सिनेजीवनः मनोज कुमार ने हर दशक में दी यादगार फिल्में और सलमान खान से सुभाष घई तक, शोक में डूबा बॉलीवुड

मनोज कुमार ने पहली फिल्म में एक भिखारी का किरदार निभाया था, लंबे समय तक कड़ी मेहनत के बाद वह एक सितारे के रूप में उभरने में कामयाब हुए और लंबा सिनेमाई सफर तय किया। अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह ने बताया कि शबाना आजमी ने उन्हें एक्टिंग की टिप दी थी।

मनोज कुमार ने हर दशक में दी यादगार फिल्में और सलमान खान से सुभाष घई तक, शोक में डूबा बॉलीवुड
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नवजीवन डेस्क

मनोज कुमार ने हर दशक में दी यादगार फिल्में

87 साल की उम्र में पीढ़ियों को अपने अभिनय से मुत्तासिर करने वाला अदाकार छोड़ कर चला गया और पीछे सौंप गया वो विरासत जिस पर उसकी फिल्मी बिरादरी को ही नहीं, पूरे भारत को गर्व है। शाहकार ऐसा जो 'पूरब' से निकल कर 'पश्चिम' के लंदन तक गूंजा। विरले ही होता है कि कोई कलाकार आए और सिल्वर स्क्रीन पर एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन दशकों तक लगातार ऐसी फिल्में दे जो वर्षों तक दिलो-दिमाग को कुरेदती रही। हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी ऐसी ही शख्सियत का नाम था। गोस्वामी दिलीप कुमार के जबर फैन थे। एक फिल्म देखी जिसमें दिलीप के किरदार का नाम मनोज था, फिर क्या था, अपना नाम मनोज रख लिया। देशभक्ति रगो में समाई थी, इसलिए मां भारती को समर्पित एक से बढ़कर एक फिल्म बनाई, लोगों ने प्यार से 'भारत कुमार' पुकारना शुरू कर दिया। उन्हें अपने देश और इसकी संस्कृति पर बड़ा नाज था, और यह झलक उनकी फिल्मों में भी दिखी।

फिल्मी सफर 1957 में फिल्म 'फैशन' से शुरू हुआ, जो 80 के दशक तक कायम रहा। कुछ ऐसे चलचित्र थे जिन्होंने मनोज कुमार के बहुआयामी व्यक्तित्व से सीधा साक्षात्कार कराया। 1960 से 1980 के दशक तक 7 फिल्मों में निभाए किरदार अब भी लोगों के जेहन में खुरच कर लिखे जा चुके हैं। बात उन सात फिल्मों की जो ट्रेंडसेटर भी थीं, सुपरहिट भी और मर्मस्पर्शी भी। चॉकलेटी हीरो की इमेज को तोड़ती फिल्म थी शहीद, जो 1965 में रिलीज हुई। कौन भूल सकता है भगत सिंह का वो कालजयी किरदार। ये फिल्म आजादी के बेखौफ परवानों की कहानी कहती थी। 60 के दशक में दो फिल्में आईं और दोनों ने कामयाबी की नई इबारत लिखी। एक थी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मनुहार पर बनी उपकार (1967) और दूसरी थी प्योर लव स्टोरी 'पत्थर के सनम'। उपकार एक कल्ट फिल्म रही। गुलशन बावरा का गीत 'मेरे देश की धरती' उस दौर में भी हिट था और आज की जेन अल्फा भी इसे उतनी ही शिद्दत से जीती है, और ये इसलिए हो पाया क्योंकि इस फिल्म को मनोज कुमार ने बड़े मनोयोग से रचा था। शास्त्री जी के 'जय जवान जय किसान' का नारा फिल्म का आधार था।

