पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के संघर्ष की अनूठी कहानी है गुलज़ार की 'नमकीन'

गुलजार साहब की फिल्म ‘नमकीन’ भले ही बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही हो लेकिन यह बार-बार याद रहने वाला बहुत ही उत्कृष्ट सिनेमा का हिस्सा है। यह निश्चित रूप से कमजोर फिल्म नहीं थी। वास्तव में ‘नमकीन’ में महिला चरित्रों की एक भव्य झांकी है। ‘नमकीन’ स्त्री के कड़वे और मीठे मनोभावों को प्रस्तुत करती है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

सुभाष के झा

शायद टाइमिंग गलत थी। या जैसा कि मुन्नभाई कहेंगे, “इसका तो गुड लक ही खराब था।” लेकिन गुलजार की फिल्म‘नमकीन’ और उसकी ओस के बूंद-जैसी कोमलता जो अपने भाव में सम्मोहक लचीलापन लिए हुए, अपनी नाजुकता में फूलों के समान लदी हुई और अपनी मजबूती में दृढ़ता लिए हुई थी, वह बॉक्स ऑफिस पर अनुकूल सकारात्मक प्रतिक्रिया हासिल करने में असफल रही। यह फिल्म उस वर्ष प्रदर्शित हुई थी जब अमिताभ बच्चन अपनी फिल्मों- ‘नमकहलाल’, ‘खुद्दार’ और ‘शक्ति’ के साथ पूरे बॉक्स ऑफिस पर छाए हुए थे।

1982 का यह वही साल था जब महिला प्रधान फिल्मों- ‘निकाह’ और ‘प्रेमरोग’ ने अच्छा प्रदर्शन किया था। दुर्भाग्य से ‘नमकीन’ इन दो सफल महिला प्रधान फिल्मों में अपनी तिकड़ी बनाने में असफल रही। गुलजार साहब को यह फिल्म बहुत प्रिय है- यह उस बच्चे का पक्ष लेने-जैसा है जो पढ़ाई में थोड़ा-सा कमजोर है। लेकिन ‘नमकीन’, निश्चित रूप से, कमजोर फिल्म नहीं है। यह बार-बार याद रहने वाला बहुत ही उत्कृष्ट सिनेमा का हिस्सा है जो सामने आने वाले चरित्रों की जिंदगियों पर परत-दर-परत और चमक दार तरीके से लंबा प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है। वास्तव में ‘नमकीन’ में महिला चरित्रों की एक भव्य झांकी है जो अपने रहस्य में बहुत उत्कृष्ट हैं।

बहुत ही खूबसूरत सुंदरता जो एक महिला के दिल से बहुत गहरे से उतरकर सामने आती है। वर्षों पहले, मुझे याद है कि ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म‘अनुपमा’ के बारे में दावा किया गया था कि यह एक महिला के दिल के भीतर झांकती है। आप ‘नमकीन’ देखिए, और आप जान जाएंगे कि गुलजार बिमल रॉय और ऋषिकेश मुखर्जी के सबसे ज्यादा काबिल शिष्य हैं। ‘नमकीन’ न केवल महिलाओं के परित्यक्त परिवार के भीतर झांकती है बल्कि मानवीय स्थितियों को भी चित्रित करती है।

यह फिल्म हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों में फिल्माई गई थी। हमारे ट्रकड्राइवर नायक(संजीव कुमार) के साथ हम सीधे एकजीर्ण- शीर्णमातृ सत्ता की प्रतीक बूढ़ी स्त्री अम्मा(वहीदा रहमान) और उनकी तीन बेटियों- निमकी (शर्मिला टैगोर), मिट्ठू (शबाना आजमी) और चिंकी (किरण वैराले) के घर पहुंचते हैं। गुलजार ने कभी न भूलने वाले महिलाओं के इस घर को बहुत ही मामूली धूम धड़ाके के साथ प्रस्तुत किया है। जब अम्मा गोरेलाल (संजीव कुमार) को किराये पर अपने घर में जगह देती है तो हमें उस घर की लड़कियों के अलग-अलग चरित्रों, उनकी भाव-भंगिमा (बॉडी लैंग्वेज) और उनके चेहरे के हाव-भाव को बहुत ही करीब से जानने का अवसर मिलता है। हमें जल्दी ही पता चल जाता है कि चिंकी थोड़ी शरारती है लेकिन अपने परिवार की आर्थिक समस्याओं से अनजान नहीं है।

