बिना मिलावट की मासूमियत का त्योहार है फिल्म 'रंगीला', आम लड़की के सपनों के सच होने की कहानी भी करती है बयां

राम गोपाल वर्मा का सिनेमा कमोबेश अंधेरी दुनिया की गिरोहबाजी की कहानियों को सामने लाता है। लेकिन ‘रंगीला’ फिल्म उनकी डार्क फिल्मों से एकदम अलग है। यह एक मध्यवर्गीय लड़की के स्टारडम के सपने देखने और उसके सच होने की कहानी है।

फोटो: सोशल मीडिया
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सुभाष के झा

8 सितंबर, 1995 को दोपहर 12 बजकर 5 मिनट पर एक सितारे का जन्म हुआ। जिस क्षण उर्मिला मातोंडकर ने मनीष मल्होत्रा द्वारा डिजाइन की गई माइक्रोमिनी स्कर्ट में ‘याही रे याही रे जोर लगा के नाची रे’ गुंजायमान किया, उसी क्षण वह एक प्रमाण्य स्टार बन गईं। जाहिर है उन्हें यहां तक पहुंचने में 175 मिनट और लगे। फिल्मों का जादू यह होता है कि वे एक सफल कहानी को उसके शुरू होने से पहले ही बता देते हैं। ‘रंगीला’ फिल्म से पहले उर्मिला मातोंडकर तकरीबन आधा दर्जन महत्वहीन फिल्में कर चुकी थीं। उन्होंने यह कभी सोचा भी नहीं था कि इस फिल्ममें उनका चरित्र बॉक्स ऑफिस पर इतना बड़ा तूफान ले आएगा। इस फिल्म में मिली के रूप में एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की का चरित्र निभाते हुए उर्मिला मातोंडकर ने बॉक्स ऑफिसपर तूफान ला दिया और हर उस परिभाषा को हिला कर रखा दिया जो यह बताती है कि आज की हीरोइन को बॉक्स ऑफिसपर अपने को कैसे प्रस्तुत करना चाहिए। ‘रंगीला’ में उर्मिला मातोंडकर को एक ही नाम से वर्णित किया जा सकता है, बिंदास...

ए.आर. रहमान की मादक धुनों पर आकर्षक तरीके से थिरकती हुई उर्मिला ने स्क्रीन पर आग लगा दी। कथानक को बड़ी चतुराई से परियों की कहानी सरीखा गढ़ा गया था। एक लड़की स्टारडम के सपने देखती है जिसे गली का एक टपोरी लड़का मुन्ना(आमिर खान) दिल ही दिल में बहुत प्यार करता है लेकिन मिली को पूरे देश का दिल धड़काने वाला राज कमल (जैकी श्रॉफ जिन्होंने राजेश खन्ना और कमल हासन के मिले-जुले रूप का किरदार निभाया) बहुत अधिक प्रभावित कर देता है। फिल्म की कहानी ताजा थी, नटखट थी और उसकी कोरियोग्राफी, मूड और टेम्पो में बेपरवाही और मस्ती सपनों जैसी थी। मिली की जिंदगी घर पर इतनी साधारण और जिंदादिल दिखाई गई है जितना रामगोपाल वर्मा ने अपनी बाद की फिल्मों में कभी नहीं दिखाया। बल्कि रामगोपाल वर्मा का सिनेमा लगातार गिरोह बाजी (अपराधी गिरोह) की काली दुनिया के खून से लबालब थीम की ओर झुकाव दर्शाता रहा है। पारिवारिक दृश्यों में मिली के माता-पिता (अच्युत पोद्दार और रीमा लागू) और छोटा भाई जिसका नामन जाने क्यों मोतीलाल था और जो त्वचा के रंग-रूप के कारण परिवार के अन्य लोगों से बिल्कुल अलग था, भी जिंदादिली से परिपूर्ण हैं।

