कोरोना संकट में थमी फिल्मों की रफ्तार, जोर में डिजिटल प्लेटफॉर्म, कई फिल्मकारों को दिखा नई तकनीक में भविष्य

कोरोना आतंक के बीच पीवीआर सिनेमा ने अभी से ही भविष्य में सिनेमा हॉल के अंदर बैठने की व्यवस्था सोशल डिस्टेन्सिंग को ध्यान में रखते हुए करने की तैयारी शुरू कर दी है। इन हालात को देखते हुए बहुत सारे फिल्मकार अब डिजिटल प्लेटफार्म के बारे में सोचने लग गए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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अमिताभ पाराशर

हम-आप जानते ही हैं कि बीजेपी के पूर्व सांसद और चरित्र अभिनेता परेश रावल भक्त शिरोमणि हैं। वह भक्ति प्रदर्शन का कोई मौका नहीं छोड़ते। अब यह कहना तो गलत होगा कि ज्यादातर हिंदुस्तानियों की तरह, लेकिन वह बेवकूफ नहीं हैं। जानते हैं कहां नफा है और कहां नुकसान। सो, जब बेटे को फिल्मी दुनिया में बतौर हीरो लॉन्च करने का मौका आया तो उन्हें इस बात से दिक्कत या कोई परेशानी नहीं हुई कि जो आदमी उनके सुपुत्र की पहली फिल्म को खड़ा कर रहा है, वह न केवल सैद्धांतिक तौर पर उनका विरोधी है, बल्कि उस शख्स का मुखर आलोचक है, जिसके गुणगान परेश रावल सुबह उठते ही बिना मुंह धोए शुरू कर देते हैं।

परेश रावल के बेटे आदित्य रावल को अनुराग कश्यप अपनी नई फिल्म ‘बमफाड़’ से ‘प्रेजेंट’ कर रहे हैं। इस फिल्म को अनुराग कश्यप के असिस्टेंट रह चुके रंजन चंदेल ने डायरेक्ट किया है। फिल्म में आदित्य रावल और शालिनी पांडे की जोड़ी है। शालिनी पांडे ‘अर्जुन रेड्डी’ नाम की सफल दक्षिण भारतीय फिल्म की हीरोइन थीं, जिसे हिंदी में ‘कबीर सिंह’ नाम से बनाया गया था और यह हिंदी में भी सुपरहिट साबित हुई।

अब यह देखिए कि जब परेश रावल ने दो-चार दिन पहले ट्विटर पर अपने पुत्र की इस नई फिल्म के बारे में लोगों को बताया और अनुरोध किया कि वे इस फिल्म को देखें और पुत्र को आशीर्वाद दें तो बड़ी सफाई से उन्होंने अनुराग कश्यप का नाम लेने से परहेज किया। आप जानते ही हैं क्यों?

खैर, यह तो श्रीमान परेश रावल की अपनी सोच का मामला है, वह ही जानें। मुद्दा यह है कि इस फिल्म को पहले सिनेमाघरों में रिलीज किया जाना था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। शायद यह कोरोना का ही असर है कि अब ‘बमफाड़’ सीधे एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही है और उसे जी 5 रिलीज करने जा रहा है।

कोरोना के आतंक के पूरी तरह खात्मे में कितना समय लगेगा? इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था या वैश्विक अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा? फिल्म इंडस्ट्री किस हाल में होगी? इसका अंदाजा लगाना भी अभी किसी के लिए मुश्किल है, लेकिन यह तय है कि लोगों के सिनेमा हॉल में लौटने और सिनेमा हॉल में फिल्में रिलीज होने की व्यवस्था फिर से पटरी पर आने में अभी लंबा वक्त लग सकता है। पीवीआर सिनेमा जैसी कंपनियों ने तो उस परिदृश्य की कल्पना शुरू कर दी है कि अगले कुछ महीने तक सिनेमा हॉल के अंदर बैठने की व्यवस्था भी सोशल डिस्टेन्सिंग को ध्यान में रखते हुए की जाएगी।

इन्हीं हालात को देखते हुए बहुत सारे फिल्मकार अब डिजिटल प्लेटफॉर्म के बारे में सोचने लग गए हैं। जी 5 जैसे प्लेटफॉर्म ने तो कई बड़े फिल्मकारों से कहा है कि वे उसके लिए छोटे बजट की फिल्में बनाएं, ताकि उन्हें सीधे जी 5 पर ही रिलीज किया जा सके। मौजूदा परिस्थिति तो खैर बिलकुल अलग है, जहां लोग घरों में बैठे हैं और उनके पास काफी समय है। ऐसे में तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध फिल्में और वेब सीरीज लोगबाग खूब देख रहे हैं। यहां तक कि दूरदर्शन पर रामानंद सागर की ‘रामायण’ और बी.आर.चोपड़ा की ‘महाभारत’ को भी खूब दर्शक मिल रहे हैं।

