फिल्म समीक्षा: बेहद संवेदनशील फिल्म है ‘राज़ी’

फिल्म आलिया भट्ट के किरदार पर ही केन्द्रित है तो ज़ाहिर है उनकी परफॉरमेंस प्रभावशाली है। लेकिन वे जासूस के तौर पर जब-तब अपनी कमजोरी ज़ाहिर करती हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

फिल्म ‘तलवार’ से बतौर निर्देशक अपना सिक्का जमाने के बाद मेघना गुलज़ार एक और संवेदनशील मुद्दे पर फिल्म लेकर आई हैं ‘राज़ी’। फिल्म की कहानी लेफ्टिनेंट कमांडर हरिंदर सिक्का की किताब ‘कालिंग सहमत’ पर आधारित है।

राज़ी 'एक कश्मीरी लड़की सहमत (आलिया भट्ट) की एक असल कहानी है। सहमत के जीवन में अचानक एक बड़ी तब्दीली आती है जब उसके पिता हिदायत खान (रजत कपूर) जो भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी के सदस्य है, उसका विवाह पाकिस्तानी सेना के अधिकारी इकबाल सैयद (विकी कौशल) से कर देते हैं ताकि सहमत पाकिस्तान रह कर भारत के लिए जासूसी कर सके। विवाह होने से पहले वह भारतीय खुफिया एजेंट खालिद मीर (जयदीप अहलावत) की देख-रेख में कठोर ट्रेनिंग भी लेती है।

शादी के बाद सहमत पकिस्तान पंहुच जाती है और धीरे-धीरे इकबाल के परिवार में घुलते मिलते हुए महत्वपूर्ण जानकारी एकत्रित करने में लग जाती हैं और अपने असली मकसद को छुपाती है। एक जासूस के इंसानी रिश्ते कितने जटिल होते हैं और किस तरह वे अपने लगाव को नज़रअंदाज़ कर अपने मकसद के लिए काम करते रहते हैं, यही फिल्म का फोकस है।

देखा जाये तो इतने दिलचस्प और बहुआयामी विषय पर एक बेहद असरदार और इंटेंस फिल्म बन सकती थी, खासकर तब जबकि भारत-पाकिस्तान के बीच एक अटूट सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्ता है। लेकिन फिल्म यहां असफल रही है। बेशक ‘राज़ी’ दिलचस्प तो है लेकिन विषय की सूक्ष्मताओं को उतने प्रभावशाली ढंग से नहीं दिखा पायी। हालांकि यह काबिले-तारीफ़ है कि ऐसे विषय पर केन्द्रित हिंदी फिल्में अमूमन देशभक्ति का बहुत जोर-शोर से प्रचार करती हैं, मगर ‘राज़ी’ इसे बहुत अंडरटोन के साथ पेश करती है।

फिल्म आलिया भट्ट के किरदार पर ही केन्द्रित है तो ज़ाहिर है उनकी परफॉरमेंस प्रभावशाली है। लेकिन वे जासूस के तौर पर जब-तब अपनी कमजोरी ज़ाहिर करती हैं - अगर यही कुछ हल्के और सूक्ष्म तरीके से किया जाता तो शायद ज्यादा असरदार होता। विक्की कौशल ने पाकिस्तानी आर्मी अफसर का किरदार बखूबी निभाया है। जयदीप अहलावत भी अपने रोल में प्रभावशाली रहे हैं।

लेकिन रजत कपूर  और आरिफ ज़कारिया जैसे अन्य और बेहतरीन अभिनेताओं को परदे पर पूरा वक्त ही नहीं मिला है। सोनी राजदान एक अरसे बाद परदे पर दिखाई दीं, लेकिन उनके लिए भी फिल्म में कुछ ख़ास करने को नहीं है।

फिल्म में चार गाने हैं और बेहद उम्दा हैं। 'ऐ वतन' गाने के लिए म्यूजिक डायरेक्टर शंकर-एहसान-लॉय ने गुलजार के साथ काम किया और अरिजीत ने अपनी आवाज़ से इस गाने को खूबसूरत बना दिया। कुल मिला कर फिल्म अच्छी तो है और भारत-पाकिस्तान के अनूठे रिश्तों पर ऐसी फिल्में बननी भी चाहिए लेकिन यह इस विषय से जुड़े बहुत से स्तरों को नहीं छू पाई, जिसकी उम्मीद बतौर निर्देशक मेघना से हो चली थी।

(रौनक सिंह चौहान के इनपुट के साथ)

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