1967 में ही पत्थर के सनम पर्दे पर आई। दो हसीनाओं के बीच जूझते एक शख्स राजेश की कहानी थी। 'राजेश' उपकार के 'भारत' से बिल्कुल अलग था। इस फिल्म को भी काफी पसंद किया गया। इसके बाद 1970 में रिलीज हुई 'पूरब और पश्चिम'। भारतीय सिने इतिहास की पहली फिल्म जिसका विषय एनआरआई यानी नॉन रेसिडेंट इंडियंस थे। एक पिता का दर्द जो कमाई के चक्कर में विदेश तो चला गया, लेकिन वहां अपनी बेटी में आए बदलाव को सहन नहीं कर पा रहा है। उस दर्द को बखूबी बयां किया गया। ये भी सुपरहिट फिल्म रही। इंदीवर का लिखा गीत 'प्रीत जहां की रीत सदा' उस दौर के हिट गीतों की लिस्ट में शुमार हुआ। फिर आई शोर। 1972 में रिलीज फिल्म ने खामोशी से कामयाबी का शोर मचा दिया। पिता-पुत्र के रिश्तों को बुनती फिल्म ने लोगों को हंसाया तो रुलाया भी खूब। ये उस साल की सुपरहिट मूवी रही।

1974 की रोटी, कपड़ा और मकान समाज के ठेकेदारों के मुंह पर तमाचा जड़ती थी और सत्ता में बैठे रसूखदारों के कानों तक देश के युवा और मध्यम वर्ग की दुश्वारियां पहुंचाती थी। मल्टीस्टारर फिल्म को खूब पसंद किया गया। इसके गाने भी जोरदार थे। 1981 में आई 'क्रांति' ने एक बार फिर मनोज कुमार का दम दुनिया को दिखाया। सितारों से भरी फिल्म में देश के लिए कुर्बान होने का जज्बा लोगों को खूब भाया। 'क्रांति' भी एक सुपरहिट फिल्म साबित हुई। मनोज कुमार ने 3 दशक तक फैन बेस को बनाए रखना। हर तबके तक अपनी बात पहुंचाना यही खासियत थी उनकी। मिट्टी से प्यार, संस्कृति पर गर्व और बड़ों का आदर-सम्मान करने का पाठ भी इस कलाकार ने अपनी अद्भुत शैली से सबके सिखाया। मुंह पर हाथ फेरकर, झुककर झटके से कनखियों से देखना एक स्टाइल बन गया, जिसकी नकल उतार कइयों ने कामयाबी बटोरी।

सलमान खान से सुभाष घई तक, शोक में डूबा बॉलीवुड

अभिनेता मनोज कुमार 87 वर्ष की आयु में शुक्रवार को इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके निधन से फिल्म जगत के साथ ही राजनीतिक जगत भी गमजदा है। सलमान खान, संजय दत्त और रणवीर सिंह समेत फिल्म इंडस्ट्री के तमाम सितारों ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि जब भी भारतीय सिनेमा का जिक्र होगा वह हमेशा याद किए जाएंगे। अभिनेता सलमान खान ने एक्स हैंडल पर पोस्ट शेयर कर लिखा, “मनोज कुमार जी... एक सच्चे लीजेंड। आपने कभी न भूल पाने वाली फिल्में और यादें दीं। इसके लिए धन्यवाद...।” सुभाष घई ने लिखा, “अलविदा मनोज जी। भारत के ग्रेट फिल्म निर्माता जिन्होंने अपनी कविता, गीत, ड्रामा, बेहतरीन शिल्पकला और सिनेमा के माध्यम से देशभक्ति से भरी फिल्मों का निर्माण किया। हमारी जेनरेशन में हम उनके प्रशंसक हैं और उनकी देशभक्ति और सिनेमाई अभिव्यक्ति की भावना की प्रशंसा करते हैं। मैंने व्यक्तिगत रूप से एक फिल्म निर्माता और व्यक्ति दोनों के रूप में उनसे बहुत कुछ सीखा है। मैं यह नहीं भूल सकता कि कैसे वह हमेशा मेरी फिल्में देखने के बाद मुझे प्रेरित करते थे। न केवल मैं, बल्कि पूरा देश आपको याद करेगा।“

अभिनेता मनोज कुमार के निधन से आहत संजय दत्त ने इंस्टाग्राम के स्टोरीज सेक्शन पर उनकी एक तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा, “मनोज सर, आप हमेशा याद आएंगे।“ इंस्टाग्राम पर मनोज कुमार की एक तस्वीर शेयर कर रणवीर सिंह ने भावनाएं व्यक्त कीं। वहीं, ईशा देओल ने लिखा, “मनोज जी के निधन की खबर सुनकर दुख हुआ। आपकी आत्मा को शांति मिले। शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदनाएं।“ रवि किशन ने कहा, “भारत की बात सुनाता हूं... मनोज कुमार के निधन की खबर से बहुत दुख हुआ। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं। भारत उनके अंदर कूट-कूट कर भरा था। उनके अंदर अद्भुत शक्ति थी। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। उनके निधन से हुई क्षति को कभी पूरा नहीं किया जा सकता है।“ भूमि पेडनेकर ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर कर लिखा, “मनोज जी के परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं।“

