‘अर्थ’ से ‘लुका छुपी’ तक ‘लिव इन’ की फिल्मी यात्रा

फिल्म समीक्षक ‘अर्थ’ को ही लिव इन पर पहली फिल्म मानते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि 1965 में विजय आनंद द्वारा निर्मित ‘गाइड’ पहली ऐसी फिल्म मानी जानी चाहिए जिसमें शादी शुदा रोजी (वहीदा रहमान) अपनी शादी से दुखी होकर राजू गाइड (देव आनंद) के साथ रहने लगती है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

साल 1982 की महेश भट्ट निर्मित‘अर्थ’ ने शुरू में उनकी अपनी और परवीन बाबी की लव स्टोरी होने के कारण दर्शकों को आकर्षित किया, पर एक बार थिएटर में घुसने के बाद लोग फिल्म में ऐसा खोए कि वे फिल्म के अंतिम सीन में खड़े होकर ताली बजाए बिना नहीं रह सके। अपने समय से बहुत आगे बनी फिल्म के आखिरी सीन में एक पति जब अपनी पत्नी के पास वापस आकर उसके साथ रहने की इजाजत मांगता है, तो वह कहती है अगर मैं भी ऐसे ही किसी के साथ रहकर वापस आती तो आप मुझे स्वीकार करते, तो वह बड़ी ईमानदारी से जवाब देता है, नहीं। इस पर वह कहती है मेरा जवाब आप समझ गए। मतलब साफ था।

दर्शकों की पूरी सहानुभूति इन्दर मल्होत्रा (कुलभूषण खरबंदा) की पत्नी पूजा (शबाना आजमी) के साथ थी, जो कविता सान्याल (स्मिता पाटिल) के दीवाने हैं। फिल्म का शायद सबसे जबरदस्त सीन वह है जहां कविता सान्याल शिकायत करती है कि पूजा उसके सपने में आती है, उसके मंगल सूत्र के बिखरे मोती टूटकर उसके पैरों में चुभ रहे हैं।

फिल्म में शबाना और स्मिता दोनों का जबरदस्त रोल है, लेकिन फिल्म शादी की संस्था को मजबूत करती है और लिव इन रिश्ते को गलत मानती है। यह बात अलग है कि वो अपने शर्तों पर जीना चाहती है। मुझे याद है जब मैं प्लाजा में यह फिल्म देख रहा था, तो जैसे ही कुलभूषण आकर शबाना से अपनी घर वापसी की बात शुरू करता है, हॉल के एक कोने से आवाज आई “धोबी का कुत्ता” और दर्शकों के ठहाकों ने शबाना के जवाब पर अपनी मुहर लगा दी और शबाना आधुनिक और सशक्त महिलाओं की प्रतिनिधि बन गई।

2019 की फिल्म ‘लुका छुपी’ में रिपोर्टर बनी कृति मथुरा में एक विधवा से पूछती है, “क्या दो लोगों को शादी से पहले एक दूसरे को जानने के लिए साथ रहना चाहिए और वह बिंदास जवाब देती है- “यह तो बहुत अच्छी बात है। अगर मैं अपने पति को पहले से जान लेती तो उस शराबी से कभी शादी नहीं करती। वह तो मर गया और मुझे यहां भीख मांगने के लिए छोड़ गया। ‘लुका-छुपी’ में लड़की (कृति सनोन) खुद लिव इन में रहना चाहती है और पहली ही रात में अपने पार्टनर कार्तिक आर्यन से पूछती है “प्रोटेक्शन है ना”। लेकिन यह लड़की भी बिन शादी के अपने को अधूरा समझती है। लिव इन को कॉमेडी के रूप में प्रस्तुत करने वाली यह फिल्म सिर्फ इस रिश्ते को शादी की स्वीकार्यता देने की दौड़ है, जिसे पूरे-पूरे परिवार आकर देख रहे हैं।

‘सलाम नमस्ते’ (2005) सैफ अली खान और प्रीति जिंटा कि यह फिल्म शायद हिंदी की पहली ठीक-ठाक लिव इन रिलेशनशिप पर आधारित फिल्म है, जिसमें इस रिश्ते को बहुत गहराई और गंभीरता से समझाया गया है। ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले दो नए विचारों का एक जोड़ा शादी के बिना साथ रहना एक नार्मल बात समझता है, दोनों नौकरी करते हैं इसलिए उन पर कोई आर्थिक मजबूरी नहीं है और उनके साथ रहने का कारण सिर्फ प्यार है। समस्या तब आती है जब प्रीति जिंटा गर्भवती हो जाती है। सैफ को बच्चा नहीं चाहिए पर प्रीति के लिए बच्चा गिराने का सवाल ही नहीं उठता। उसकी मां बनने की आकांक्षा उसे हालात से लड़ने की हिम्मत देती है। अंत में सैफ भी उससे शादी करने को तैयार हो जाता है, जैसा की हिंदी सिनेमा में अंत में होता है।

