फिल्म समीक्षा: कॉमेडी के नाम पर टोटल बकवास है ‘टोटल धमाल’

‘टोटल धमाल’ देखते हुए दिमाग में बार-बार सवाल आता है कि हमारे जटिल समाज में तमाम भावनाओं और अनुभवों की भरमार होने के बावजूद हम एक सार्थक और सूक्ष्म कॉमेडी फिल्म क्यों नहीं बना पाते? क्या कॉमेडी का अर्थ महज बचकाना सिचुएशन में वाहियात संवादों का घालमेल है?

फोटोः सोशल मीडिया
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प्रगति सक्सेना

ये बहुत अजीब बात है कि हमारे जैसे जटिल समाज में जहां तमाम भावनाओं और अनुभवों की भरमार है, हम एक अच्छी सार्थक और सूक्ष्म कॉमेडी फिल्म नहीं बना पाते। क्या कॉमेडी का मतलब महज बचकाना सिचुएशन में वाहियात संवादों और सतही कहानी का घालमेल ही है? ‘टोटल धमाल’ देखते हुए दिमाग में बार-बार यही ख्याल कौंधते हैं।

एक और विडंबना ये है कि आजकल चाहे कॉमेडी हो, ड्रामा या एक्शन- फिल्मों के सभी भ्रष्ट किरदार भ्रष्टाचार के बारे में हिकारत से बात करते नजर आते हैं, लेकिन साथ ही भ्रष्टाचार करते भी रहते हैं!

पहली धमाल जो हॉलीवुड की ‘इट्स अ मैड मैड मैड वर्ल्ड’ पर आधारित थी एक गुदगुदाती हुई अब्सर्ड कॉमेडी थी, जिसके कुछ कॉमिक सीक्वेंस तो हॉलीवुड की फिल्म से लिए गए थे लेकिन कुछ बेहद हास्यप्रद सीक्वेंस बहुत देसी और ओरिजिनल भी थे। यही वजह है कि वो फिल्म आज भी हर उम्र के लोगों की एक पसंदीदा फिल्म है।

लेकिन ‘टोटल धमाल’, जो पहली और दूसरी धमाल फिल्म की तीसरी कड़ी है, कतई थकी हुई कॉमेडी है। कहानी बेशक फिर वही है। पचास करोड़ रुपये एक चिड़ियाघर में छिपे हुए हैं और विभिन्न तरीके के किरदार इन पैसों की फिराक में तमाम हालातों से गुजरते हैं जो कथित तौर पर हास्यास्पद हैं और एक हद के बाद चिड़चिड़ाहट पैदा करने लगते हैं।

हालांकि फिल्म में बहुत दिनों के बाद जॉनी लीवर को एक बंगाली हेलीकॉप्टर चालक के किरदार में देखना अच्छा लगता है। फिल्म के एक कलाकार विजय पाटकर एक मंझे हुए मराठी थिएटर के कलाकार हैं और उनकी कॉमेडी टाइमिंग गजब की है। पहली ‘धमाल’ में भी उन्होंने एक छोटा सा, लेकिन अद्भुत किरदार निभाया था। उन्हें और फिल्में भी करनी चाहिए।

फिल्म में महेश मांजरेकर भी एक छोटे से रोल में हैं और असरदार हैं। अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित की पुरानी हिट रोमांटिक जोड़ी इस फिल्म में लगातार झगड़ते हुए मियां-बीवी के रोल में हैं और कहीं-कहीं हंसाते भी हैं लेकिन ज्यादातर नकली और सतही लगते हैं।

एकबारगी सोचने पर तो लगता है कि इन तमाम कलाकारों में सबसे अच्छी परफॉरमेंस तो चिड़ियाघर के जानवरों की है, जो बेशक ज्यादातर स्पेशल इफेक्ट्स की बदौलत है।

फिल्म में प्रधानमंत्री मोदी और उनके गुजराती मूल के होना का महिमामंडन करते संवाद भी हैं जो फिल्म को और भी बोझिल बना जाते हैं (अब ये सिर्फ भगवान ही जानता है कि आखिरकार बॉलीवुड पीएम मोदी और भगवा रंग के प्रति इतना नतमस्तक क्यों है? या सीधे शब्दों में कहें तो इतना डरा हुआ क्यों है?)।

बहरहाल, फिल्म के बारे में फिल्म के ही एक संवाद को हल्का सा तब्दील करके बताया जा सकता है- “ये हम जानते हैं कि फिल्म ‘थकेली’ है, ये फिल्म निर्माता जानता है कि फिल्म ‘थकेली’ है पर ऑडियंस थोड़े ही जानती है कि फिल्म ‘थकेली’ है!”

सो, अगर आप अपने बच्चों को कहीं-कहीं हल्की खिलखिलाहट के लिए फिल्म दिखाना चाहते हैं तो जरूर देखें ये फिल्म, वरना इस ‘धमाल’ से ‘टोटली’ दूर रहें तो बेहतर!

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