सम्राट पृथ्वीराजः अक्षय कुमार के 'स्टारडम' ने निर्माता को कहीं का नहीं छोड़ा, डूब गए 230 करोड़ रुपये!

फिल्मी इतिहास गवाह है कि पृथ्वीराज चौहान का यह चित्रण पौराणिक राजपूत योद्धा का अब तक का सबसे खराब ऑन-स्क्रीन ट्रीटमेंट है। यह तो वीर पृथ्वीराज के कारनामों पर 1959 में बनी फिल्म से भी निचले पायदान पर चली गई जिसमें जयराज ने पृथ्वीराज की भूमिका निभाई थी।

फोटोः सोशल मीडिया
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सुभाष के झा

यशराज फिल्म्स और डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के महत्वाकांक्षी और महंगे प्रोजेक्ट ‘सम्राट पृथ्वीराज’ की विफलता ने निर्माता आदित्य चोपड़ा को कहीं का नहीं छोड़ा। उनके पास गुस्से में उबलने के अलावा कुछ बचा नहीं है।

हर तरफ से यही सवाल पूछा जा रहा है कि फिल्म के अनुमानित बजट का सारा पैसा आखिर गया कहां? वे 230 करोड़ कहां गए? पर्दे पर तो ऐसा बहुत कुछ दिखाई नहीं दिया। स्पेशल इफेक्ट की तो बात ही करना मुश्किल है। रही बात फिल्म की कथित महाकाव्यात्मक दृष्टि की तो वह कहीं अनुवाद में खो गई सी लगती है।

आदित्य चोपड़ा को जयेशभाई जोरदार (जेजे) के बाद लगने वाला यह लगातार दूसरा बड़़ा झटका है। जेजे में तो यशराज की आंख के नूर रणवीर सिंह ने अभिनय किया था। जेजे बॉक्स ऑफिस पर इस बुरी तरह लुढ़क जाएगी, शायद किसी को भी अंदाजा नहीं था। चोपड़ा भी खुश नहीं हैं। और अब सम्राट पृथ्वीराज! पृथ्वीराज और जेजे की विफलता भी किसी ‘महात्रासद विफलता’ से कम नहीं है।

जयेशभाई जोरदार के तमाम शो तो इसलिए रद्द करने पड़ गए कि वहां एक भी दर्शक नहीं पहुंचा सिनेमा देखने। अब पृथ्वीराज के साथ इतिहास ने खुद को दोहराया है, हालांकि यह अच्छो अर्थों में नहीं है। यशराज खेमे में भारी निराशा और नाराजगी है। सम्राट पृथ्वीराज की विफलता का सारा ठीकरा भी उसके सबसे चहेते अक्षय कुमार के कंधे पर फोड़ा जा रहा है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है।


फिल्मी दुनिया के एक सूत्र ने कहा- “वह फिर भी नहीं सुनेगा! नहीं मानेगा! …फिल्म (सम्राट पृथ्वीराज) को जिस समर्पण के साथ जैसी एकाग्रता की दरकार थी, वह नहीं हुआ। उससे इतना भी नहीं हुआ कि मूंछे तो असली उगा लेता! कैसे करता? साथ-साथ और भी प्रोजेक्ट जो कर रहा था। जब आप ऐतिहासिक रूप से इतना महत्वपूर्ण चरित्र निभाने जा रहे हैं तो आप एक ही प्रोजेक्ट पर फोकस कर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन क्यों नहीं कर सकते थे? यह बड़ा अवसर था।” सम्राट पृथ्वीराज की असफलता के लिए सब फिल्म के मूल आर्किटेक्ट, यानी असल कर्ताधर्ता अक्षय कुमार को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। किसी को जवाब देते नहीं बन रहा।

अक्षय को अपने श्वसुर राजेश खन्ना से कुछ सीख लेनी चाहिए थी। वही राजेश खन्ना जिन्होंने अपने स्टटारडम के चरम पर 1969 में यश चोपड़ा की ‘इत्तेफाक’ के लिए दाढ़ी बढ़ाई थी। एक फिल्म के लिए उनके दाढ़ी बढ़ाने का नतीजा यह हुआ कि राज खोसला की उन्हीं दिनों की दो फिल्मों पर उसका असर पड़ा। खोसला की ‘दो रास्ते’ में तो राजेश खन्ना की दाढ़ी कई बार दिखती और गायब होती रही। मैंने राजेश खन्ना से इसके बारे में पूछा था और उनका जवाब बहुत संक्षिप्त लेकिन आंख खोलने वाला था- “यह सही है कि ‘दो रास्ते’ पर असर पड़ा लेकिन मैं इत्तेफाक में दाढ़ी रखने के लिए प्रतिबद्ध था। अब नकली तो नकली ही लगेगा न!”

इत्तेफाक में राजेश खन्ना की दाढ़ी उनके अनुबंध का हिस्सा भी थी। सम्राट पृथ्वीराज में मूंछों के साथ भी ऐसा ही क्यों नहीं होना चाहिए था? इस नकली मूंछ प्रकरण पर खासे नाराज चल रहे बिहार के फिल्म प्रदर्शक सुमन सिन्हा बेहद बेचैन हैं- “अक्षय कुमार को पता भी है कि राजपूतों के गौरव के लिए मूंछों का क्या मतलब होता है? यह एक राजपूत की पहचान का मूल आधार है। आप मूंछों के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते।”

सम्राट पृथ्वीराज के साथ सिर्फ मूंछों में ही गड़बड़ी हुई हो, ऐसा भी नहीं। लगता है कि पूरा का पूरा प्रोजेक्ट ही मजबूत आत्मविश्वास की कमी का शिकार हो गया है। यह फिल्म मूल रूप से निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी की परिकल्पना थी जिसमें वह सनी देओल और ऐश्वर्या राय को लेना चाहते थे। ऐश्वर्या संयुक्ता की भूमिका में होतीं, सनी पृथ्वीराज चौहान। लेकिन जब आदित्य चोपड़ा और यशराज फिल्म्स ने ‘सम्राट पृथ्वीराज’ बनाने का फैसला लिया, तब अक्षय कुमार तस्वीर में आ गए।


काश, इतिहास इतना ही होता! लेकिन नहीं… फिल्मी इतिहास गवाह है कि पृथ्वीराज चौहान का यह चित्रण पौराणिक राजपूत योद्धा का अब तक का सबसे खराब ऑन-स्क्रीन ट्रीटमेंट बन चुका है। यह तो वीर पृथ्वीराज के कारनामों पर 1959 में बनी फिल्म से भी निचले पायदान पर चली गई जिसमें जयराज ने पृथ्वीराज की भूमिका निभाई थी।

बच्चन पांडे और सम्राट पृथ्वीराज जैसी दो भयानक फ्लॉप फिल्मों के बाद अब अक्षय कुमार अपने अगले प्रोजेक्ट ‘रामसेतु’ के लिए काफी सतर्क नजर आ रहे हैं। काश कि वह पहले ही सतर्क हो गए होते!

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