पूनम ढिल्लों ने बताया कि मनोज कुमार ने सबको सिखाया कि सार्थक फिल्में कैसे बनाई जाती हैं। उन्होंने कहा, "हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि मनोज जी प्रेरणादायी और महत्वाकांक्षी दोनों थे - हर कोई उनके जैसा निर्देशक बनना चाहता है। उन्होंने न केवल सफलता हासिल की, बल्कि साफ-सुथरी और सार्थक फिल्में बनाने का उदाहरण भी पेश किया। मुझे लगता है कि जब देशभक्ति की फिल्मों की बात आती है, तो उन्होंने वाकई सबको दिखाया कि अपने देश के प्रति प्रेम की भावना को कैसे प्रेरित किया जाए।" अभिनेत्री काजोल ने ‘क्रांति’, ‘पत्थर के सनम’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ फिल्म का जिक्र करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, "उनकी फिल्में सिर्फ फिल्में ही नहीं थीं, वे भावनाएं थीं, वे प्रेरणा थीं। आप हमेशा याद किए जाएंगे।"


मनोज कुमार: भिखारी के किरदार से शुरू हुआ फिल्मी सफर

निर्माता-निर्देशक और अभिनेता मनोज कुमार फिल्म जगत का एक ऐसा सूर्य हैं, जो कभी अस्त नहीं हो सकता। अपने कमाल के अभिनय से वह दर्शकों के दिलों में ताउम्र सांस लेते रहेंगे। उनकी पहचान देशभक्ति से भरी फिल्मों को लेकर थी। हालांकि, पहली फिल्म में उन्होंने एक भिखारी का किरदार निभाया था, लंबे समय तक कड़ी मेहनत के बाद वह एक सितारे के रूप में उभरने में कामयाब हुए और लंबा सिनेमाई सफर तय किया। मनोज कुमार के फिल्मी करियर पर यहां डालिए एक नजर... मनोज कुमार की पहली फिल्म साल 1957 में आई ‘फैशन’ थी, खास बात है उस वक्त उनकी उम्र महज 19 वर्ष की थी। उन्होंने 19 की उम्र में 90 साल के भिखारी का किरदार निभाया था।

9 अक्तूबर 1956 को फिल्मों में हीरो बनने का सपना लिए 19 वर्ष के मनोज कुमार मुंबई आए। उन्हें पहली फिल्म ‘फैशन’ में मौका भी मिला। हालांकि, अभी उनकी परीक्षा बाकी थी। फैशन के बाद उन्होंने कुछ और फिल्में कीं, मगर मेहनत और कला होने के बावजूद वह पहचान से मरहूम रहे। उनका शुरुआती दौर मुश्किल भरा था। उन्हें मीना कुमारी जैसे बड़े कलाकारों के साथ बस छोटा काम मिलता था और वह गुमनामी में ही थे। मनोज कुमार का सिक्का चलना शुरू हुआ साल 1961 में आई फिल्म 'कांच की गुड़िया' से जिसमें उन्हें मुख्य भूमिका के लिए मौका मिला। इसके बाद मनोज कुमार की गाड़ी चल पड़ी और वे कभी पीछे मुड़कर नहीं दिखे। विजय भट्ट की फिल्म 'हरियाली और रास्ता' आई, 1962 में बनी फिल्म का निर्देशन और निर्माण विजय भट्ट ने किया है। इसमें मनोज कुमार के साथ माला सिन्हा मुख्य भूमिका में थीं।

