकिन नशीले पदार्थों के खिलाफ यह युद्ध कितना सच्चा था? क्या एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल हत्याएं राज्य प्रायोजित संगठित अपराध के समान नहीं थीं? दुतेर्ते के अपने बेटे को इस खेल में कौन-से भाई-भतीजावाद की भूमिका दी गई थी जिसमें वह दंड से बिल्कुल ही मुक्त था? यह प्रश्न बहुत ही अनिष्टसूचक और डरावने लगने लगते हैं जब धीरे-धीरे हमारा खुद का ड्रग्स वार सामने आने लगता है।

रेसा वह महिला हैं जो दुतेर्ते शासन को आईना दिखाने का साहस रखती हैं और इस फिल्म को एक साथ बांधे रखती हैं। रेसा ऐसी महिला हैं जो टूटती नहीं हैं, एक ऐसी पत्रकार हैं जो समझौता नहीं करतीं। इस सबके लिए उन्हें दो बार सख्त कारावास के साथ-साथ बदनामी से भरे अभियान तथा साइबर अपराध और टैक्स चोरी से लेकर अनेक कानूनी मामले बतौर ईनाम में मिलते हैं जो उन्हें परेशान करने और चुप करा देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। एक कारावास तो उन्हें न्यूयॉर्क से तुरंत लौटते ही भोगना पड़ा। वह टाइम 100 कॉन्फ्रेंस में एक ऐसे पत्रकार के रूप में हिस्सा लेने गई थीं जिनका नाम ‘टाइम’ पत्रिका के 2018 के ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ के रूप में प्रकाशित हुआ था।


विएस अपनी इस फिल्म में समाचार फुटेज, सड़क के दृश्यों के साथ-साथ न केवल रेसा और अन्य पत्रकारों बल्कि दुतेर्ते की राजनीति के पीड़ित और उसके राजनीतिक विरोधी जो अंडर ग्राउंड होते हैं और यहां तक अमानवीय आदेशों को पूरा करने के लिए राज्य द्वारा नियुक्त नकाबपोश हिटमैन के साक्षात्कारों को सामने रखते हैं और साथ ही इन दृश्यों को बहुत खूबसूरती के साथ एक कड़ी के रूप में जोड़ते हैं। यह एक ऐसा भयानक थ्रिलर है जिसे हम पूरी फिल्म में अपने साथ-साथ महसूस करते हैं और जो हमें यह दिलाता है कि निरंकुश शासन सब जगह एक जैसा ही होता है। हमारे नेताओं की एक ही शैली है, रेसा ने ट्रंप के अमेरिका को मर्दाना, स्त्री विरोधी, सेक्सिस्ट और लोगों को लुभाने वाला बताया। वह कहती हैं, “वे फूट डालने और जीतने के लिए गुस्से और भय का इस्तेमाल करते हैं। वे नफरत की राजनीति को जन्म देते हैं और उसी को जीते हैं।” ये सभी लोग पत्रकारों से भी डरते हैं। एक ऐसा डर जो आक्रामकता और अहंकार को चोला ओढ़े होता है और उपेक्षा तथा किसी भी तरह की संवादहीनता के साथ सच्चाई और सच्चाई के संदेश वाहक को खामोश करने की कोशिश करता है।

यह फिल्म लोकतंत्र में लगातार गिरावट और दुनियाभर में फासीवाद के सहवर्ती उभार की भी याद दिलाती है और साथ ही यह भी बताती है कि यह फासीवाद किस तरह से बहुमत के समर्थन पर सवार है। इस पूरे परिदृश्य में यह मीडिया के सामने उभरी नई चुनौतियां के बारे में भी बात करती है। जैसा कि रेसा इसे “सोशल मीडिया और कानून का शस्त्रीकरण” कहती हैं। वहीं, फेक साइटों और ऑनलाइन तथा वास्तविक[1]दोनों में ही ट्रोल्स के उभार के साथ-साथ पुलिस और सेना जैसी राज्य एजेंसियों के साथ मिलीभगत से उत्पीड़न के नए तरीके सामने आए हैं। रेसा दुनिया के लिए फिलीपींस को चेतावनी भरी कहानी के रूप में रखती हैं कि कैसे लोगों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि झूठ ही तथ्य हैं और उनके दिमाग को नियंत्रित किया जा सकता है। जैसा कि वह कहती हैं, इस खेल में “माइक्रोफोन की सबसे ऊंची आवाज जीतती है।”


सुनो, सुनो। इस फिल्म के साथ जो सबसे बड़ा संदेश जुड़ा हुआ है, वह यह है कि अत्याचार के खतरों का मुकाबला आधे-अधूरे उपायों से नहीं किया जा सकता, इसके लिए केवल निडर होकर खड़े होने की आवश्यकता है। ‘वी होल्ड द लाइन’ फिल्म आखिरकार उसी दुर्भाग्य में फंसे हुए विश्व मीडिया के लिए एकजुटता का बयान भी है। समय बुरा हो सकता है लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी एकता बनी रह सकती है। यह उम्मीद की ज्योति को भी जलाए रखती है और कहती है कि अभी सब कुछ नष्ट नहीं हुआ है। स्वतंत्रता को अंततः हासिल किया जाएगा। फिल्म के खत्म होने के काफी समय बाद भी रेसा के शब्द दिमाग में गुंजते रहते हैं: “जब मैं अब से एक दशक पीछे मुड़कर देखती हूं, मैं यह सुनिश्चित करना चाहती हूं कि मैंने वह सब कुछ किया जो मैं करना चाहती हूं। हम झुकेंगे नहीं, हम छिपेंगे नहीं, हम राह को पकड़े रहेंगे।” युगों के लिए एक प्रतिज्ञा।

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