‘रंगीला’ आज भी रामगोपाल वर्मा की सबसे लाइट (हल्की-फुल्की) फिल्म है। इस फिल्म की ऊर्जा का स्रोत बेशक मिली के अशांत और चंचल किरदार को जाता है। मिली के किरदार में मुंबई की हर वो युवा लड़की दिखाई देती है जिसे अपने सपने पाने के लिए परिवार का पुरजोर समर्थन प्राप्त होता है। यहां ‘परिवार’ में पीली पेंट, क्रोशिये की बनियान, ढीठ, जिद्दी और टेड़ी टोपी वाला टपोरी मुन्ना(आमिर खान) भी शामिल है। यहां मुन्ना को गुंडा कहना सच में गलत होगा। वह तो पड़ोस में रहने वाला राउडी राठौर है जो खाकी के सिवाय कुछ भी पहनता है। उन सभी दृश्यों में जहां मुन्ना मिली को अगले दिन की शूटिंग के लिए संवाद याद कराने की प्रैक्टिस करा रहा होता है, वहां मुन्ना की आंखों में मिली के लिए एकतरफा प्रेम नजर आता है।

देखा जाए तो वास्तव में इस फिल्म में आमिर का किरदार शरदचंद्र चटर्जी की देवदास की चंद्रमुखी के जैसा था। जब मिली उसे नहीं देख रही होती है, तो मुन्ना की प्रेम भरी आंखें इस किरदार को स्ट्रीट स्मार्ट लवर बॉय के दर्जे पर बनाए रखती हैं। जब मिली उस दिन लंच के बीच में उठकर सुपर स्टार राज कमल के पास चली जाती है, तो मुन्ना का दर्द इतना जाहिर था कि एक बार तो दिल करता था कि मिली को कांधों से पकड़कर और झिंझोर कर पूछें कि क्या उसे मुन्ना के दिल से छलकता प्यार दिखाई नहीं देता है।

कुल मिलाकर, ‘रंगीला’ का अनुभव अनोखा ही था। यह मुख्य रूप से दिल की इच्छाओं के पूरे होने की कहानी है। लेकिन कोई भी प्रेम कहानी किसी एक दिल के टूटे बिना पूरी नहीं होती। जहां मिली को शोहरत और सफलता मिलती है, मुन्ना को मिली मिलती है, तो वहीं इस दौड़ में राज कमल अपने टूटे दिल के साथ पीछे रह जाते हैं। फिल्म में, जहां एक तरफ गीत और नृत्य बहुत ही प्रेम से भरे हुए और याद रह जाने वाले थे वहीं इस फिल्म में मौजूद फिल्म इंडस्ट्री के सभी चरित्र सुप्रसिद्ध और जाने- माने थे। चाहे वह शराब के नशे में धुत नीरज वोरा हो, जो प्रभावशाली निर्माता बनने का ढोंग करता है और एक पार्टी में मिली को बहुत परेशान करता है, या फिर सनकी डायरेक्टर स्टीवन कपूर (गुलशन ग्रोवर) हो, जो हर छोटी- छोटी बात पर पैकअप की धमकी देता है, या फिर दुनिया जहान के नखरे करने वाली हीरोइन (शैफाली शाह) हो, जिसने निर्माता (अवतार गिल) की नाक में दमकर रखा हो जो अपनी असुरक्षाकी भावना को छिपाने के लिए बार-बार बॉक्सके ऑफिस के आंकड़े बताता हो, या फिर विश्वसनीय पिता समान स्टार सेक्रेटरी (राममोहन) हों।।। ये सभी फिल्म इंडस्ट्रीकी जानी-मानी हस्तियां हैं।

रामगोपाल वर्मा ने बॉलीवुड के पागलपन को एक नई ताजगी के साथ रंक से राजा बनने की गाथा में पिरो दिया। काम-काजी वर्ग की लड़की जो स्टार बनने की महत्वकांक्षा रखती थी, भड़कीले कपड़ों में तो लिपटी रही लेकिन रामगोपाल वर्मा ने कभी भी निचले स्तर के घटियापन का सहारा नहीं लिया। उनका कैमरा कभी जांघों और क्लीवेज पर नहीं मंडराया। फिल्म में लंबी तेज टांगें तो हैं लेकिन जांघें नहीं हैं। ‘रंगीला’ एक बिना मिलावट की मासूमियत का त्योहार है। इसमें मस्ती का भाग प्लॉट पर थोपा नहीं गया था। वह उसतत्व में से निकलकर, जो कि हमें दिन के उजाले में दिखते जिंदगी के कटु सत्य और सपनों जैसी आकांक्षा के बीच का फर्क सुस्पष्ट करता है, कलाकारों के अपने स्वयं के आनंद से उत्पन्न होकर हम तक अबाधित पहुंच रहा था। महत्वपूर्ण है कि मुन्ना उसी थियेटर के बाहर टिकट ब्लैक में बेचता है जिसके पर्दे पर मिली एक स्टार की तरह चमकने की आकांक्षा रखती है। जो सपना ये सितारे पर्दे पर जीते हैं वह अक्सर जिंदगी की सच्चाइयों की रोशनी के सामने धुंधला पड़ जाता है।