करीब 40 साल के लंबे फिल्मी करियर में मनोज कुमार ने अभिनय के हर हिस्से को छुआ। उनकी फिल्मों की खासियत थी कि लोग आसानी से जुड़ाव महसूस करते थे। ‘कांच की गुड़िया’ के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ‘पिया मिलन की आस’, ‘सुहाग सिंदूर’, ‘रेशमी रूमाल’ पहली बड़ी व्यावसायिक सफलता वाली फिल्म के बाद मनोज कुमार ‘शादी’, ‘डॉ. विद्या’ और ‘गृहस्थी’ में नजर आए। तीनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और दर्शकों को खूब पसंद आई। मुख्य भूमिका के रूप में उनकी पहली बड़ी सफलता वाली फिल्म 1964 में आई राज खोसला की फिल्म ‘वो कौन थी? फिल्म के गानों को खूब पसंद किया गया, जिनमें ‘लग जा गले’ और ‘नैना बरसे रिमझिम’ है। दोनों को ही लता मंगेशकर ने गाए थे। 1965 कुमार के स्टारडम की ओर बढ़ने वाला साल साबित हुआ। उनकी पहली देशभक्ति वाली फिल्म ‘शहीद’ थी, जो स्वतंत्रता क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन पर आधारित थी। खास बात है कि इस फिल्म की तारीफ दर्शकों के साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री ने भी की थी।

इसके बाद ‘हिमालय की गोद में’ और ‘गुमनाम’ आई। आशा पारेख के साथ वह ‘दो बदन’ में काम किए और देखते ही देखते छा गए थे। ‘सावन की घटा’ में उनकी केमिस्ट्री शर्मिला टैगोर साथ पसंद की गई थी। इसके अलावा वह ‘नील कमल’, ‘अनीता’, ‘आदमी’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में काम किए, जिसमें उनके अभिनय को कभी नहीं भूला जा सकता। रोमांटिक, ड्रामा और सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्मों के बाद मनोज कुमार ने ‘क्रांति’, ‘उपकार’ और ‘पूरब और पश्चिम’ के साथ देशभक्ति फिल्मों की ओर लौटे। फिल्म में वह भारत की गाथा, संस्कृति, परंपरा को शानदार अंदाज में पेश करने में सफल हुए थे। परिणाम ये रहा कि देश के साथ ही विदेश में भी खूब पसंद की गई। फिल्म के सुपरहिट गानों और मनोज कुमार के साथ सायरा बानो की जोड़ी ने कहानी को शानदार मुकाम पर पहुंचा दी। इसके बाद वह 1971 में वह ‘बलिदान’ और ‘बे-ईमान’ में काम किए और ‘शोर’ फिल्म का निर्देशन किए।

तीन पसंदीदा चीजें लेकर मनोज कुमार के घर पहुंचीं रवीना टंडन

निर्माता-निर्देशक, अभिनेता मनोज कुमार के निधन पर अभिनेत्री रवीना टंडन उनके घर पहुंचीं। उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान मनोज कुमार के साथ अपने गहरे भावनात्मक रिश्ते और साथ लाई उनकी तीन पसंदीदा चीजों के बारे में भी बताया। अभिनेत्री ने बताया, "मैं मनोज अंकल को कई साल से जानती हूं। उन्होंने मेरे पापा को भी फिल्मों में ब्रेक दिया था। वह हम सभी के लिए पिता के समान थे और आज मैं उनके लिए उनकी तीन पसंदीदा चीजें लेकर आई हूं। इसमें साई बाबा की विभूति, महाकाल का रुद्राक्ष और भारतीय तिरंगा शामिल है। मैंने यह चीजें उन पर चढ़ाई क्योंकि वह मेरे लिए भारत थे, भारत हैं और भारत रहेंगे।" अभिनेत्री ने आगे कहा, “ऐसी प्रेरणादायक और देशभक्ति की फिल्मों को आज तक किसी ने नहीं बनाया और बनाएगा भी नहीं। उनके गानों में से मेरा सबसे खास ‘जब जीरो दिया भारत ने...’ है। मुझे मनोज जी का हर गाना याद है और मेरा सबसे पसंदीदा गाना 'जब जीरो दिया भारत' है। वे हमारे लीजेंड हैं और हमेशा रहेंगे।”

