पैसे की दीवार से फिल्म की कहानी और रोल को पढ़ते हैं स्टार सेक्रेटरी, और पिट जाती हैं शाहरुख जैसों की फिल्में

जब पैसा बड़ा हो जाए तो प्राथमिकता कहानी या डायरेक्टर से शिफ्ट कर पैसे पर चली आती है। बॉलीवुड में यही पुराना रिवाज है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर कोई फिल्म स्टार सिर्फ पैसे को भगवान मानने लग जाए तो उसका देर-सवेर डूबना तय है।

फोटोः सोशल मीडिया
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अमिताभ पाराशर

मुंबई की एक बड़ी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी के लिए बहुत सी बड़ी-बड़ी फिल्मों के एडिटर रह चुके एक सज्जन आजकल बड़े परेशान हैं। जैसा कि फिल्म निर्माण के किसी न किसी विभाग से जुड़े लोगों के साथ होता है, एक समय बाद वे उससे अलग कुछ बेहतर करना चाहते हैं।

सो, ये सज्जन अब डायरेक्टर बनना चाहते हैं। उनके पास एक कहानी भी है, जो रोमांटिक कॉमेडी है। अब उन्हें एक महिला फिल्म स्टार चाहिए। इतने सालों से फिल्म इंडस्ट्री में काम कर चुके किसी भी आदमी के लिए किसी भी फिल्म स्टार को अप्रोच कर पाना समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन उक्त सज्जन किसी बड़े फिल्म स्टार को तो छोड़ दीजिए, साधारण हैसियत के स्टार को भी नहीं पकड़ पा रहे हैं।

जब उन्होंने तय किया कि उन्हें कायरा आडवाणी नाम की एक अपेक्षाकृत नई अदाकारा अपनी इस फिल्म की अभिनेत्री के तौर पर चाहिए, तो उन्होंने इन महोदया के पीछ भागना शुरू किया। दुःख की बात यह है कि पिछले छह महीने से वह भाग ही रहे हैं, लकिन इन अदाकारा की युवा महिला मैनेजर उनके और इन स्टार महोदया की बीच में लंबी दीवार बनी बैठी हैं।

यही कहानी कई ऐसे फिल्मकारों की है जिन्होंने इंडस्ट्री में अच्छा-खासा वक्त गुजारा है, कई फिल्में बनाई हैं और नाम कमाया है। हाल में बिना किसी बड़े-छोटे स्टार के साथ अपनी नई फिल्म ‘मिलन टाकीज’ रिलीज करने वाले फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया की निराशा उनके उस बयान से निकली जिसमें उन्होंने कहा कि अगर उन्हें फिल्में बनानी हैं तो स्टार और उनके मैनेजर के बिना ही बनानी होंगी क्योंकि उनकी हां-ना के इंतजार में तो सदियां बीत जाएंगी।

शायद विशाल भारद्वाज का दर्द भी यही है। इसीलिए, उन्होंने अभी बिना स्टार वैल्यू वाली दो नई लड़कियों को लेकर ‘पटाखा’ बनाई। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली लकिन इसने अपनी लागत के साथ कुछ मुनाफा भी बना लिया।

नामी और अनुभवी फिल्म आलोचक और फिल्मकार खालिद मोहम्मद पिछले कई साल से अपनी नई फिल्म बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लकिन न तो उनकी पकड़ में कोई फिल्म स्टार आ रहा है और न ही स्टार सेक्रेटरी या मैनेजर। खालिद अपने पुराने संपर्कों की मदद से किसी स्टार तक पहुंच सकते हैं, लेकिन समस्या यह है कि भले ही आप फिल्म स्टार को जानते हैं, लेकिन जैसे ही फिल्म साइन करने या न करने की बात आती है, वह स्टार आपको अपने मैनेजर से बात करने को कहेगा। फिर आप उस मैनेजर की अजीबोगरीब मांगों के चक्कर में इतने फ्रस्ट्रेटेड हो जाएंगे कि थक हार के घर बैठ जाएंगे।

एक समय अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल (अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड) के डूबने का सबसे बड़ा कारण उनकी कंपनी का सीईओ माना गया, जो किसी बड़े मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से पढ़कर आने वाले एमबीए डिग्री धारक थे। सूट और टाय पहनकर अंग्रेजी मानसिकता लेकर हिंदी में फिल्म बनाने चले इन सज्जन ने अमिताभ बच्चन और उनकी कंपनी की लुटिया इस बुरी तरह डुबोई कि बच्चन साहब को कर्जे निबटाने में कई साल लग गए।

अभी के स्टार मैनेजर पहले वाले से इस अर्थ में थोड़ा बेहतर हैं। उन्होंने इस माध्यम को थोड़ा बेहतर समझा है। लेकिन यकीन करिए कि इनमें ज्यादातर इस अर्थ में लुटिया डुबाने वाले ही हैं क्योंकि उन्हें सिनेमा की समझ से ज्यादा लेना-देना नहीं, बल्कि सिर्फ पैसे की सुगंध से मतलब है।

किसी भी स्टार के लिए अपने स्टार मैनेजर पर एक हद से ज्यादा निर्भरता खतरनाक है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर को सिर्फ प्रॉफिट और पैसा समझ में आता है और वे अपना काम सिर्फ यह मानते हैं कि किस तरह वे स्टार को ज्यादा से ज्यादा दुहे जाने लायक बना सकें। कई मामलों में वे सफल रहे हैं।