‘रंगीला’ फिल्म के बारे में रामगोपाल वर्मा कहते हैं, “मेरे रंगपटल पर कोई भी फिल्म रंगों से या अंधेरे से भरी नहीं होती। यहां तक कि डार्क फिल्मों में भी गाने, रोमांस और हल्के-फुल्के क्षण होते हैं। यह सच है कि मैं उन फिल्मों की तरफ ज्यादा आकर्षित हूं जो ताकत का टकराव दिखाती हैं। लेकिन हर निर्देशक अपनी पसंदीदा फिल्मों को बार-बार बनाता है। मेरी पसंदीदा फिल्में हैं ‘द गॉडफादर’, ‘मैकेन्नाज गोल्ड’, ‘एक्सोर्सिस्ट’, ‘द साउंड ऑफम्यूजिक’ और ‘सिंगिंग इन द रैन’। मैंने ‘शिवा’ और ‘रात’ जैसी कुछ डार्क फिल्में बनाने के बाद ‘रंगीला’ बनाई। लेकिन मैं तेलुगू में भी ‘गोविंदा गोविंदा’ और ‘क्षणा क्षणं’ बना चुका था।”

वह कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि अचानक ही एक रोमांटिक म्यूजिकल शैली की फिल्म बनाने की ओर मेरा रुझान हुआ। ‘रंगीला’, मेरी सबसे पसंदीदा हॉलीवुड फिल्मों में से दो फिल्मों ‘द साउंड ऑफम्यूजिक’ और ‘सिंगिंग इन द रैन’ के प्रति मेरे सम्मान की अभिव्यक्ति थी। इसकी कोरियोग्राफी की प्रेरणा ‘सिंगिंग इन द रैन’ से मिली थी। ‘साउंड ऑफम्यूजिक’ मेरी देखी ऐसी पहली फिल्म थी जिसमें कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं होता। ‘रंगीला’ में मैंने सोच समझकर ही किसी भी प्रकार के नकारात्मक चरित्र को नहीं रखा। उसका आधार वास्तविक परिस्थितियां हैं। उर्मिला (मिली) और उसके परिवार की लाइफ-स्टाइल (जीवन- शैली) दिखाने के लिए यह फिल्म वास्तविक एक मध्यवर्गीय घर में ही शूट की गई थी। जब लोग यह कहते हैं कि‘रंगीला’ में मैंने उर्मिला मातोंडकर का करियर बना दिया, तो मैं इस बात से साफइनकार करता हूं। मैं वही हूं जो इससे पहले उर्मिला के साथ ‘द्रोही’ बना चुका था। उसका क्या हुआ? किसी भी कलाकार के लिए सफलता का अर्थ है सही अवसर प्राप्त होना।

‘द्रोही’ की शूटिंग के दौरान एक गाने के शूट पर कोरियोग्राफर नहीं आया तो मैंने उर्मिला से कहा कि क्या वह खुद ही डांस कर सकती है और वह मान गई। उसने काफी अच्छा काम किया। और तब मैंने उर्मिला के साथ ‘रंगीला’ बनाने का निश्चय किया। आमिर का चरित्र एक गली के गुंडे पर आधारित है जिसे मैं हैदराबाद में जानता था। और इसमें कोई दो राय नहीं है कि वह एक पैशनेट परफॉर्मर हैं। जहां तक फिल्म के संगीत और ए.आर.रहमान का सवाल है तो उनके साथ काम करने के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता है। वह काम को अपनी गति से ही करना पसंद करते हैं। जहां मैं काम को एक दिन पहले करना पसंद करता हूं, वह एक दिन बाद करना पसंद करते हैं। मुझमें इतना सब्र नहीं है। इसीलिए ‘रंगीला’ और ‘दौड़’ के बाद मैंने उनके साथ फिर कभी काम नहीं किया। हां! अगर मैं कभी फिर ‘रंगीला’ शैली की फिल्म बनाऊंगा तो मैं उनके साथ जरूर काम करना चाहूंगा।”

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