‘नमकीन’ स्त्री के कड़वे और मीठे मनोभावों को प्रस्तुत करती है। यह एक आवेग से भरी हुई नाटकीय कहानी है जिसमें हर प्रमुख पात्रको अपने सामर्थ्य से भी अधिक भावनात्मक उथल-पुथल से जूझना पड़ता है। गुलजार सब कुछ ठहरा हुआ और शांत रखते हैं। कथानक पर कभी भी भावनाओं का अतिरेक हावी नहीं होता, चाहे किरदार टूट कर बिखरने के कगार पर ही क्यों न हों। अम्मा(वहीदा रहमान) बदहाल स्थिति में भी बहुत शानदार लगती हैं। हम अतीत में दाखिल होकर उन्हें एक मुजरा करते हुए देखते हैं। वहीदा रहमान ने इस मुजरे का अभिनय 48 वर्ष की उम्र में किया था और इसके बावजूद उनके चेहरे पर आने वाले भाव इतने बारीक और सटीक थे कि उन्होंने आशा भोसले की आवाज में गाए गए गीत ‘बड़ीदेर से मेघा बरसा हो रामा जली कितनी रतियां’ के साथ पूरा न्याय किया।

‘नमकीन’ में दुख और खीज से भरी हुई जिंदगी के बावजूद अम्मा और उनकी तीनों बेटियों के संबंध बहुत गहरे और पुष्ट होते हैं। मिट्ठू (शबाना आजमी) इस त्यागे हुए परिवार में एक खामोश संवेदनशील कवियत्री है। वह अपने ही सपनों के संसार में रहती है जिसमें यह उम्मीद बनी रहती है कि एकदिन एक खूबसूरत राजकुमार आएगा और उससे इस अपमानजनक जीवन से बाहर निकालकर ले जाएगा। जब मिट्ठू ‘फिर से अइयो बदरा बिदेसी’ गाना गाती है तो हिमाचल की सपनों सरीखी खूबसूरती हमारे सामने आती है जिसमें पीड़ा, गुस्सा, हताशा और कड़वाहट पीछे छूट जाती है। और हमारे सामने जो बचा रहता है, वह है जादुई रहस्यमय आकर्षण। बड़ी लड़की निमकी (शर्मिला टैगोर) ज्यादा व्यवहारिक है।

वह मुक्ति की उम्मीद नहीं करती। और ट्रक ड्राइवर जो महिलाओं की जिंदगी में आता है जब वह निमकी का हाथ पकड़ना चाहता है तो निमकी बड़ी विनम्रता से उसके प्रस्ताव को ठुकरा देती है। उसकी जिंदगी अपनी मां और बहनों के साथ ही है और उसके पास वैकल्पिक सच्चाई के लिए कोई जगह नहीं है। सबसे छोटी लड़की चिंकी साहसी महिलाओं के इस परिवार में सबसे कमजोर कड़ी है। वह परिवार की पहली सदस्य है जो परिवार का साथ छोड़ती है और लाचारी और गरीबी के जीवन के बजाय बदनामी का जीवन चुनती है। सालों बाद गेरुलाल जब उससे टकराता है तो वह उसकी ओर मदद का हाथ बढ़ाता है लेकिन चिंकी उसे ठुकराकर तेजी से पीछे हट जाती है।