आज हर स्टार ब्रांड वैल्यू, विज्ञापन, अन्य व्यापार से सिनेमा के मुकाबले ज्यादा कमाई कर रहा है, तो सच यह है कि भले ही स्टार की आमदनी बढ़ गई हो, उसकी फिल्में पिट रही हैं। शाहरुख खान का उदाहरण ले लीजिए। वे अपनी स्टार मैनेजर पर बहुत यकीन करते हैं। कमाई तो वह कर रहे हैं लेकिन फिल्में लगातार बॉक्स ऑफिस पर धराशाई हो रही हैं।

तो, इन स्टार मैनेजर को सिनेमा के इतर स्टार वैल्यू को दुह कर पैसे कैसे बनाने हैं, यह तो आता है लेकिन यह नहीं आता कि कौन सी कहानी या स्क्रिप्ट उक्त स्टार के व्यक्तित्व को देखकर सही रहेगी, या कौन सी स्क्रिप्ट कैसी है, यह सलाह स्टार को दे सकें। ह्रितिक रोशन की पिछली कुछ खराब और फ्लॉप फिल्मों के चयन और उनके पिटने की वजह भी ऐसे ही लोग हैं।

सलमान खान की खराब फिल्में अगर आज भी पैसे बना रही हैं, तो इसमें उनके लिए घटिया कहानियां चुनने वाले स्टार सेक्रेटरी जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि बॉक्स ऑफिस पर सलमान खान का अभी भी चलने वाला सिक्का है। दूसरी तरफ, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना, पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकार अगर लगातार अच्छी फिल्में बना रहे हैं, तो सिर्फ इसलिए कि वे अभी तक इन स्टार मैनेजर की गिरफ्त में नहीं थे।

वे अपने लिए कहानियां खुद तय करते रहे हैं और अपनी स्क्रिप्ट खुद पढ़ते रहे हैं। सफलता इन्हें भी धीरे-धीरे बदल रही है। सफलता पैसे लाती है और पैसा प्राथमिकता बदल देता है। चर्चा है कि राजकुमार राव ने करण जौहर की कंपनी के साथ 24 करोड़ में तीन फिल्म डील की है। यानी हर फिल्म के लिए उन्हें 8 करोड़ रुपए मिलेंगे। हाल तक पचास लाख-एक करोड़ प्रति फिल्म पाने वाले राजकुमार राव के लिए यह एक बड़ी रकम है।

तो जब पैसा बड़ा हो जाए तो प्राथमिकता स्टोरी, स्क्रिप्ट या डायरेक्टर से शिफ्ट कर पैसे पर चली आती है। यही पुराना रिवाज है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर कोई फिल्म स्टार सिर्फ पैसे को भगवान मानने लग जाए तो उसका देर-सवेर डूबना तय है। सफलता स्थायी नहीं होती। बॉलीवुड में तो बिलकुल नहीं।

पहले स्टार मैनेजर पीए हुआ करते थे। उनकी कांख के नीचे एक छोटा सा बैग और हाथ में एक बड़ा सा मोबाइल हुआ करता था। वे हिंदी जानते थे और हिंदी में ही बोलते थे। ये देसी पीए, अपने फिल्म स्टार के सारे नफा-नुकसान का ध्यान तो रखते थे लेकिन फिल्म के क्रिएटिव साइड में अपना दिमाग नहीं लगाते थे और न ही किसी फिल्मकार और स्टार के बीच की दीवार बनते थे, खासकर तब जब दोनों एक दूसरे को जानने वाले हों।

अब तो, भले ही स्टार को आप व्यक्तिगत तौर पर जानते हों, लेकिन जाना पड़ेगा आपको उसी रास्ते। उसी स्टार मैनेजर के रास्ते। पूजा डडलानी (शाहरुख खान की मैनेजर ), जेनोबिया (अक्षय कुमार की मैनेजर), अंजलि अथा (ह्रितिक रोशन), रितिका नागपाल (अनुष्का शर्मा), तेजल शेट्टी (परिणिता चोपड़ा), श्रुतिका शेट्टी (अदिती राउ हायदरी), सूजन रोड्रिग्स (रणवीर सिंह), रुनाली भगत (अर्जुन कपूर), मृणाल चबलानी (प्रियंका चोपड़ा) जैसी महिला मैनेजर आजकल खुद को ही स्टार समझती हैं। इन्होंने अपनी एजेंसी भी बना ली है। स्टार का पीआर भी यही एजेंसी देखती है। ऑल इन वन का मामला है।

आपको फिल्म बनानी है? भले ही आप तुर्रम खां हों, पहले कहानी भेजिए। इनको पसंद आएगी तो ये फिर स्टार से बात करेंगे या करेंगी। फिर आप से स्क्रिप्ट भेजने को कहा जाएगा। पहले ऐसे लोग स्क्रिप्ट पढ़ेंगे जिन्हें स्क्रिप्ट लिखने,पढ़ने, समझने की तमीज नहीं है। फिर वे अपनी राय बनाएंगे और फिर स्टार को अपनी राय से अवगत कराएंगे। लेकिन उस राय में फिल्म का सिर्फ व्यवसाय ही हावी होगा, कला पक्ष नहीं। नतीजा, तब दिखता है कि स्टार की जेब में पैसे तो आ जाते हैं लेकिन फिल्म पिट जाती है। लेकिन, जैसा कि पहले कहा गया है कि पैसा और हाय पैसा जब हावी हो जाता है, तो सौरभ शुक्ला जैसे लोग भी स्टार सेक्रेटेरी ‘हायर’ कर लेते हैं।

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