फिल्म समीक्षक ‘अर्थ’ को ही लिव इन पर पहली फिल्म मानते हैं, लेकिन मेरे हिसाब से 1965 में विजय आनंद द्वारा निर्मित ‘गाइड’ पहली ऐसी फिल्म मानी जानी चाहिए जिसमें शादी शुदा रोजी (वहीदा रहमान) अपनी शादी से दुखी होकर राजू गाइड (देव आनंद) के साथ रहने लगती है। पूरी फिल्म में वह अपने इस रिश्ते को कभी गलत नहीं मानती, बल्कि ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ जैसा सदाबहार गाना गाकर अपनी खुशी का इजहार करती है।

इधर, कुछ वर्षों में हिंदी सिनेमा में इस विषय पर फिल्मों की भरमार हो गई है, जिसमें ‘बचना ऐ हसीनों’, ‘फैशन’, ‘प्यार का पंचनामा, ‘आशिक़ी2, ‘शुद्धदेसी रोमांस’ जैसी फिल्में सामने आईं, लेकिन जैसा इनके नाम से पता चलता है फिल्म निर्माताओं ने ऐसी फिल्मों को रोमांस और मौज-मस्ती से अधिक कुछ नहीं समझा।

लेकिन भारत में लिव इन गंभीर विषय है। इस पर देशभर में एक भयंकर बहस 2005 में शुरू हुई जब दक्षिण की मशहूर हीरोइन खुशबू ने इंडिया टुडे में एक इंटरव्यू में कह दिया कि भारत में बहुत से लोग लिव इन में रहते हैं और इसमें कुछ गलत नहीं है, बशर्ते कि वे प्रोटेक्शन लेते हों। उनके इस बयान का पूरे तमिलनाडु में इतना विरोध हुआ की उनके ऊपर एक साथ 22 न्यायालयों में मुकदमे चलने लगे।

मद्रास हाई कोर्ट ने सारे मामलों को एक जगह कर खुशबू पर भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुए मुकदमा करने का आदेश दे दिया। जज ने यहां तक कहा की खुशबू एक आठवीं पास लड़की हैं और उसे भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ नहीं मालूम। इस फैसले से राहत के लिए खुशबू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उसका मुकदमा वकील और बीजेपी नेता पिंकी आनंद ने लड़ा (जो आज भारत की एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हैं)।

इस केस में 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा की अगर दो वयस्क लोग साथ-साथ रहना चाहते हैं, तो किसी को इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस केस के बारे में एक पुस्तक में पिंकी आनंद ने लिखा है, “मैं खुशबू का पक्ष इसलिए नहीं ले रही थी की मैं लिव को सही मानती हूं। मेरे विचार से यह ठीक नहीं है, लेकिन मैं खुशबू के अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए उसका समर्थन कर रही थी, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (ए) अंतर्गत उसको प्राप्त है।

पिछले कुछ वर्षों से लिव इन के और बहुत से ‘साइड इफेक्ट’ समाज में उजागर हुए हैं, जिन पर बॉलीवुड का इतना ध्यान नहीं गया है। 2015 में एनजीओ ‘प्रयास’ के सभागार में निर्भया की याद में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें दिल्ली के बड़े पुलिस अधिकारी उपस्थित थे। एनजीओ द्वारा उन पर यौन उत्पीड़न के केस रजिस्टर न करने के आरोप लगाए जा रहे थे। काफी देर चुप रहने के बाद एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि इसमें उनकी गलती नहीं है, क्योंकि दिल्ली में 60 प्रतिशत फर्जी केस आते हैं और इन मामलों के चक्कर में असली केस कभी-कभी छूट जाते हैं।

उन्होंने कहा, “हमारे पास अधिकतर केस ऐसी महिलाओं द्वारा किए जाते हैं जो अपनी मर्जी से अपने पार्टनर के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए सालों रहती हैं, लेकिन जब उनका पार्टनर शादी से इंकार कर देता है तो वे उस पर बलात्कार का आरोप लगा देती हैं।” सभागार में बैठे सभी लोगों ने माना कि उन्हें भी ऐसे मामलों के बारे में पता चला है, लेकिन सभी का पुलिस से आग्रह था कि कुछ फर्जी मामलों की वजह से वह ऐसे गंभीर आरोपों को नजरअंदाज नहीं कर सकते और उन्हें हर केस की तहकीकात करनी चाहिए।

लिव इन केवल एक रोमांटिक जज्बा नहीं है, बल्कि इससे होने वाले दूरगामी परिणामों से महिलाओं और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है। शारीरिक दुर्व्यवहार अर्थात शारीरिक पीड़ा, अपहानिया जीवन या अंग या स्वास्थ्य को खतरा या लैगिंक दुर्व्यवहार अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना या अतिक्रमण करना या मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार अर्थात अपमान, उपहास, गाली देना या आर्थिक दुर्व्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना, मानसिक रूप से परेशान करना ये सभी घरेलू हिंसा कहलाते हैं।

(नवजीवन के लिए अमिताभ श्रीवास्तव का लेख)

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