रवीना टंडन के साथ ही फिल्म जगत के कई सितारों ने मनोज कुमार के निधन पर शोक जताया। मधुर भंडारकर, कंगना रनौत, फरहान अख्तर समेत कई सितारों ने शोक व्यक्त कर इंडस्ट्री में दिए उनके योगदान को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। भाजपा सांसद-अभिनेत्री कंगना रनौत ने भारतीय अभिनेता और फिल्म निर्देशक मनोज कुमार के निधन पर कहा, "मनोज कुमार एक दिग्गज अभिनेता थे, जिन्हें भारत कुमार के नाम से जाना जाता था। वह एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए हर भारतीय में देशभक्ति की भावना जगाई। उनके निधन से फिल्म इंडस्ट्री शोकमय है और हम भी अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें।" फिल्म निर्माता-निर्देशक मधुर भंडारकर ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “मनोज जी एक ऐसे कलाकार थे, जिनके योगदान को भूला नहीं जा सकता। हिंदुस्तान ने एक ऐसे दौर को जिया है, जिसे मनोज कुमार ने दिया था। भारतीय फिल्म निर्माता हमेशा उनके योगदान को याद रखेंगे। उनकी फिल्म 'क्रांति' हो या 'पूरब और पश्चिम', इन फिल्मों के माध्यम से उन्होंने देश को बहुत कुछ दिया है।”


जब शबाना आजमी ने दी थी चित्रांगदा सिंह को एक्टिंग टिप

अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह ने शबाना आजमी से जुड़ा अपना एक वाकया शेयर किया है, जो आज भी उनके दिल के करीब है। उन्होंने बताया कि शबाना आजमी ने उन्हें एक्टिंग टिप दी थी। यह टिप उन्हें अभिनेत्री शबाना आजमी ने एक बातचीत के दौरान दी थी। चित्रांगदा ने बताया कि वह अपनी पहली फिल्म ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ के सेट पर पूरी तरह खो गई थीं। अपनी पहली फिल्म कैसे मिली, इसे याद करते हुए उन्होंने बताया, "मैंने अभिनय की पढ़ाई नहीं की है। मैंने कभी थिएटर भी नहीं किया। मुझे लगता है कि यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा संयोग था कि मैं इस क्षेत्र में आ गई।" उन्होंने बताया, "मैं दिल्ली में मॉडलिंग कर रही थी। निर्देशक सुधीर मिश्रा 'गीता राव' ('हजारों ख्वाहिशें ऐसी' में उनका किरदार) नाम की लड़की की तलाश कर रहे थे, लेकिन उन्हें कोई नहीं मिला। गीतकार स्वानंद किरकिरे, जो उस समय सुधीर के सहायक थे, ऑडिशन ले रहे थे। मेरे साथ काम करने और मुझे एक अच्छा ऑडिशन देने के लिए तैयार करने के लिए मैं उनकी बहुत आभारी हूं।"

उन्होंने बताया कि शूटिंग के दौरान, वह बहुत खोई हुई महसूस करती थीं, क्योंकि केके मेनन जैसे उनके साथी कलाकार भावनाओं और किरदार के बारे में बात करते थे। अभिनय की पृष्ठभूमि से न होने के कारण वह सेट पर खुद को बहुत असहज महसूस करती थीं। सिंह ने बताया, "मैंने एक दिन सुधीर से कहा, 'मुझे नहीं पता कि क्या करना है' और उन्होंने कहा, 'यह सबसे अच्छी बात है क्योंकि तुम्हें सीन में सिर्फ रिएक्ट करना है, एक्ट नहीं करना है'। यह बहुत ही सुंदर बात थी। मैं बस उस एक बात पर कायम रही और ऐसा लगा कि मेरे अंदर कोई कमी नहीं है।"

सिंह ने बताया कि शबाना आजमी ने उन्हें अभिनय के लिए टिप दी थी। उन्होंने कहा, "मुझे बाद में शबाना जी के साथ एक फिल्म में काम करने का मौका मिला और मैं उनके साथ इस पर चर्चा कर रही थी। हम चर्चा कर रहे थे कि मैं एक्टिंग स्कूल नहीं गई हूं या मैंने एक्टिंग की पढ़ाई नहीं की है। इस पर शबाना जी ने क्या कहा, आप जानते हैं? उन्होंने कहा कि एक्टिंग की पढ़ाई करने में समस्या यह है कि पहले आप सीखते हैं और फिर आपको भूलना पड़ता है। तो सबसे अच्छी स्थिति में हो क्योंकि तुमने सीखा नहीं है, तो तुम्हें भूलना भी नहीं पड़ेगा। यह ज्यादा लंबी प्रक्रिया है। मुझे लगता है कि हर अभिनेता का अपना तरीका होता है।"

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