उतार-चढ़ाव के बिना जिंदगी में कामयाबी नहीं मिलती: बोमन ईरानी

अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों पर छाप छोड़ने वाले बोमन ईरानी ने संघर्ष का स्वाद भी बखूबी चखा है। उनका मानना है कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव के बिना कामयाबी नहीं मिलती और उन्होंने इसका पूरा लुत्फ उठाया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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आईएएनएस

अभिनेता बोमन ईरानी को आज कौन नहीं जानता। 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' और '3 इडियट्स' जैसी फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से दर्शकों के दिलों में जगह बना लेने वाले बोमन ईरानी ने संघर्ष का स्वाद भी बखूबी चखा है। उन्होंने मुंबई के ताज महल होटल में वेटर की नौकरी करने से लेकर, बीमा पॉलिसी बेचने और फोटोग्राफी का भी काम किया। उनका मानना है कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव के बिना कामयाबी नहीं मिलती और उन्होंने इसका पूरा लुत्फ उठाया है। हाल ही में गुरुग्राम में आयोजित 'सिग्नेचर स्टार्टअप मास्टर क्लास' में शामिल होने आए बोमन ईरानी जल्द ही जॉन अब्राहम के साथ फिल्म 'परमाणु' में नजर आने वाले हैं।

फिल्म में जॉन के साथ काम करने के अनुभव के बारे में बोमन ने कहा कि उन्होंने जॉन के साथ बहुत साल पहले 'लिटिल जिजु' नाम की एक फिल्म की थी। फिर 'दोस्ताना' और 'दन दना दन गोल' में भी दोनों ने साथ काम किया है। जीवन में इतने संघर्ष के बाद अपने अब तक के सफर के बारे में बोमन ने कहा, "देखिए कोई भी सफर बस सफर होना चाहिए, कभी-कभी लोग बोलते हैं कि हमें जल्द से जल्द कामयाब बनना है, मैं उन सब चीजों को मानता नहीं हूं। मैं मानता हूं कि उतार-चढ़ाव के बिना कामयाबी होती ही नहीं है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक दिन कामयाब हो गए और फिर कुछ मेहनत नहीं की तो ऐसे सफर का क्या फायदा? मैंने उतार-चढ़ाव के इस सफर का लुत्फ उठाया है, चढ़ाव का आनंद लेने के लिए और उतार सीखने के लिए होता है।"

बोमन का मानना है कि संघर्ष सुधार लाता है। उन्होंने कहा, "संघर्ष का मतलब आपको निराशा महसूस कराना नहीं, बल्कि आप में सुधार लाना है। संघर्ष का मतलब आपके दिल में कुछ करने की उमंग जागने से है। इसके बिना मुझे लगता है कि आप अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकते।" फिल्मों में आने के बाद भी बोमन शौकिया तौर पर फोटोग्राफी करते हैं। उन्होंने कहा, "मैं आज भी हमेशा कैमरा लेकर घूमता हूं, लेकिन पेशेवर तौर पर नहीं, अब शौकिया फोटोग्राफी करता हूं।"

किसी खास किस्म के किरदार की तलाश के बारे में पूछे जाने पर बोमन ने कहा, "रोल हम ढूंढ़ते रहेंगे और वह रोल कभी नहीं आएगा, तो एक हिसाब से यह अच्छा ही है। क्योंकि अगर ऐसा रोल मिल जाता है तो हम सोचते हैं मेरे दिल की इच्छा पूरी हो गई, इसलिए मैं किसी खास भूमिका की तलाश में नहीं रहता। रोल को हमें यूनिक खुद बनाना चाहिए, अगर कागज पर रोल यूनिक नहीं है तो हमें मेहनत करके उस रोल को यूनिक बनाने की कोशिश करनी चाहिए।" बोमन का कहना है कि वह अपने करियर से संतुष्ट तो हैं, लेकिन ज्यादा संतुष्ट नहीं, क्योंकि उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना और बहुत कुछ करना है। संतुष्ट होकर वह अपनी रफ्तार धीमी नहीं करना चाहते हैं।

फिल्मों के प्रति लगाव के बारे में उन्होंने कहा, "बचपन से तो कहीं न कहीं रुझान था, लेकिन एक हिसाब से अच्छा हुआ जो थोड़ा देर से आया। मैंने जो कुछ जिंदगी में सीखा, उन सब अनुभवों को मैने अभिनेता बनने के बाद इस्तेमाल किया। मैं अपने आपको एक तरह से खुशनसीब समझता हूं। कई लोगों को लगता है कि मैं अभिनय में देर से आया, लेकिन मुझे लगता है कि मैं बिल्कुल सही समय पर आया।" बोमन का मानना है कि जीवन में कोई शॉर्टकट नहीं होता। आप एक फिल्म करो या सौ। सौ फिल्म के बाद भी उतनी ही मेहनत होनी चाहिए। कामयाब होने के बाद और ज्यादा मेहनत करनी चाहिए।

इस मुकाम पर पहुंचने में परिवार के योगदान को याद करते हुए बोमन कहते हैं कि "आपके पास ऐसे लोग होने चाहिए, जो गुस्सा आने पर आपको शांत कराएं, जो आपको फैसले लेने में सहयोग करें। पैसों के लिए आपको गलत फैसले लेने पर मजबूर नहीं करें। मानवीयता बरकरार रखने में परिवार की अहम भूमिका होती है।"

'सिग्नेचर स्टार्टअप मास्टर क्लास' को उन्होंने एक अच्छी पहल बताया। इससे लोगों को कलाकारों व बड़ी हस्तियों के जीवन के उतार-चढ़ाव व अनुभवों को जानने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी गॉसिप मैगजीन पढ़ने के बजाय अगर यह सुने तो बहुत अच्छी बात है।

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