गुलजार दिल के टूटने की इस उदासीन कहानी को हंसी-मजाक के छोटे-छोटे टुकड़ों के साथ गूंथते हैं और ये सभी गेरुलाल के इर्द-गिर्दउस वक्त बुने गए जब वह चंचल महिलाओं से भरे इस अप्रत्याशित घर में मेलजोल बढ़ाने की कोशिश करता है। एक ऐसे पुरुष सत्तात्मक समाज की संस्कृति में जहां महिलाओं को अपना मान- सम्मान बचाने के लिए नित नई चुनौतियों में झोंक दिया जाता है, वहीं गेरुलाल घर में मौजूद हर महिला के साथ अपनी एकअलग छविबनाने का प्रयास करता है, वह सराहनीय है।

अम्मा की तीनों बेटियों के साथ कुछ भी बहुत बुरा नहीं होता। हां! चिंकी घर से भाग जाती है और अपने भगोड़े बाप की नौटंकी कंपनी में शामिल हो जाती है। इस कहानी में गेरुलाल लौटता है ताकि वह निमकी को अपने साथ अपने समाज में ले जा सके। और यही पूरी कहानी को एकऐसा सुंदर खुशनुना अंत देता है जो हमसब को नागवार नहीं होगा। ‘नमकीन’ के बारे में गुलजार साहब कहते हैं, “समरेश बसु मेरे पसंदीदा लेखक हैं। मैंने उनका सारा काममूल बांग्लामें पढ़ाऔर इसलिए मैं उनकी स्टोरी की बारीकी से परिचित था जो अनुवाद में कहीं गुम हो जाता है। ‘नमकीन’ उनकी लिखी कहानी पर आधारित थी जो मुझे उसी समय से पसंद थी जब मैंने उसे पढ़ा था।

मेरे लिए ‘नमकीन’ का सबसे बेहतरीन हिस्सा वे चार महिलाएं थीं जिनमें एक विवाह की उम्र पार कर चुकी है, दूसरी शादी की उम्र की है और तीसरी विवाह की उम्र की ओर बढ़ रही है। और उनकी मां जो उनकी चिंता में मरी जा रही है। मैंने अपनी फिल्म में उस बूढ़ी मां के भय को रेखांकित किया। और महिलाएं जिस तरह से उस पुरुष के साथ जुड़ी रहती हैं जो उनके जीवन में आता है... जल्दी ही वह उनके लिए मात्र एक किराए दार नहीं रह जाता बल्कि उनकी मदद का एक आधार बन जाता है।” फिल्म में अभिनेत्रियों के चयन के बारे में वह कहते हैं कि यह कोई मुश्किल नहीं था। यदि आप उन्हें एक अच्छी भूमिका का प्रस्ताव देते हैं तो वे क्यों मना करेंगी? सभी ने बेहतरीन अभिनय किया है। हां, किरण वैराले जया भादुड़ी की याद दिला रही थीं।

गुलजार साहब आगे कहते हैं, “जहां तक संजीव कुमार का सवाल था तो वह हमेशा ही मेरी पहली पसंद रहे। मेरे सिनेमा में दो चीजें स्थायी थीं- संजीव कुमार और आर.डी. बर्मन। मुझे उन दोनों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। पंचम(आरडी बर्मन) बहुत ही विशिष्ट संगीतकार और बहुमुखी प्रतिभा वाले इंसान थे। मेरे साथ उन्होंने जो कामकिया, वह एकदम अलग किस्म का था।... मैं उनसे बस केवल इतना ही कहता था कि क्या जरूरी है। मैं आपको ‘नमकीन’ से एक उदाहरण देता हूं। मैं और पंचम‘फिर से अइयो बदरा बिदेसी’ गीत पर काम कर रहे थे। इस गाने में कुछ छूट-सा रहा था। उन्हें महसूस हुआ कि इस गाने में एकऔर लाइन की जरूरत है। फिर हमने इसमें ‘तुझे मेरी काली कमली वाली की सो’ पंक्ति जोड़ी।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia