बड़े बजट की फिल्मों के लिए भी अच्छी स्क्रिप्ट की जरूरतः तिग्मांशु धूलिया

कई राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्मों का निर्देशन कर चुके अभिनेता-लेखक तिग्मांशु धूलिया का मानना है कि बड़े बजट की फिल्मों के लिए भी अच्छी स्क्रिप्ट की जरूरत होती है। उनका कहना है कि 1960 के दशक के बाद से कंटेंट लेखन में लगातार गिरावट आई है।

फोटोः आईएएनएस
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‘पान सिंह तोमर’ और ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर’ जैसी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्मों का निर्देशन कर चुके तिग्मांशु धूलिया ने ‘मांझी-द माउंटेन मैन’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय की भी छाप छोड़ी है। हाल में रिलीज हुई ‘जीरो’ में शाहरुख खान के पिता के रूप में नजर आ रहे कलाकार-लेखक-निर्देशक तिग्मांशु धूलिया का मानना है कि बड़े बजट की फिल्मों के लिए भी अच्छी स्क्रिप्ट की जरूरत होती है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि 1960 के दशक के बाद से कंटेंट लेखन में लगातार गिरावट आई है और इसमें अब बदलाव होना चाहिए।

कलाकार-लेखक-निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने कहा, “बड़े बजट की फिल्मों में पहले बड़े बजट और ढेर सारे सितारों के होने की चुनौती होती थी। लेकिन अब बड़े बजट की फिल्मों के लिए अच्छी स्क्रिप्ट की भी जरूरत है। ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ को देखें। सितारों ने जो वादा किया, वह निभाया, क्योंकि पहले दिन का कलेक्शन जबरदस्त था। लोग अमिताभ बच्चन और आमिर खान को देखने गए, लेकिन दूसरे दिन से ही कलेक्शन गिरने लगा।”

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में रामाधीर सिंह की भूमिका में गहरी छाप छोड़ने वाले तिग्मांशु ने कहा, “इसलिए, फिल्म बड़े बजट की हो या न हो, कंटेंट ही किंग है। दर्शक समझदार हैं और ऑनलाइन मंचों से जिस तरह की चीजें पेश की जा रही हैं, उससे दर्शकों को गुणवत्तापूर्ण कंटेंट मिल जाता है।”

यह पूछे जाने पर कि आज के दौर में फिल्म निर्माण में वाणिज्यिक महत्ता और रचनात्मक महत्वाकांक्षा, दोनों पर कैसे ध्यान रखा जाए, तिग्मांशु ने कहा कि उन्हें लगता है कि 1960 के बाद से कंटेंट लेखन के क्षेत्र में काफी गिरावट आई है और इसमें निश्चित ही बदलाव होना चाहिए।

उत्तरप्रदेश के इलाहबाद में पले-बढ़े फिल्म निर्माता ने कहा कि वह अपने सिनेमाई प्रस्तुति में अपने छोटे शहर के अनुभवों को समाहित करने की कोशिश करते हैं। उनकी ‘हासिल’, ‘चरस’, ‘शागिर्द’ जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर औसत कारोबार किया था, लेकिन इन फिल्मों में बड़े कालाकारों के न होने के बावजूद लोग आज भी इन फिल्मों को याद करते हैं।

यह पूछे जाने पर कि भारतीय सिनेमा ‘खान युग’ के सम्मोहन से बाहर निकल चुका है और नये चेहरे आगे आ रहे हैं, उन्होंने कहा कि सिनेमा के पास अब एक बड़ा दर्शक वर्ग है। उन्होंने कहा, “पहले मल्टीप्लेक्स केवल बड़े शहरों में थे और अब हम इसे छोटे शहरों में भी देख सकते हैं। इसलिए सिनेमा में छोटे शहरों के पात्रों को दिखाया जा रहा है। आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव को देखें, दोनों छोटे शहरों की भूमिकाएं निभाते हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि इंडस्ट्री के खानों ने आम तौर पर ग्लैमरस भूमिकाएं निभाई हैं, न कि इस तरह की भूमिकाएं। ये छोटे शहर राजस्व (रिविन्यू) में भी काफी योगदान देते हैं, इसलिए यह भी कारण है कि इन छोटे शहरों की भूमिकाओं को फिल्म में लिया जाता है।

आनंद एल. राय द्वारा निर्देशित ‘जीरो’ के लिए धूलिया ने किस वजह से हामी भरी और शाहरुख खान के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा, इस सवाल पर उन्होंने कहा, “शाहरुख और मैंने ‘दिल से’ में काम किया था, जिसमें मैंने संवाद लिखे थे। हमारी दोस्ती पुरानी है। ‘जीरो’ के संदर्भ में, दो-तीन वजहें हैं, जिस वजह से मैंने यह फिल्म की। पहली, भूमिका वास्तव में अलग और विशिष्ट थी और जैसी भूमिका गैंग्स ऑफ वासेपुर में थी, उस तरह की भूमिका नहीं थी। और दूसरी, आनंद एल. राय एक प्रिय दोस्त हैं, जो तकनीकी रूप से इस भारी-भरकम फिल्म को स्पेशल इफेक्ट्स के साथ बना रहे थे। मैं यह देखने के लिए बेताब था कि वह फिल्म कैसे बनाते हैं और सेट पर बहुत कुछ सीखना चाहता था। और तीसरा, कोई भी शाहरुख खान के साथ काम करने के लिए उत्साहित होगा।”

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