यह एक असामान्य परिस्थिति है। लेकिन इस असामान्य परिस्थिति ने कई लोगों को एक नया मौका भी दे दिया है। हमने कम-से-कम चार फिल्मकारों से बात की। सब ने एक स्वर से कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए फिल्में बनाना आने वाले कल की सच्चाई होगी। नेटफ्लिक्स, अमेजॉन, हॉटस्टार, जी 5, मैक्सप्लेयर- जैसे प्लेटफॉर्म इसके लिए कमर कस रहे हैं।

नेटफ्लिक्स की बात न करें क्योंकि इसके पास दूसरे प्लेटफॉर्मों के मुकाबले काफी ज्यादा बजट और पैसा है। लेकिन आमतौर पर दूसरे प्लेटफॉर्म भारत में सामान्य तौर पर पांच-सात करोड़ की बजट वाली फिल्मों में पैसा लगाने का मन बना रहे हैं। इनमें से कई ने कुछ फिल्मकारों से संपर्क भी साधा है। इस बजट में आप किसी स्टार को लेकर फिल्म नहीं बना सकते।

लेकिन यही, इन डिजिटल प्लेटफॉर्मों की खासियत भी है। इन्हें स्टार नहीं चाहिए। इन्हें कंटेन्ट चाहिए। इन्हें मालूम है कि अगर कंटेन्ट में दम है तो लोग उसे देखेंगे। हाल में कई सफल वेब सीरीज की यही खासियत रही है। आजकल तो लोग वेब सीरीज के रिव्यूज भी उसी चाव से पढ़ने लगे हैं जिस तरह वे फिल्मों के रिव्यूज पढ़ा करते थे।

एक सवाल यह है कि क्या भारत में भी नेटफ्लिक्स अपनी उसी सफलता को दुहराने की कोशिश करेगा जो उसने हाल के समय में हॉलीवुड में हासिल की है। आजकल यहां-वहां के बहुत सारे बड़े फिल्मकारों और उनकी फिल्मों में पैसा लगा रहा है। नेटफ्लिक्स ओरिजिनल की स्टैंप लगी ये फिल्में न कवेल कमाई में बल्कि ऑस्कर जैसे अवार्ड में भी झंडे गाड़ रही हैं। मशहूर अमेरिकी फिल्मकार मार्टिन स्कोर्सेसे की हाल की फिल्मों में नेटफ्लिक्स ने मोटा पैसा लगाया है।

भारत में ऐसा कब होगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन होगा जरूर, यह तय है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि फिल्मकार बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की सफलता, असफलता या पैसे डूबने या फायदे में रहने की जद्दोजहद से दूर हो जाता है। उसे फिल्म बनाने के पैसे मिले। उसने एक बजट में फिल्म बनाई और अपना फायदा निकाल लिया। कहानी खत्म। बाकी की सारी सिरदर्दी डिजिटल प्लेटफॉर्म की।

लेकिन ऐसा कहते हुए, यह अनुमान लगाना गलत होगा कि कम-से-कम भारत में सिनेमा हॉल का भविष्य खतरे में है। ऐसा बिलकुल नहीं है। सिनेमा हॉल में जाकर फिल्में देखने का अपना मजा है। यह एक शगल है। एक आदत है। एक मौज है। इससे छुटकारा पाना तो संभव नहीं है। दूसरी बात, आने वाले समय में भी बड़े फिल्मी सितारों की फिल्में सिनेमाघरों में ही लगेंगी। उन्हें डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज करना आज भी आर्थिक तौर पर घाटे का ही सौदा है।

जब तक कि फिल्मकार को यह न पता हो कि उसने जाने-अनजाने एक ऐसी फिल्म बना दी है, जिसका बॉक्स ऑफिस पर पिटना तय है, तो उसे डिजिटल प्लेटफार्म पर बेच दो। कम-से-कम और घाटे से बच जाओगे, खर्चा निकल जाएगा। करण जौहर ने कुछ समय पहले सुशांत सिंह राजपूत की एक फिल्म के साथ ऐसा ही किया। उस फिल्म को नेटफ्लिक्स को टिका दिया गया। लोगों को फिल्म देखने के बाद पता चला कि करण जौहर ने बुद्धिमानी की थी। फिल्म इतनी घटिया थी कि पिटना तय था।

हां, सामान्य तौर पर सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए बनने वाली फिल्मों की निर्माण प्रक्रिया और किसी वेब प्लेटफार्म के लिए बनने वाली फिल्मों की निर्माण प्रक्रिया में क्या फर्क है या होने वाला है, इस पर विस्तार से चर्चा फिर कभी!

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